नयी दिल्ली। समुद्र के खारे पानी में बनने वाले महंगे मोतियों को अब तालाब, नदी के मीठे पानी में भी बनाया जा सकेगा। पर्ल एक्वाकल्चर वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने नई तकनीक के जरिये इसे संभव कर पाने का दावा किया है।
इस नयी खोज पर डॉ. सोनकर ने बताया कि समुद्री मोती में एरागोनाइट क्रिस्टलाइजेशन होता है जिसकी वजह से उसमें चमकीले पदार्थ (पर्ली कंपोनेंट) के अवयवों का पारस्परिक जोड़ मोती में चमकीले तत्व की मात्रा को बढ़ा देता है। मीठे पानी में एरागोनाइट क्रिस्टलाइजेशन बहुत मामूली होता है और वहां अधिक मात्रा में कैल्साइट क्रिस्टलाइजेशन होता है जिसमें चमकीले पदार्थ की मात्रा भी पांच से सात प्रतिशत ही होती है। इससे कुछ वर्षों में उसकी चमक गायब हो जाती है और इसी कारण से मीठे पानी का मोती सस्ता होता है, वहीं एरागोनाइट क्रिस्टलाइजेशन की वजह से समुद्री पानी के मोती की चमक सालों साल बनी रहती है और यह मीठे पानी के मोती के मुकाबले कई गुना महंगा होता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की लखनऊ स्थित संस्था नेशनल ब्यूरो आॅफ फिश जेनेटिक रिर्साेसेज के निदेशक डा. कुलदीप के लाल ने इसे नया अन्वेषण करार देते हुए कहा कि यह पूरी दुनिया में मोती उत्पादन की प्रचलित पारंपरिक पद्धति में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली खोज है और इससे मोती उत्पादन के क्षेत्र में नये रास्ते खुलेंगे।
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डा. सोनकर ने कहा कि मोती के निर्माण में मेन्टल काफी अहम भूमिका निभाता है जो सीप के कठोर बाह्य शरीर के अन्दर का भाग है और इसी मेन्टल के स्राव के कारण मोती पर चमकीली परतें चढ़ती हैं। हमने जीन एक्सप्रेशन (जीन अभिव्यक्ति) का इस्तेमाल कर सीप के एरागोनाइट क्रिस्टलाइजेशन करने वाले जीन को सक्रिय किया और सीप को नियंत्रित वातावरण में रखा। इसके जो परिणाम सामने आये हैं वह अद्वितीय हैं। अब मीठे पानी में हम मनचाहे रंग के मोती बनाने में सक्षम हैं।
उन्होंने कहा कि हमने जिस नयी प्रौद्योगिकी का प्रयोगकर मनोनुकूल परिणाम हासिल किये हैं, उसका प्रयोग क्वीन कोंच (समुद्री शंखनुमा जीव) में भी मोती बनाने के लिए किया जा सकता है जिसमें मोती बनाने के लिए सर्जरी करना बेहद कठिन माना जाता है।
विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत है कि यह शोध अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है।
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डा. लाल कहते हैं, मौजूदा समय में डॉ. सोनकर का शोध इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण है कि उन्होंने मीठे पानी में वैसे रंगीन और चमकीले मोती बनाने में सफलता हासिल की है जो सिर्फ समुद्री जीव द्वारा समुद्र के खारे पानी में ही बनाये जा सकते थे।
उल्लेखनीय है कि डा. सोनकर ने 17 साल की उम्र में ही मीठे पानी में मोती बनाकर पूरी दुनिया में भारत का नाम रौशन किया था। इस शोध की वजह से ही विश्व के प्रथम अंतरराष्ट्रीय पर्ल कांफ्रेंस में अपना शोध पत्र प्रस्तुत करने के लिए अमेरिका के हवाई द्वीप में उन्हें राजकीय मेहमान कै तौर पर आमंत्रित किया गया था।