धर्म डेस्क। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को हरियाली तीज मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए 16 श्रंगार कर माता पार्वती और भोलेनाथ को पूजती हैं। शिव पुराण के अनुसार, यही वो दिन है जब भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। हरियाली तीज को लेकर एक पौरणिक कथा प्रचलित है जो हम आपको यहां सुना रहे हैं। तो चलिए पढ़ते हैं हरियाली तीज की कथा।
माता पार्वती को उनके पुर्वजन्म के बारे में याद दिलाने के लिए शिवजी ने उन्हें तीज की कथा सुनाई थी। शिवजी ने कहा, हे पार्वती तुम मुझे वर के रूप में पाना चाहती थीं जिसके लिए तुमने हिमालय पर घोर तप किया था। तुमने सर्दी-गर्मी, बरसात आदि सभी कष्ट भी सहे। इससे तुम्हारे पिता बेहद दुखी थे।
विष्णु भगवान के भेजने पर देवर्षि नारद तुम्हारे यहां आए और उन्होंने तुम्हारे पिता से कहा कि विष्णुजी आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस पर अपना मत दें। यह सुनकर पर्वतराज बेहद खुश हुए और वो अपनी पुत्री का विवाह विष्णुजी के साथ संपन्न कराने को तैयार हो गए। यह समाचार नारदजी ने विष्णुजी को दिया। लेकिन जब यह बात तुम्हें पता चली तो तुम व्याकुल हो उठीं क्योंकि तुमने मेरे लिए घोर तप किया था और मुझे मन ही मन अपना पति मान चुकी थीं। यह बात तुमने अपनी सखी को बताई।
तुम्हारी सहेली ने तुम्हारी मदद करने के लिए तुम्हें एक घने वन में छुपा दिया। यह वन ऐसा था कि तु्म्हारे पिता भी यहां नहीं पहुंच सकते थे। इस वन में भी तुमने तप बंद नहीं किया और तुम लगातार तप करने लगीं। पर्वतराज तुम्हारे न मिलने से बेहद परेशान थे। वो चिंता में थे कि अगर विष्णुजी बारात लेकर आए और तुम नहीं मिली तो क्या होगा।
शिवजी ने माता पार्वती से कहा, धरती-पाताल एक कर तुम्हारे पिता ने तुम्हें ढूंढने की कोशिश की लेकिन तुम नहीं मिली। क्योंकि तुम एक गुफा में मेरी आराधना कर रही थीं। तुमने रेत का शिवलिंग भी बनाया था। तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूरी करने का वचन दिया। इस बीच तुम्हारे पिता तुम्हे खोजते-खोजते गुफा में पहुंच गए। तुम्हें वहां देख पर्वतराज बेहद खुश हुए। तुमने अपने पिता से कहा कि तुमने मुझे अपना वर चुना है और इसके लिए घोर तप भी किया। आज तप सफल हो गया है। शिवजी ने मेरा वरण भी कर लिया है। अगर आप मेरा विवाह शिवजी से करते हैं तो ही मैं आपके साथ चलूंगी।
तुम्हारी बात सुनकर वो मुझसे तुम्हारा विवाह कराने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद उन्होंने हमारा विनाह विधि-विधान के साथ संपन्न कराया। हे पार्वती! जिस तरह तुमने मेरा कठोर व्रत किया और हमारा विवाह संपन्न हो सकता। उसी तरह अगर कोई स्त्री इस व्रत को पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करती है तो उसे भी मैं मनवांछित फल प्रदान करूंगा। उस स्त्री को तुम जैसा ही सुहाग का वरदान प्राप्त होगा।