नई दिल्ली| कोरोना संकट ने नौकरी बाजार में भी बड़ा बदलाव ला दिया है। बड़े शहरों के मुकाबले छोटे शहर विभिन्न क्षेत्रों के लिए रोजगार के बड़े गंतव्यों के रूप में उभर रहे हैं। स्टाफिंग फर्म एक्सफेनो की रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन खुलने के बाद से छोटे शहरों में एंट्री और जूनियर लेवल जॉब के अवसर बढ़े हैं। ऐसा घर से काम करने के चलन (वर्क फ्रॉम होम कल्चर) और मेट्रो और बड़े शहरों के मुकाबले छोटे शहरों में अनलॉक के बाद तेजी से मांग बढ़ने से हुआ है।
इस मौके को भुनाने के लिए कंपनियां छोटे शहरों पर फोकस कर रही हैं। कंपनियों की वेबसाइट और कई नियुक्ती फर्म के अनुसार, मौजूदा समय में छोटे शहरों में करीब 1.5 लाख एंट्री और जूनियर लेवल की नौकरियां हैं। बाजार विशेषज्ञ का मनना है कि आने वाले समय में यह ट्रेंड और बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि नौकरी के अवसर छोटे शहरों में पैदा करने के लिए सरकार भी बड़ा निवेश इंफ्रा प्रोजेक्ट के माध्यम से कर रही हैं। इसका असर जॉब मार्केट पर दिखना तय है।
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कोरोना के चलते दुनिया सहित भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। हालांकि, अनलॉक होने के साथ जो सुधार हो रहा है वह बड़े शहरों के मुकाबले छोटे शहरों में तेजी से हो रहा है। छोटे शहरों में मांग भी तेजी से बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल के मुकाबले अगस्त में सुधार को देंखे तो छोटे शहरों में इसकी रफ्तार 31 फीसदी तो बड़े शहरों में 22 फीसदी रही है। यानी, बड़े शहरों के मुकाबले कंपनियां के लिए अवसर छोटे शहरों में है। इसी को देखते हुए कंपनियों ने छोटे शहरों में अपने कारोबार को विस्तार देना और रोजगार देना शुरू किया है।
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के बाद कंपनियां अपना परिचालन लागत कम कर रही हैं। इसके लिए वह वर्क फ्रॉम होम के साथ कम वेतन वाले कर्मचारी को नियुक्त कर रही है। मेट्रो शहरों के मुकाबले छोटे शहरों में आसानी से कम वेतन पर काम करने को युवा तैयार हैं। वहीं, वर्क फ्रॉम होम ने सर्विस सेक्टर के लिए घर से काम करने की राह खोल दी है। इसको देखते हुए कंपनियां छोटे शहरों का रुख कर रही हैं। वहां उनको कम लागत में अच्छे कर्मचारी आसानी से मिल रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ, जयपुर, नासिक, गुवाहाटी, रांची, राजकोट, नागपुर, इंदौर आदि शहरों में सबसे अधिक नियुक्तियां अभी है। इसके साथ ही कंपनियां दूसरे छोटे शहरों में अपने काम को विस्तार देने की योजना बना रही है। कोरोना के बाद कंपनियों को लग गया है कि सिर्फ मेट्रो शहरों के सहारे टिके रहना सही नहीं है। इसलिए अब वह टियर टू और थ्री शहरों पर फोकस बढ़ा रही हैं।