सियाराम पांडे ‘शांत’
कोविड—19 महामारी से पूरी दुनिया परेशान है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। जिस तरह कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए देश के कई राज्य नाइट कर्फ्यू लगाने पर विचार कर रहे हैं, कई उस पर अमल कर भी चुके हैं। ऐसे में कारोबार का एक अंश तक ही सही, प्रभावित होना स्वाभाविक है। बमुश्किल देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही थी कि कोरोना की दूसरी लहर ने सब गुड़ गोबर कर दिया। इससे चिंतित भारतीय रिजर्व बैंक ने लोगों को राहत देने के लिए मध्य का रास्ता निकाला है। वर्ष 2021—22 की पहली मौद्रिक नीति की समीक्षा क्रम में उसने अपने उदार नीतिगत रुख का परिचय दिया है जो उद्योग जगत से जुड़े लोगों को भी अच्छा लगा है। उनका मानना है कि रिजर्व बैंक के इस रवैये से कारोबार को संबल मिलेगा। अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का यह कहना कि कोरोना महामारी के मद्देनजर न सिर्फ ब्याज दरों को मौजूदा स्तर पर बनाए रखा जाएगा अपितु जरूरत पड़ी तो ब्याज दरों में भी कटौती की जा सकती है,अपने आप में सुखद तो है ही, देश के मुरझा रहे चिंतित चेहरों पर हरियाली भरी मुस्कान लाने का प्रयास भी है। हालांकि रिजर्व बैंक ने वर्ष 2020 में कोरोना को देखते हुए बैंक के रेपो रेट में 1.75 प्रतिशत की कटौती की थी। अभी रेपो रेट 4 प्रतिशत है। इसकी वजह से बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ओर से हो लोन 6.90 प्रतिशत और आटो लोन 8.75 प्रतिशत की दर पर मिल रहे हैं। इस दर में कोई बदलाव न होना उपभोक्ताओं के लिए किसी बड़ी राहत से कम नहीं है।
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27 मार्च 2020 को कोरोना संकट से निपटने के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने गरीबों को राहत देने की घोषणा की थी और उसके दूसरे ही दिन रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट 0.75 प्रतिशत घटाकर 4.4 प्रतिशत कर दिया था लेकिन रिवर्स रेपो यानी जब बैंक रिजर्व बैंक के पास पैसा रखते हैं तो उन्हें जिस रेट से ब्याज मिलता है, उसमें 0.90 प्रतिशत की कटौती की गई थी जिससे वह 4 प्रतिशत हो गया था।
रिजर्व बैंक की इस घोषणा का असर यह हुआ था कि बैंकिंग व्यवस्था में तीन लाख 74 हजार करोड़ रुपए की नकदी बाजार और अर्थव्यवस्था में इस्तेमाल के लिए निकल आई थी। 30 अगस्त, 2020 को ऋण की ईएमआई को लेकर परेशान उपभोक्ताओं को रिजर्व बैंक ने लोन रीस्ट्रक्चरिंग का एलान कर तकरीबन 2 साल तक की राहत दी थी। इसके तहत बैंक ग्राहक के ऋण की पुनर्भुगतान प्रक्रिया को बदल सकने,ऋण अवधि बढ़ाने,पेमेंट हॉलिडे देने का विकल्प तय करने की स्थिति में आ गए थे।
आवास, शिक्षा, वाहन पर लिए गए ऋण की रीस्ट्रक्चरिंग, गोल्ड लोन, पर्सनल लोन की ईएमआई के लिए भी उसे विकल्प हासिल हो गए थे। इस योजना स्कीम के तहत कंज्यूमर ड्यूरेबल लोन, लोन अगेंस्ट सिक्योरिटीज की भी भी रीस्ट्रक्चरिंग की गई थी। इससे ग्राहकों की ईएमआई भी कुछ कम हो गई थी। लोन रीस्ट्रक्टरिंग से ईएमआई को कुछ महीने तक के लिए टाला भी गया था। इसी तरह रिजर्व बैंक ने बैंकों को अपने पास नकद रकम रखने की पाबंदी यानी कैश रिजर्व रेश्यो भी पूरे एक प्रतिशत घटाकर तीन प्रतिशत कर दी थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले रिजर्व बैंक ने अंतरिम लाभांश के रूप में सरकार को 28 हजार करोड़ रुपये देने की भी घोषणा की थी।
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भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में राज्यों के लिए 51,560 करोड़ रुपये की अंतरिम अथोर्पाय अग्रिमों की सीमा को सितंबर तक बढ़ा दिया है ताकि उन्हें कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से पैदा हुए वित्तीय तनाव से निपटने में मदद मिल सके। इसके साथ ही आरबीआई ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की कुल अंतरिम अथोर्पाय अग्रिम की सीमा बढ़ाकर 47,010 करोड़ रुपये प्रति वर्ष कर दी है जो फरवरी 2016 में तय 32,225 करोड़ रुपये की सीमा के मुकाबले 46 प्रतिशत अधिक है।
उन्होंने कहा है कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि मुद्रास्फीति तय लक्ष्य के भीतर बनी रहे। साथ ही यह उम्मीद भी जताई है कि चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में खुदरा मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत पर रहेगी। यह और बात है कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों और लॉजिस्टिक लागतों के चलते विनिर्माण और सेवाएं महंगी भी हो सकती हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में सीपीआई मुद्रास्फीति को संशोधित कर पांच प्रतिशत किया गया है।
इसमें संदेह नहीं कि भारतीय रिजर्व बैंक के उदार निर्णयों से जहां आम जन को राहत मिली है, वहीं इससे विपक्ष की पेशानियों पर बल भी मिले हैं। रिजर्व राशि को समय—समय पर जनहित में रिलीज करने के उसके निर्णयों की आलोचना भी हुई है लेकिन अर्थ की तरलता बनाए रखने के दायित्व से रिजर्व बैंक पीछे भी कैसे रह सकता है। अब यह सरकार को सोचना है कि वह इस विषम कोरोना काल में भी उद्योगों का पहिया कैसे घुमा पाती है?