लाइफ़स्टाइल डेस्क। हिंदू धर्म में दीपावली का त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। दिवाली उत्सव धनतेरस के साथ शुरू हो जाता है। इस दिन सोना, चांदी, बर्तन आदि खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के खास मौके में भगवान धनवंतरी की पूजा-अर्चना की जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि धनतेरस क्यों मनाया जाता है और इस दिन सोना-चांदी आदि खरीदना शुभ क्यों माना जाता है।
शास्त्रों के मुताबिक, धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि समुद्र मंथन से सोने का कलश लेकर उत्पन्न हुए थे, इसलिए इस दिन सोना या फिर बर्तन खरीदने की परंपरा है। धनवंतरि के उत्पन्न होने के 2 दिन बाद समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं, इसलिए दीपावली से 2 दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। कहा जाता है कि धनवंतरि विष्णु भगवान का अंश हैं और वो देवताओं के वैद्य हैं, इसलिए इनकी पूजा करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। मान्यता है कि संसार में विज्ञान और चिकित्सा के विस्तार के लिए भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था।
धनतेरस मनाने की पौराणिक कथा
एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि एक बार राजा बलि के भय से देवतागण परेशान थे और विष्णु ने वामन का अवतार लिया था उस वक्त वह यज्ञ स्थल पर पहुंचे। वहां असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने विष्णु भगवान को पहचान लिया, उन्होंने राजा बलि से कहा कि ये वामन जो कुछ भी मांगे देना मत क्योंकि यह विष्णु का रूप है और देवताओं की मदद के लिए आए हैं। लेकिन राजा बलि दानी भी थे उन्होंने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी।
वामन बने विष्णु ने उनसे तीन पग भूमि मांगी, और राजा बलि ने दी भी दी। उसी वक्त गुरु शुक्राचार्य ने छोटा रूप धारण किया और वामन बने विष्णु के कमंडल में जाकर छिप गए, विष्णु भगवान को ज्ञात हो गया था कि शुक्राचार्य उनके कमंडल में हैं, उन्होंने कमंडल में कुश इस तरह से रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई।
भगवान वामन ने खुद का अवतार बड़ा किया और पहले पग में धरती नाप ली, दूसरे पग में अंतरिक्ष नाप लिया, तीसरा पग रखने की जगह नहीं बची तो बलि ने वामन बने विष्णु के पैरों के नीचे अपना सिर रख लिया। इस तरह बलि की हार हुई और देवताओं के बीच बलि का भय खत्म हो गया। कहा जाता है कि इसी जीत की खुशी में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।
धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन, कपड़े आदि खरीदते हैं। लेकिन आपने देखा होगा कि सबसे ज्यादा जोर सोना और चांदी पर दिया जाता है। फिर चाहें एक सिक्का ही क्यों न खरीदा जाए। शास्त्रों में एक पीछे एक कथा बताई है।