ठंड के में सर्दी-खांसी की समस्या आम रहती है लेकिन अगर लगातार कई दिनों तक खांसी आ रही है और उसके साथ बलगम की भी शिकायत है तो यह ब्रोंकाइटिस हो सकता है। इसके लक्षणों में शामिल है – लगातार खांसी, सिर दर्द, सांस लेते समय आवाज आना और सांस लेने में कठिनाई होना। फेफड़ों में सांस जिस रास्ते आती और जाती है तो उस अंग को श्वास नली कहते हैं। यदि श्वास नली में जलन और सूजन हो तो ब्रोंकाइटिस हो सकता है। इसके कारण ज्यादा बलगम बनता है। ब्रोंकाइटिस को ब्रोन्कियल ट्यूबों की सूजन भी कहा जाता है।
एक्यूट ब्रोंकाइटिस की बात करें तो यह धूल, धुएं, वायु प्रदूषण, तंबाकू के धुएं जैसी चीजों के बीच सांस लेने या वायरस के कारण होता है। एक्यूट ब्रोंकाइटिस बहुत आम है। बैक्टीरिया भी इसके होने का कारण बन सकता है। इसके लक्षण आमतौर पर सर्दी-जुखाम ही होते हैं जिसमें नाक बहने लगती है, खांसी होती है, सिर में हल्का दर्द रहता है। एक्यूट ब्रोंकाइटिस में एक से डेढ़ हफ्ते में सुधार हो जाता है। यदि इस अवधि के बाद भी सुधार नहीं हो रहा हो और यह स्थिति 18-20 दिनों से ज्यादा समय तक हो तो चिकित्क से संपर्क करना चाहिए।
क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस गंभीर बीमारी है और इसका सबसे आम कारण सिगरेट पीना होता है। इस बीमारी में खांसी समय के साथ बढ़ती है और कई बार महीनों तक रह सकती है। बुखार और थकान इसके दो मुख्य लक्षण हैं। यदि बुखार 100.4 डिग्री फेरेनहाइट हो और सर्दी के साथ सीने में दर्द, खांसी हो तो चिकित्सक से सलाह लें | ब्रोंकाइटिस के 20 मामलों में से 1 मामले में निमोनिया होता है। ऐसा तभी होता है जब संक्रमण फेफड़ों में फैलता है।
ब्रोंकाइटिस के लक्षणों को कम करने के लिए लाइफ स्टाइल में बदलाव जरूरी है। सबसे पहले धूम्रपान से दूरी बना लें और ऐसी किसी चीज के संपर्क में न आएं जो फेफड़ों को परेशान करती हो। धूल, धुएं वाली जगह जाने से बचें। घर में भी हों तो हवा को नम रखने की कोशिश करें। ब्रोंकाइटिस के लक्षण नजर आ रहे हों तो सामान्य से ज्यादा तरल लें। न तो ज्यादा ठंडी और न ज्यादा गर्म हवा में रहें।
सर्दी या एक्यूट ब्रोंकाइटिस वाले किसी व्यक्ति के संपर्क में न आएं क्योंकि इससे इन्फेक्शन की आशंका रहती है। यह तब होता है जब ब्रोंकाइटिस किसी वायरस या बैक्टीरिया के कारण हुआ हो। इसलिए कोई छींकता है या खांसता है तो संक्रमण दूसरों में फैल सकता है।
पानी पीने से फेफड़ों में मौजूद बलगम पतला होता है। मूलिन (एक प्रकार की औषधि) की चाय भी इस स्थिति में आराम दिलाती है। नियमित रूप से फेफड़ों को स्वस्थ रखने संबंधी व्यायाम करें। कुछ मरीजों को डॉक्टर इन्हेलर और ऑक्सीजन थेरेपी की सलाह देते हैं।