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आपातकाल के 47 साल: जब भगवा देखते ही भड़क जाती थी पुलिस

Writer D by Writer D
25/06/2022
in Main Slider, शिक्षा
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emergency

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बेगूसराय। देश आजादी का अमृत महोत्सव (Amrit Mahotsav) मना रहा है तो ऐसे में भी आज लोग 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) द्वारा अपनी नाकामी छुपाने के लिए लगाए गए आपातकाल (Emergency) को नहीं भूले हैं। आज हर घर भगवा छा गया है, भगवा अपने शरीर पर रखना लोग शान समझ रहे हैं, उस समय भी लोग शान से भगवा वस्त्र धारण करते थे लेकिन आपातकाल के दौरान भगवा देखते ही पुलिस पागल हो जाती थी, भगवा रखने वालों को पकड़ कर मारपीट किया गया, उन्हें यातनाएं दी गई।

आपातकाल (Emergency) के दौरान पूरा देश कारागार में परिवर्तित हो गया था, देशहित में काम करने वाले विपक्ष के सभी नेताओं को रात में ही जगा कर जेल में जबरन डाल दिया गया। जो जैसे थे उसी तरह पकड़ लिया गया, ना किसी को कपड़ा पहनने दिया गया, ना परिजनों से बात करने दी गई। पूरे देश में उस समय कुव्यवस्था चरम पर था, लोग पकड़-पकड़ पर प्रताड़ित किए जा रहे थे तो बेगूसराय में भी बड़ी संख्या में लोगों को जेल भेजा गया था, उन्हें यातना दी गई थी जिंदा रहना मुश्किल कर दिया गया था।

आपातकाल (Emergency)के आज 47 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन आजाद भारत के इतिहास का वह अमिट काला धब्बा शायद ही भविष्य में भी लोगों के जेहन से समाप्त हो सकेगा। देश में जारी भ्रष्टाचार, कुव्यवस्था और सरकारी नाकामी से आक्रोशित लोग जब आंदोलन पर उतारू हुए और आपातकाल लगा तो बेगूसराय के चार सौ से अधिक देशप्रेमी सेनानियों को जबरदस्ती जेल भेजा गया। लोकतंत्र की हत्या करने वाली तानाशाही सरकार ने अपने तमाम विरोधियों को जबरदस्ती जेल में ठूंसकर आवाज दबाने का प्रयास किया।

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1975 में जनता को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किए जाने का कोई औचित्य नहीं था, लेकिन बेबुनियाद आंतरिक अशांति को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता कर आपातकाल लगा दिया गया। जबकि देश की जनता भ्रष्ट नेताओं से ऊब चुकी थी और पूरे देश में न्यू इंडिया के लिए लोग संगठित हो कर व्यवस्था में आमूल बदलाव के लिए अपनी जोरदार आवाज उठाने लगे थे तो आपातकाल के नाम पर जनता के मूल अधिकार छीन लिए गए, उनकी स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गई, तानाशाही शासन के द्वारा अपने मनचाहे तरीके से संविधान को गलत तरीके से परिभाषित किया गया।

प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई, ढ़ाई सौ से अधिक पत्रकारों को मारपीट कर जेल में बंद कर दिया गया था। सात विदेशी पत्रकारों को देश से निष्कासित कर दिया गया था। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भंग कर अखबारों के सरकारी विज्ञापन को बंद कर दिया गया, 51 अखबारों की मान्यताएं रद्द कर दी गई। इस दौरान बेगूसराय में छात्र, जनसंघ से जुड़े लोग, समाजवादी कार्यकर्ता के साथ सांगठनिक कांग्रेसी और मार्क्सवादी को भी जेल में जबरन ठूंस दिया गया था। आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों को जब जबरदस्ती जेल भेजा जाने लगा तो बेगूसराय भी उससे अछूता नहीं रहा।

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लोगों पर आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा कानून) की धाराएं लगाई गई। बेगूसराय में पूर्व सांसद एवं कृषि मंत्री रह चुके रामजीवन सिंह, जनसंघ के संस्थापक सदस्य सीताराम शास्त्री, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, जगन्नाथ प्रसाद सिंह समेत सैकड़ों लोग आजाद देश को आजादी दिलाने लोकतंत्र को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। आपातकाल में गिरफ्तार करने के दौरान सारी संवेदनाएं समाप्त हो गई थी। आपातकाल लागू होने से पहले जयप्रकाश नारायण बेगूसराय आए थे। जी.डी. कॉलेज के परिसर में जब जयप्रकाश नारायण की सभा हुई थी तो मंच से आवाज उठी थी ”जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान, जाग उठी है वानर सेना-जाग उठा वनवासी।” यह बात बेगूसराय युवाओं के मन में बैठ गया था और आपातकाल के बाद तक यह घर-घर गाया जाता रहा।

आपातकाल (Emergency) लागू होने के बाद बेगूसराय में 30 जून की रात से गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू हो गया था। देर रात सबसे पहले जनसंघ के संस्थापक सदस्य और तात्कालीन जिला मंत्री आचार्य सीताराम शास्त्री को गिरफ्तार किया गया। आपातकाल के 47 साल पूरा होने पर सीताराम शास्त्री ने  बताया कि 25 जून 1975 भारतीय प्रजातंत्र का काला दिवस था, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर पूरे देश के लाखों लोगों को जेल भेज दिया। जेल में मारपीट किया गया, यातनाएं दी गई, लोगों की जानें गई। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। शास्त्री बताते हैं कि आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके सरकार ने प्रशासनिक सहयोग से पूरे देश में जमकर तांडव मचाया था। 30 जून को एसपी रामचन्द्र खान के स्पेशल आदेश पर देर रात ऑफिसर इंचार्ज अमरेन्द्र कुमार सिंह के नेतृत्व में पुलिस ने आतंकवादी की तरह उठा लिया, वारंट मांगने पर मारपीट शुरू कर दिया गया और कपड़ा तक पहनने नहीं दे रहे थे।

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भगवा लूंगी देखते ही ऑफिसर इंचार्ज भड़क गए और लूंगी फेंक कर पिटाई कर दी। बेगूसराय जेल में कुव्यवस्था के खिलाफ आंदोलन किया तो उन्हें साथियों के साथ भागलपुर सेंट्रल भेज दिया गया। लेकिन जेल में भी छात्रों और कैदियों की लौ को बरकरार रखने के लिए गीत-कविता के माध्यम से प्रेरित करते रहे। आज भी लोग उनसे आपातकाल और उस दौर की कहानियां सुननेे-समझने आया करते हैं। सरकार को भारत के संविधान और यहां के लोगों की जिंदगी एवं उनकी स्वतंत्रता के साथ कुछ भी करने की आजादी मिल गई थी। 25 जून 1975 में किए गए आपातकाल की गलत घोषणा को 21 मार्च 1977 को हटा लिया गया और जनता ने कुछ ही महीनों के बाद वोट की अपनी ताकत से आपातकाल लगाने वालों के खिलाफ मतदान कर काले दिनों पर अपना फैसला दे मतदान के महत्व को स्पष्ट कर दिया। आपातकाल के 21 महीने भारत के काले दिन थे, उस काले दिन को याद करके हमें निरंतर लोकतंत्र को खतरे में डालने वाले तथ्यों पर विमर्श करते रहना चाहिए। क्योंकि देशवासियों को जीने और स्वतंत्रता के निहित अधिकार प्राप्त हैं, उसके बगैर जीवन निरर्थक है।

Tags: 47 years of emergencyaaj ka itihasemergencyemergency in indiaindira gandhitoday's history
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