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जानिए महिलाओं के लिए किस उम्र में कौनसा योगासन रहेगा सही

Yoga

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अच्छे स्वास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम और सही खानपान के साथ-साथ उम्र के हर पड़ाव पर अपने शरीर और उसके संकेतों को पहचानना ज़रूरी है। उम्र के हर पड़ाव के लिए अपनी नियमित एक्सरसाइज़ में एक उपयोगी आसन को शामिल करने की सलाह दी जाती है ताकि हर उम्र की महिलाएं अपने शरीर में आने वाले बदलावों से सामंजस्य बिठा सकें। आइए, सेहतमंद बनने की ओर क़दम बढ़ाते हैं।

पड़ाव : टीनएज

हार्मोनल बदलावों का दौर

टीनएज यानी किशोरावस्था वह समय है जब लड़कियों के शरीर में बड़ी तेज़ी से बदलाव आते हैं। शरीर के बाहरी विकास के साथ ही हार्मोनल बदलाव भी आते हैं। इस उम्र में पीरियड्स की शुरुआत होती है। फिर आगे के चार-पांच सालों में मेन्स्ट्रुअल डिस्ऑर्डर्स, जैसे-हैवी, अनियमित या कम पीरियड्स का आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

टीनएज में सभी लड़कियों को सूर्यनमस्कार करना ही चाहिए। सूर्यनमस्कार प्राणायाम और योग का मिश्रण है। इससे शरीर में लचीलापन आता है और एकाग्रता बढ़ती है। शरीर में हो रहे हार्मोनल बदलावों से समन्वय बिठाने में मदद मिलती है। वहीं पीरियड संबंधी दिक्कतों के लिए सर्वांगासन, बद्धासन, अश्विनीमुद्रा और वक्रासन लाभदायक होते हैं।

टीनएज में करें :

सर्वांगासन

पीठ के बल लेट जाएं। पैर शरीर से दूर और एक-दूसरे से जुड़े होने चाहिए। बांहें शरीर के दोनों ओर और हथेलियां ज़मीन की दिशा में होनी चाहिए। अब हथेलियों से ज़मीन को दबाते हुए दोनों पैरों को छत की दिशा में सीधा उठाएं। हिप्स और कमर को ज़मीन से ऊपर उठाएं। कोहनी को मोड़कर कमर पर रखें। हाथों से सहारा देकर शरीर को 90 अंश के कोण में रखें। इस मुद्रा में 30 सेकेंड से 3 मिनट तक बनी रहें।

पड़ाव : ट्वेंटीज़

सबसे सेहतमंद दौर

महिलाओं के लिए उम्र का यह दशक सबसे सेहतमंद होता है। वे ख़ुद को ऊर्जा से भरा महसूस करती हैं। अधिकतर महिलाएं इस दशक के मध्य या अंतिम वर्षों में गर्भधारण करती हैं। अनियमित या कम पीरियड्स का आना या फिर पीरियड्स का लंबा खिंच जाना इस दशक की आम समस्याएं हैं। इस दशक में महिलाओं को गर्भधारण से संबंधित एक्सरसाइजेज़ की जानकारी होनी चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान तनावमुक्त रहें, संगीत सुनें और भ्रामरी तथा अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें। पहले ट्राइमेस्टर में आप सिट-अप्स कर सकती हैं। वहीं यदि आपको गर्भावस्था के दौरान पीठ दर्द की समस्या हो तो मार्जरासन, सेतुबंधासन, अनंतासन और बुद्धकोणासन करें। साथ ही वक्रासन (पेट की मांसपेशियों की मज़बूती के लिए) और उत्कटासन (जांघों और पेल्विस की मांसपेशियों की मज़बूती के लिए) सहायक साबित होंगे।

ट्वेंटीज़ में करें :

मार्जरासन

शरीर को टेबल टॉप पोज़िशन में ले जाएं। इसके अंतर्गत आपके हाथ और घुटने ज़मीन पर होंगे। घुटने बिल्कुल हिप्स के नीचे और कंधे व कुहनियों को एक रेखा में होना चाहिए। मेरुदंड, गर्दन और सिर को एक सीध में रखें। मेरुदंड को झुकाएं न। फिर शरीर का भार हथेलियों और घुटनों पर समान रूप से डालें और कमर को छत की दिशा में उठाएं।

उसके बाद चिन को छाती से लगाएं। अगले स्टेप में गहरी सांस लेते हुए पेट को नीचे की ओर ले जाएं और कमर को ऊपर की तरफ़। अंत में सिर को छत की दिशा में उठाकर सामने देखें। इस आसन से रीढ़ की हड्डी में पर्याप्त खिंचाव होता है शरीर लचीला बनता है। पीठ दर्द की समस्या से निजात मिलती है और आंतरिक अंगों को मज़बूती मिलती है।

पड़ाव : थर्टीज़

समस्याओं के शुरुआती निशानों का दौर

यह दशक महिला स्वास्थ्य के लिए अति महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसके अंतिम वर्षों में भविष्य की बीमारियों के निशान दिखने शुरू हो जाते हैं। पीसीओडी (पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिज़ीज़), यह समस्या तीसरे दशक की महिलाओं में दिखाई देती है। इसकी वजह से वज़न बढ़ना, मुहांसे, बालों का झड़ना और इन्फ़र्टिलिटी जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं।

पीसीओडी में सुप्तबद्धकोणासन, भरद्वाजासन और चक्की चलानासन से फ़ायदा होता है। इनसे लीवर, किडनी, पैंक्रियाज़, यूटरस और जननांगों का पूरा व्यायाम होता है। वहीं तनाव, मोटापे और अनियमित दिनचर्या के कारण गर्भधारण में दिक्कत महसूस करने वाली महिलाओं को बद्धकोणासन, विपरीत करणी और वज्रासन से काफ़ी मदद मिलती है। ये आसन माहवारी को नियमित करते हैं।

यदि आपको हाइपो थायरॉडिज़्म हो तो सर्वांगासन, विपरीत करणी, मत्यासन, हलासन, मार्जरासन और तेज़ गति से किए जाने वाले सूर्य नमस्कार से मदद मिलेगी। साथ ही कपाल भांति, भस्त्रिका और उज्जयी प्राणायाम भी करें। वहीं हाइपर थायरॉडिज़्म से परेशान लोगों को सेतुबंधासन, मार्जरासन, शिशुआसन, शवासन और धीमी गति से किए जाने वाले सूर्य नमस्कार से काफ़ी आराम पहुंचता है। उन्हें भ्रामरी, उज्जयी, शीतली और शीतकारी प्राणायाम भी करने चाहिए।

थर्टीज़ में करें :

चक्की चलानासन

दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जाएं। बांहों को एकदम सीधा करके दोनों हाथों की उंगलियों को एक-दूसरे में फंसाएं। शरीर को कमर के पास से ट्विस्ट करते हुए बांहों को मोड़े बिना हाथ को पैरों के अंगूठों को छूते हुए चक्की चलाने की तरह घुमाएं। यह आसान दोनों पैरों को एक-दूसरे से दूर-दूर रखकर भी किया जा सकता है। इससे पॉलिसिस्टिक ओवेरी सिन्ड्रोम के उपचार में मदद मिलती है।

पड़ाव : फ़ोर्टीज़

ख़ुद से प्यार करने का दौर

इस उम्र में शरीर में इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन की मात्रा घट जाती है। कैल्शियम की कमी की वजह से हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं। हार्मोन्स में उतार-चढ़ाव मेनोपॉज़ की ओर ले जाते हैं। इस उम्र की महिलाओं को ख़ुद से प्यार करते हुए इन बदलावों को स्वीकार करना चाहिए।

इस दशक में कैल्शियम की कमी से महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या हो जाती है। उन्हें शरीर में दर्द, जोड़ों में दर्द और कमज़ोरी की शिकायत होती है। प्राणायाम करने से मूड स्विंग नियंत्रित रहता है।

साथ ही घुटनों के लिए नीकैप टाइटनिंग एक्सरसाइज़ (ज़मीन पर पैर सीधा करके बैठें और नीकैप को ऊपर की ओर खींचें। 10 गिनने के बाद नीकैप को उसकी पूर्व स्थिति में छोड़ दें) करने से उसके आसपास की मांसपेशियां मज़बूत होती हैं और घुटनों के दर्द से आराम मिलता है। गर्दन के लिए नेक बेंडिंग और नेक रोटेशन करें, वहीं कंधों के लिए शोल्डर रोटेशन से फ़ायदा होगा। ये छोटे-छोटे व्यायाम शरीर के लचीलेपन को बनाए रखने में बड़ा योगदान देते हैं। मेनोपॉज़ के लिए सुप्तबद्धकोणासन, पद्मासन, पवनमुक्तासन, शिशुआसन और अश्विनी मुद्रा अहम् होते हैं

पड़ाव : फ़ोर्टीज़

सुप्तबद्धकोणासन

पीठ के बल लेट जाएं। फिर बांहों को शरीर के दोनों ओर पैर की दिशा में फैलाकर रखें। अब घुटनों को मोड़ें और तलवों को ज़मीन से लगाकर रखें। तलवों को नमस्कार की मुद्रा में एक-दूसरे के क़रीब लाकर ज़मीन से लगाएं। जितना संभव हो ऐड़ियों को जंघा के क़रीब ले आएं। इस स्थिति में 30 सेकेंड से 1 मिनट तक बनी रहें। अंत में हाथों से दोनों जंघा को दबाएं और धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लौट आएं। इससे पेल्विस, किडनी, ओवरीज़ और प्रोस्टेट ग्लैंड्स पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह मेनोपॉज़ के दौरान तनाव दूर करने में भी कारगर है।

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