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11वीं बैठक भी बेनतीजा : कृषि मंत्री तोमर बोले- कुछ ताकतें नहीं खत्म करना चाहतीं आंदोलन

नरेंद्र सिंह तोमर Narendra Singh Tomar

नरेंद्र सिंह तोमर

नई दिल्ली। केंद्र सरकार और किसानों के बीच शुक्रवार को हुई 11वें दौर की बैठक भी बेनतीजा रही। इसमें भी मुद्दे का कोई समाधान नहीं निकल पाया। किसान नेता तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांग पर पहले की तरह अड़े रहे।

बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि कुछ ताकतें हैं जो नहीं चाहती हैं कि आंदोलन खत्म हो।  11वें दौर की बातचीत में अगली बैठक की कोई तारीख तय नहीं हो पाई। सरकार ने आज अपने रुख में कड़ाई लाते हुए कहा कि यदि किसान यूनियन कानूनों को निलंबित किए जाने संबंधी प्रस्ताव पर चर्चा के लिए सहमत हो तो वह दोबारा बैठक करने के लिए तैयार है। इसके साथ ही किसान संगठनों ने कहा कि वे अब अपना आंदोलन तेज करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान सरकार का रवैया ठीक नहीं था।

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बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों के फायदे के लिए संसद में कृषि सुधार विधेयकों को पारित किया गया था। आंदोलन मुख्य रूप से पंजाब के किसानों और कुछ अन्य राज्यों के कुछ किसानों द्वारा किया जा रहा है। सरकार ने आंदोलन खत्म करने के लिए कई प्रस्ताव दिए, लेकिन जब आंदोलन की शुचिता खो जाती है तो कोई समाधान संभव नहीं होता। तोमर ने आगे कहा कि कुछ ताकतें हैं कि जो चाहती हैं कि आंदोलन जारी रहे और कोई भी नतीजा न निकले।

केंद्र सरकार ने पिछले दौर की बैठक में कानूनों को निलंबित रखने तथा समाधान ढूंढ़ने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने की पेशकश की थी। किसान नेताओं ने आज की बैठक के बाद कहा कि भले ही बैठक पांच घंटे चली, लेकिन दोनों पक्ष मुश्किल से 30 मिनट के लिए ही आमने-सामने बैठे। बैठक की शुरुआत में ही किसान नेताओं ने सरकार को सूचित किया कि उन्होंने बुधवार को पिछले दौर की बैठक में सरकार द्वारा रखे गए प्रस्ताव को खारिज करने का निर्णय किया है।

कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर सहित तीनों केंद्रीय मंत्रियों ने किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों से अपने रुख पर पुनर्विचार करने को कहा जिसके बाद दोनों पक्ष दोपहर भोज के लिए चले गए। किसान नेताओं ने अपने लंगर में भोजन किया जो तीन घंटे से अधिक समय तक चला। भोजन विराम के दौरान 41 किसान नेताओं ने छोटे-छोटे समूहों में आपस में चर्चा की, जबकि तीनों केंद्रीय मंत्रियों ने विज्ञान भवन में एक अलग कक्ष में प्रतीक्षा की। बैठक के बाद भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने कहा कि बातचीत टूट गई है क्योंकि यूनियनों ने सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। मंत्रियों ने किसान यूनियनों से कहा कि उन्हें सभी संभव विकल्प दिए गए हैं और उन्हें कानूनों को निलंबित रखने के प्रस्ताव पर आपस में आंतरिक चर्चा करनी चाहिए।

सूत्रों के अनुसार तोमर ने किसान नेताओं से कहा कि यदि वे प्रस्ताव पर चर्चा करना चाहते हैं तो सरकार एक और बैठक के लिए तैयार है। मंत्री ने यूनियनों का उनके सहयोग के लिए धन्यवाद भी किया और कहा कि हालांकि कानूनों में कोई समस्या नहीं है, लेकिन सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों के सम्मान में इन्हें निलंबित रखने की पेशकश की है। बैठक स्थल से बाहर आते हुए किसान नेता शिवकुमार कक्का ने कहा कि चर्चा में कोई प्रगति नहीं हुई और सरकार ने अपने प्रस्ताव पर यूनियनों से पुनरू विचार करने को कहा। कक्का बैठक से जाने वाले पहले व्यक्ति थे, लेकिन उन्होंने कहा कि यह कुछ निजी कारणों की वजह से है।

पिछले दौर में सरकार ने तीनों नए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन को स्थगित रखने और समाधान निकालने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने की पेशकश की थी। हालांकि बृहस्पतिवार को विचार-विमर्श के बाद किसान यूनियनों ने इस पेशकश को खारिज करने का फैसला किया और वे इन कानूनों को रद्द करने तथा एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी दो प्रमुख मांगों पर अड़े रहे।

किसान नेता दर्शनपाल ने कहा कि हमने सरकार से कहा कि हम कानूनों को निरस्त करने के अलावा किसी और चीज के लिए सहमत नहीं होंगे। लेकिन मंत्री ने हमें अलग से चर्चा करने और मामले पर फिर से विचार कर फैसला बताने को कहा। भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि हमने अपनी स्थिति सरकार को स्पष्ट रूप से बता दी कि हम कानूनों को निरस्त कराना चाहते हैं, न कि स्थगित करना। मंत्रियों ने हमें अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा।श्श् कुछ नेताओं ने आशंका जताई कि यदि किसान एक बार दिल्ली की सीमाओं से चले गए तो आंदोलन अपनी ताकत खो देगा।

भारतीय किसान यूनियन (असली अराजनीतिक) के अध्यक्ष हरपाल सिंह ने कहा कि अगर हम सरकार की पेशकश को स्वीकार भी कर लेते हैं, तो भी दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हमारे साथी भाई कानूनों को रद्द करने के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। वे हमें नहीं बख्शेंगे। हम उन्हें क्या उपलब्धि दिखाएंगे? उन्होंने सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया और आरोप लगाया कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि वह 18 महीने तक कानूनों के क्रियान्वयन को स्थगित रखकर अपनी बात पर कायम रहेगी। सिंह ने कहा कि हम यहां मर जाएंगे, लेकिन कानूनों को रद्द कराए बिना वापस नहीं लौटेंगे।

 

 

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