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’21’ से पूरा होगा ‘2022’ का मिशन, जानें क्या है मोदी का मास्टरस्ट्रोक

यूपी विधानसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियों ने अभी से ही सियासी समीकरणों को साधना शुरू कर दिया है। कृषि कानूनों और आंदोलन से उपजे किसानों की बची-खुची नाराजगी दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा दांव खेला है।

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की मोदी सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव लाकर एक तरह से आधी आबादी को भाजपा की तरफ फिर से मोड़ने की कोशिश की है। भाजपा नीत केंद्र सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र अब 21 साल करने का फैसला किया है। इसे कानूनी रूप देने के लिए सरकार ने बाल विवाह संशोधन विधेयक भी पेश कर दिया है, जिसे अब संसद की स्टैंडिंग कमेटी यानी स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है। माना जा रहा है कि यूपी चुनाव तक भाजपा इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहती है, ताकि इसका फायदा चुनावों में मिल सके।

हालांकि, यह भी हकीकत है कि जब से केंद्र सरकार लड़कियों के विवाह की आयु 21 साल करने का प्रस्ताव लाई है, तब से ही इसका विरोध हो रहा है। यूपी चुनाव को ध्यान में रखते हुए मुख्य विपक्षी पार्टियां तो सीधे तौर पर खुलकर आलोचना भी नहीं कर रही, मगर अंदर ही अंदर इसका विरोध जरूर कर रही हैं। खुद अखिलेश यादव ने भी इसे मौन स्वीकृति दे दी है। मगर यहां यह भी ध्यान रखने वाली बात होगी कि इस प्रस्ताव का सबसे अधिक विरोध मुस्लिम संगठन या मुस्लिम नेता ही कर रहे हैं। फिर भी बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने के फैसला किया है। इसमें महिलाओं की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव है। लोकसभा में इस बिल को पेश करने के बाद विचार-विमर्श और सिफारिशों के लिए इसे स्थायी समिति के पास भेजने का प्रस्ताव रखा गया।

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लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने वाले बिल को लेकर विपक्ष इतना भी हाय तौबा नहीं मचा रहा है, जैसा कि उसने कृषि कानूनों और तीन तलाक कानून के वक्त किया था। बावजूद इसके मोदी सरकार ने सॉफ्ट कॉर्नर दिखाते हुए बड़ी सहजता से इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया। सरकार के इस स्टैंड से साफ दिख रहा है कि सरकार किसी भी कीमत पर इस बिल को विपक्ष का चुनावी हथकंडा बनने नहीं देना चाहती। सरकार नहीं चाहती है कि विपक्ष को कृषि कानूनों की तरह इसे संसद से लेकर सड़क तक मुद्दा बनाने का मौका मिले।

मोदी सरकार के अब तक के कार्यशैली से यह सबको मालूम है कि जब सरकार कोई बिल लाती है तो उसे पास कराने के लिए लंबा इंतजार नहीं करती। सरकार चाहती तो इस 21 साल शादी वाले बिल को मौजूदा शीतकालीन सत्र में ही पास करा लेती, क्योंकि संसद का शीतकालीन सत्र 23 दिसंबर तक चलेगा। मगर सरकार ने ऐसा न करके इसे स्थायी समिति के पास भेजने का फैसला किया। सरकार के इस कदम के पीछे यूपी चुनाव का मकसद भी समझ आता है। क्योंकि यूपी चुनाव में अभी कुछ महीने बाकी हैं, ऐसे में लगता है कि सरकार अभी इसे पास कराकर इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में नहीं डालना चाहती थी।

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राजनीतिक जानकारों की मानें तो सरकार ने मौजूदा सत्र में इस बिल को पास न कराने का फैसला यूपी चुनाव को लेकर ही लिया होगा। मोदी सरकार इस बिल को यूपी चुनाव का अहम रणनीति का हिस्सा मानती है और इसके जरिये यूपी फतह का सपना देख रही है, क्योंकि चुनाव तक भाजपा इस मुद्दे को जीवित रखना चाहती है। सूत्रों की मानें तो यूपी चुनाव से ठीक पहले बजट सत्र के दौरान मोदी सरकार फिर से सदन में 21 साल वाले शादी के बिल को बहस के लिए लेकर आ सकती है। इसके बाद इस बिल पर बजट सत्र के दौरान ही कानूनी मुहर लगाकर यूपी के चुनाव में इस हथियार का इस्तेमाल करेगी। सूत्रों का कहना है कि चुनाव से ठीक पहले पास कराने में सरकार को अधिक फायदा दिख रहा होगा, वनिस्पत अभी के सत्र में।

भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में भी महिला वोटरों को साधने के लिए विशेष फोकस की हुई है। पूर्व के चुनावों में भी महिला मतदान बीजेपी के लिए निर्णायक साबित हुआ है। आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह वर्षों में, महिलाएं बड़ी संख्या में भाजपा को वोट देने के लिए सामने आई हैं और इसके परिणामस्वरूप, साल 2014, 2017 और 2019 में भाजपा ने महिला समर्थन से सबसे बड़ी जीत हासिल की है। उत्तर प्रदेश में मतदाताओं के रूप में महिलाओं की भागीदारी में अहम वृद्धि हुई है। पिछले तीन दशकों में महिलाओं के वोट में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2017 में महिलाओं का वोट प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले अधिक था। 2017 में पुरुषों का वोट फीसदी 60 तो महिलाओं का 63 फीसदी था।

चुनाव आयोग के लेटेस्ट डेटा के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में करीब 14 करोड़ 51 लाख मतदाता हैं। इसमें से 7।85 करोड़ पुरुष और 6।66 करोड़ महिलाएं हैं। एक तरह से देखा जाए तो 45 फीसदी महिला वोटर हैं। यही वजह है कि भाजपा लड़कियों के मुद्दे पर पार्टियां महिला वोटरों को साधने की कोशिश में जुटी है। इसकी एक वजह यह भी है कि प्रियंका गांधी लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे के साथ महिला वोटरों को साधने में जुटी हुई हैं। ऐसे में भाजपा के लिए लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने का फैसला यूपीप चुनाव के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।

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