नवरात्रि के सातवें दिन महापूजा की शुरुआत होती है. इसे महासप्तमी कहा जाता है. इस दिन सुबह के समय नवपत्रिका पूजा यानी नौ तरह की पत्तियों से मिलाकर बनाए गए गुच्छे से दुर्गा आह्वान किया जाता है. दुर्गा पूजा का पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है और हर दिन का अपना अलग महत्व होता है. आखिरी के चार दिन बेहद पवित्र होते हैं. जहां हिंदू नवरात्रि के रूप में मां दुर्गा के स्वरूप की पूजा करते हैं, वहीं बंगाली लोग 10 दिन तक मां दुर्गा की ही पूजा करते हैं. इस बार नवपत्रिका की पूजा 12 अक्टूबर यानी कल की जाएगी.
महासप्तमी का शुभ अवसर एक साथ नौ पौधों के पवित्र स्नान के साथ शुरू होता है, जिसे नदी या तालाब में देवी दुर्गा के रूप में आमंत्रित किया जाता है. नौ पौधों की पूजा को नवपत्रिका के नाम से जाना जाता है. 9 तरह की पत्तियों या पौधों को पीले रंग के धागे के साथ सफेद अपराजिता पौधों की टहनियों से बांधा जाता है. इन नौ पौधों को एक साथ जोड़कर देवी दुर्गा की नौ अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व किया जाता है. हालांकि पौधे व्यक्तिगत रूप से विभिन्न भगवानों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
ये नौ पौधे निम्नलिखित देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं.
बेल के पत्ते- भगवान शिव
अशोक के पत्ते- देवी शोकारहिता
चावल धान- देवी लक्ष्मी
केले का पौधा- देवी ब्राह्मणी
अरुम का पौधा- देवी चामुंडा
हल्दी का पौधा- देवी दुर्गा
अनार के पत्ते- देवी रक्तदंतिक
जयंती का पौधा- देवी कार्तिकी
कोलोकैसिया पौधा- देवी कालिका
पवित्र स्नान के बाद, नवपत्रिका को लाल रंग की बॉर्डर वाली सफेद साड़ी में सजाया जाता है और पत्तियों पर सिंदूर का लेप किया जाता है. फिर उसे एक सजे हुए आसन पर स्थापित किया जाता है और फूलों, चंदन के लेप और अगरबत्ती से पूजा की जाती है. फिर नवपत्रिका को भगवान गणेश की मूर्ति के दाहिनी ओर रख दिया जाता है, जिसका मुख्य कारण है कि उन्हें भगवान गणेश की पत्नी के रूप में जाना जाता है. नवपत्रिका की पूजा मां प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती है.
‘नव’ शब्द नौ का प्रतीक है और ‘पत्रिका’ का अर्थ है पौधा. नवपत्रिका कल्याण, शांति और खुशी के लिए समर्पण के साथ मानव जीवन का भी प्रतिनिधित्व करता है. पौधों की पूजा लोगों को प्रकृति और वनस्पतियों से प्यार और उसकी रक्षा करने के लिए प्रोत्साहित करती है.