लखनऊ। यूपी के मुख्यमंत्रियों के दो काल हैं। पहला- ब्राह्मण काल, 1946 से 1989 यानी 39 साल। इसमें कुल 6 ब्राह्मण सीएम बने और 20 साल तक यूपी को चलाया। दूसरा- ब्राह्मण शून्य काल, 1989-2021 यानी 31 साल। इसमें एक भी ब्राह्मण सीएम नहीं बना। आइए यूपी के मुख्यमंत्रियों की इस कहानी के दोनों कालों को बारी-बारी से देखते हैं।
यूपी का ब्राह्मण कालः 1946 से 1989, कुल 6 ब्राह्मण सीएम, सब कांग्रेस से
आजादी की लड़ाई आखिरी मुकाम पर थी। नेता वो जो अंग्रेजों की गद्दी हिला दे। 1925 में यूपी के लड़कों ने काकोरी में अंग्रेजों का खजाना लूटा। तब कोर्ट में उनकी पैरवी के कोई तैयार नहीं था। यही पर सामने आया यूपी का पहला ब्राह्मण नेता- गोविंद बल्लभ पंत।
ब्राह्मण सीएम 1ः स्वतंत्रता सेनानी गोविंद बल्लभ पंत
काकोरी कांड के आरोपी यूपी के लड़कों का केस लड़ा। फिर अंग्रेजों के स्कूल बंद कराने लगे। आजादी के एक साल पहले ही यूपी आजाद महसूस करने लगा। बड़े नेताओं ने सबकी सहमति ली और 1946 में पंत सीएम बन गए। संविधान बना तो फिर वही सीएम बने। सरदार पटेल का जब निधन हो गया तो यूपी छोड़कर वो केंद्र में गृहमंत्री बन गए।
ब्राह्मण सीएम 2: सुचेता कृपलानी, वो पहली महिला जो यूपी की सीएम बनी
बड़ी तगड़ी नेता थीं। 1936 में 20 साल बड़े आचार्य कृपलानी से शादी की। तब गांधी इनके विरोध में थे। लेकिन 1946 में खुद गांधी ने कहा कि मेरा साथ दो। 1952 चुनाव आए तो इनके पति की नेहरू से पटरी बिगड़ गई तो इन्होंने कांग्रेस छोड़ दीं। लेकिन फिर पति की भी नहीं और 1957 में कांग्रेस लौट आईं। बीएचयू में कई साल लेक्चरर रहीं थीं। यूपी वालों को समझती थीं। एक के बाद एक चुनाव लड़ती गईं। हर बार जीतती गईं। 1963 में कांग्रेस जीती तो बुलाकर इनको सीएम बनाया गया।
ब्राह्मण सीएम 3ः बनारस के कमलापति त्रिपाठी
खांटी बनारसी थे। पढ़ते-लिखते थे। आज अखबार में पत्रकार रहे, किताबें लिखीं। नेता तो आजादी की लड़ाई में ही बन गए थे। लेकिन खरगोश नहीं, कछुआ चाल चलते थे। धीरे-धीरे कद बढ़ाते गए। 1971 में कांग्रेस ने चुनाव जीती तो कमलापति की अनदेखी नहीं कर सकी। सीएम बना दिया। लेकिन इनकी सरकार में पुलिस ने विद्रोह कर दिया। इसे पीएसी विद्रोह कहते हैं। 5 दिन तक पुलिस ने काम नहीं किया। पूरी व्यवस्था ढह गई। भ्रष्टाचार के आरोप लगे। केंद्र में इंदिरा विरोध बढ़ रहा था। यूपी में कांग्रेस अधमरी हो गई और चुनाव आ गए।
ब्राह्मण सीएम 4ः राजनीतिक तिकड़म के मास्टर हेमवती नंदन बहुगुणा
हेमवती बचपन से नेता थे। अपनी बात मनवाने के लिए घर के बच्चों को अपने साथ खड़ा कर लेते थे। पढ़ने गए तो वहां छात्र नेता बन गए। आजादी की लड़ाई में गरम दल नेताओं साथ रहे। आजादी के बाद यूपी के तेज-तर्रार कहे जाने लगे। कमलापति के शासन में जब लगा कि कांग्रेस अधमरी हालत में आ गई तब इन्हें काम पर लगाया। 1973 में कांग्रेस ने इन्हें आगे करके चुनाव लड़ा, जीती और इन्हें सीएम बनाया।
ब्राह्मण सीएम 5ः राजीव गांधी से टकराने वाले श्रीपति मिश्रा
1980 से 1985 तक यूपी में गजब भूचाल आया था। एकदम फिल्मी हिसाब-किताब। कांग्रेस जीती थी और बीपी सिंह सीएम बने थे। तब बुंदेलखंड में डाकुओं का बड़ा आतंक था। वीपी ने ऐलान किया कि डाकुओं को खत्म कर दूंगा नहीं तो रिजाइन कर दूंगा। डाकुओं ने उनके भाई को ही मार दिया। और वीपी ने रिजाइन कर दिया। तब आनन-फानन में श्रीपति मिश्रा 1982 में मुख्यमंत्री बनाए गए। लेकिन 1984 में अपना कार्यकाल खत्म करने के महीने दिन पहले ही राजीव गांधी से भिड़ बैठे, और इस्तीफा दे दिया।
ब्राह्मण सीएम 6ः नारायण दत्त तिवारी यूपी के आखिरी ब्राह्मण सीएम
कुल 3 बार सीएम रहे। जब-जब कांग्रेस को लगता कि पार्टी चूर-चूर हो जाएगी, वो यूपी के सबसे तिकड़मी ब्राह्मण नेता को याद करती। पहली बार जब पूरा देश इंदिरा के खिलाफ हो रहा था जब 21 जनवरी 1976 से 30 अप्रैल 1977 यही महाराज यूपी के सीएम थे और इंदिरा के साथ खड़े थे।
जब श्रीपति मिश्रा ने राजीव गांधी से लड़ बैठे और अचानक से इस्तीफा दे दिया तो 3 अगस्त 1984 से 24 सितम्बर 1985 राजीव ने इन्हीं पर भरोसा जताया। आखिरी बार जब यूपी में कांग्रेस की सरकार थी तब भी 25 जून 1988 से 5 दिसम्बर 1989 तक यही सीएम थे। इनका नाम तो नाम तो नारायण दत्त तिवारी था लेकिन लोग एनडी तिवारी कहते हैं।
यूपी का ब्राह्मण शून्य कालः 32 साल से एक भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं
साल 1980, मंडल कमीशन ने तब के गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को एक रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने 3743 पिछड़े वर्ग की जातियों की पहचान की। उन्हें 27% आरक्षण देने को कहा। खूब बवाल कटा। लेकिन यूपी की ओबीसी और अनुसूचित जाति के नेता जान गए थे उनका समय आने वाला है।
‘मुलायम सिंह यादव जिंदा रहे न रहे क्रांति रथ का पहिया चलता रहेगा’
लड़ते-लड़ते 7 साल बीत गए। साल 1987, शहर-कानपुर, कस्बा-अकबरपुर। मुलायम सिंह यादव एक क्रांति रथ लेकर निकले। पूरे प्रदेश में रथ-रथ घूमने लगे। जब बांदा पहुंचे तो रथ पर खूब पत्थर फेंके गए। मुलायम को भी चोटें आईं पर उनका कहना था ‘मुलायम सिंह यादव जिंदा रहे न रहे क्रांति रथ का पहिया चलता रहेगा’। हुआ भी यही, ना रथ रुका ना मुलायम। 5 दिसम्बर 1989 को मुलायम सिंह जनता दल से सीएम बने।
केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति कोरोना पॉजिटिव, आश्रम के 26 लोगों में भी हुई पुष्टि
मंडल कमीशन लागू होने से ब्राह्मणों को सबसे तगड़ा झटका लगा
13 अगस्त 1990 को वो दिन आ ही गया, जिसने ब्राह्मणों को 32 साल से सीएम की कुर्सी से दूर रखा हुआ है। हुआ ये था कि वीपी सिंह पीएम की कुर्सी पर थे। वो खुद तो ठाकुर जाति से आते थे। लेकिन उन्होंने उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं। तब से अब तक सिर्फ ठाकुर, यादव या अनुसूचित जाति के ही सीएम बने हैं।
1989 के बाद अब तक कुल 7 सीएम बने, 4 बीजेपी, 2 सपा और 1 बसपा से
भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी ने 1989 के बाद से अब तक प्रदेश में चार बार सरकार बनाई है। इसमें उसने दो ठाकुर और 1 बनिया और 1 लोधी राजपूत का मौका दिया। सपा ने दोनों यादव और बसपा ने इकलौती अनुसूचित जाति से सीएम चुना।
फिलहाल ब्राह्मणों की हालत, जिधर ऊंट बैठे, उधर बैठ जाओ
>> फिलहाल यूपी की राजनीति में कोई बड़ा ब्राह्मण चेहरा नहीं है, जो सीएम की दौड़ में दिखाई दे रहा हो। कुछ दिन पहले ही ब्राह्मण वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी ने कमेटी बनाई थी। लेकिन उसमें कोई सीएम बनने वाला चेहरा नहीं है।
>> कहते हैं कि 2007 चुनाव में बहुत हद तक ब्राह्मण बसपा के साथ हो गए थे तब मायावती की सरकार बनी थी।
>> 2009 में बसपा सरकार में तमाम ब्राह्मणों पर एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज हुए। इससे ब्राह्मण नाराज हो गए और 2012 विधानसभा चुनाव में सपा के साथ जा मिले।
>> लेकिन यादववाद के विरोध में 2017 में ब्राह्मणों ने भाजपा को समर्थन दिया।
इस वक्त ब्राह्मण बीजेपी के भी खिलाफ बताए जा रहे हैं। इसलिए बीजेपी ने एक कमेटी बनाई है। लेकिन सही कहें तो ये यूपी की गद्दी का ब्राह्मण शून्य काल चल रहा है।