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ऑक्सीजन चाहिए तो पौधों को बचाया

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कोरोनाकॉल में भारत में चारों तरफ आॅक्सीजन की किल्लत देखी गई।  इसके लिए प्रकृति से छेड़छाड़ भी बहुत हद तक जिम्मेवार है। अगर पेड़ पौधे न हों तो धरती में आॅक्सीजन न हो और आॅक्सीजन न हो तो जीवन संभव न हो। इसलिए हमारे होने में प्रकृति का अमूल्य योगदान है। लाखों जीवों और जीव रूपों को हम नहीं जानते, लेकिन ये हमारे जीवित होने की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। जब यह जैव विविधता मजबूत नहीं होती तो हम कई तरह की कुदरत की नाराजगी झेलते हैं। भयानक बाढ़, सूखा, तूफान इन सबके पीछे जैव विविधता में किसी वजह से भी आयी कमी जिम्मेदार होती है। पेड़ पौध, मिट्टी, हवा, समुद्र, नदियां, कीड़े मकौड़े। ये सब मिलकर एक खूबसूरत दुनिया बनाते हैं। अगर इनमें से कुछ को खत्म कर दिया जाए, तो खूबसूरत दुनिया छिन्न भिन्न हो जाती है। इसलिए वनों की सुरक्षा हमारी संस्कृति के लिए ही जरू री नहीं है, यह हमारे जीवित रहने की बुनियादी शर्त है। इसी तरह छोटे से छोटे कीड़े मकौड़ों से लेकर जंगलों और समुद्र में रहने वाले बड़े-बड़े विशालकाय जानवरों का भी जिंदा रहना जरूरी है, तभी धरती जीवंत और आकर्षक रहेगी। इस सच को याद दिलाने के लिए ही हर साल 22 मई को जैव विविधता दिवस मनाया जाता है।

प्रकृति में जो जीव चक्र  है, उसमें कुछ छोटे जीव बड़े जीव प्रजातियों का भोजन बनते हैं ताकि बड़े जीव इन छोटे जीवों को नियंत्रित रखें और धरती में जीवन सुरक्षित और संतुलित रहे। धरती में जीवन की मौजूदगी में इस जैव विविधता का बड़ा योगदान है। इसलिए इसे बनाये रखना बहुत जरूरी है। अगर जीवन की विविधता नहीं बची तो फिर धरती में जीवन भी नहीं बचेगा। वैज्ञानिक इसीलिए चिंतित रहते हैं, क्योंकि हर गुजरते दिन के साथ इंसान अपने फायदे के लिए प्रकृति को अपने ढंग से नियंत्रित करने की कोशिश में लगा रहता है। वह प्रत्यक्ष रूप से गैर जरूरी जीवों और वनस्पतियों को धरती से खत्म कर देना चाहता है और सिर्फ उन जीवों और वनस्पतियों को हर तरफ फैलाना चाहता है, जो उसके लिए फायदेमंद हैं। लेकिन यह नासमझी है। क्योंकि अगर प्रत्यक्ष रूप से हमारे काम न आने वाले जीवों और वनस्पतियों को हमने खत्म कर दिया, तो जो हमारे काम की जीव प्रजातियां और वनस्पतियां हैं, वो भी नष्ट हो जाएंगी। क्योंकि उनका जीवन हमारे काम न आने वाली जीव जातियों व वनस्पति पर टीका है। धरती में लगातार बायोडायवर्सिटी का क्षरण हो रहा है, इसके लिए हमारी उपभोक्तावादी प्रवृत्ति जिम्मेदार है। पिछली दो सदियों में इंसान की कारगुजारियों से पृथ्वी की वनस्पतियों और जीवन प्रजातियों पर तो कई तरह के खतरे आये हैं, समुद्र के अंदर की हजारों जीव प्रजातियों को भी या तो इंसानों ने खाकर खत्म कर दिया है या फिर अपनी ऐशपूर्ण जीवनपद्घति के चलते इंसान ने इनकी जिंद्गी को खतरे में डाल दिया है। हालांकि वैज्ञानिक पूरी तरह से इस बात को लेकर कन्फर्म नहीं है कि दुनिया में आखिर कितनी जीव प्रजातियां हैं। वैज्ञानिकों के अलग अलग दावों के एक साझे अनुमान के मुताबिक दुनिया में 10 करोड़ तक विभिन्न तरह की जीव प्रजातियां हैं। लेकिन अभी तक कुल 14,35,662 प्रजातियों की ही पहचान हो पायी है। अनगिनत प्रजातियां अभी इंसान की सोच समझ और जानकारी में नहीं है।

इंसान द्वारा प्रकृति की पहचानी गई जीव प्रजातियों में से करीब 7,51,000 जीव प्रजातियां कीटों की हैं, 2,48,000 पौधों की, 2,81,000 जंतुओं की, 68,000 कवकों की, 26,000 शैवालों की, 4,800 जीवाणुओं की तथा हजारों विषाणुओं की प्रजातियों को हम पहचान चुके हैं। यानी इंसान इन्हें चिन्हित कर चुका है। सबसे चिंता की बात यह है कि कुदरत की इस जैव विविधता की दुनिया से 27,000 विभिन्न तरह की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। इनमें से ज्यादातर ऊष्णकटिबंधीय इलाकों के छोटे जीव हैं। अगर जैव विविधता के क्षरण की यही रफ्तार कायम रही तो विशेषज्ञों को चिंता है कि सन 2050 तक आते आते कहीं लाखों जीव खत्म न हो जाएं। इंसान सिर्फ जीव प्रजातियों को मार ही नहीं रहा, उसकी तमाम गतिविधियों से पर्यावरण का संतुलन कुछ इस तरह बिगड़ता है कि हजारों जीव प्रजातियों को जीवित रहना मुश्किल हो जाता है।

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