धर्म डेस्क। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी सुबह 8:18 तक है उसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भुवनेश्वरी जयंती मनायी जाती है। इस दिन मां भुवनेश्वरी की साधना के लिए बड़ा ही प्रशस्त है। माना जाता है कि इस ही के दिन मां भुवनेश्वरी का अवतरण हुआ था। दस महाविद्याओं में से एक मां भुवनेश्वरी इस ब्रहमांड की शक्ति का आधार हैं। इनका स्वरूप बड़ा ही कांतिपूर्ण और सौम्य है। स्वयं शंकरजी भी इनके पाठ से ही समस्त आगमों तथा तन्त्रों में विज्ञानी हुए हैं।
गुरू के सानिध्य में बैठकर गुरू के मुख से अभ्यास करके शिवालय में, शून्य घर में या चौराहे पर जो मनुष्य इनके मंत्र का जप करता है, वह योगी होता है, एकाग्रचित्त होकर जो इसे सदा पढ़ता या सुनता है, वह दीर्घायु और सुखी होता है, उसकी वाणी ओजस्वी हो जाती है। वह व्यक्ति गुरू के चरणों में श्रद्धावान होकर स्त्रियों का प्रिय होता है।
मंत्रमहार्णव के अनुसार जो नारी दुर्भाग्य से पीड़ित है, धन-धान्य से विमुक्त है, रोग और कष्टों से परेशान है, उसे भोजपत्र पर देवी का मंत्र लिखकर बाएं हाथ में बांधना चाहिए, इससे उसे सुख-सौभाग्य, दोनों प्राप्त होंगे। पुरुषों को यह मंत्र दाहिने हाथ में बांधना चाहिए। अतः अगर आप भी इन सब चीज़ों को पाना चाहते हैं तो आज के दिन आपको मां भुवनेश्वरी की साधना जरूर करनी चाहिए ।
भुवनेश्वरी देवी का मंत्र
देवी का एकाक्षरी मंत्र है- ह्रीं
विशेष मंत्र है- ‘ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्ये नम:’
जप का दक्षांश भैरव मंत्र का जप करें
दक्षांश हवन, दक्षांश तर्पण, दक्षांश मार्जन करें
दक्षांश ब्राह्मण भोज भी करें
‘ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्ये नम:’
देवी भुवनेश्वरी का एकाक्षरी मंत्र है-
” ह्रीं “
और उनका विशेष मंत्र है –
“ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्ये नम: ।।”
मंत्र मैं एक बार फिर दोहरा देता हूं, आप चाहें तो नोट भी कर सकते हैं- “ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्ये नम:।”
आज इस मंत्र का कम से कम 11 सौ बार जाप करना चाहिए। साथ ही आपको बता दूं- किसी भी मंत्र का जितना जप किया जाता है, उस जप का 10 परसेन्ट हवन करना चाहिए, उसका 10 परसेन्ट तर्पण, उसका 10 परसेन्ट मार्जन और उसका 10 परसेन्ट ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। आपको बता दूं- मां भुवनेश्वरी का होम पीपल, गूलर, पलाश, बरगद की समिधाएं, पीली सरसों, खीर और घी आदि से करना चाहिए । आज मंत्र जाप के बाद आप इनमें से किसी भी एक चीज़ का होम कर सकते हैं।