नई दिल्ली। प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों के लिए एक बड़ी खबर सामने आई है। ईपीएफओ में कुछ जरूरी बदलाव किए जा रहे हैं। इन बदलावों का सीधा असर काम करने वालों की जेब पर हो पड़ने की आशंका है। EPFO के जैसे पेंशन फंड को व्यावहार कुशल बनाए रखने के लिए चल रही व्यवस्था को खत्म किया जा सकता है। यह सभी सुझाव लेबर मिनिस्ट्री के उच्च अधिकारियों ने लेबर से जुड़ी संसदीय समिति को सुझाव देते हुए दिये हैं।
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उन्होंने defined benefits की व्यवस्था को खत्म करते हुए defined contributions की व्यवस्था अपनाने का सुझाव दिया है। इसका सीधा मतलब यह है किपीएफ मेंबर्स को उनके कंट्रीब्यूशंस के अनुसार ही लाभ मिलेगा। अधिकारियों ने संसदीय समिति को यह बताया कि ईपीएफओ के पास 23 लाख से अधिक पेंशनर हैं जिन्हें हर महीने 1000 रुपये पेंशन मिलती है। जबकि पीएफ में उनका अंशदान इसके एक चौथाई से भी कम था। उनकी दलील थी कि अगर defined contributions की व्यवस्था नहीं अपनाई गई तो सरकार के लिए लंबे समय तक इसे सपोर्ट करना व्यावहारिक नहीं होगा।
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अगस्त 2019 में कम से कम पेंशन 2000 रुपये से 3000 रुपये करने की बात कही थी, पर लेबर मिनिस्ट्री ने इसे लागू करने से मना कर दिया था। संसदीय समिति ने इस बारे में लेबर मिनिस्ट्री से जवाबतलब किया था। ईपीएफओ की सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के सुझाव को लागू करने से यानी मिनिमम पेंशन 2000 रुपये करने से 4500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। अगर इसे 3000 रुपये कर दिया गया तो सरकार पर 14595 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।