डॉ. रमेश ठाकुर
नर्स (Nurse) का नाम आते ही सफेद या आसमानी वस्त्र में किसी रोगी की सेवा करती युवती की तस्वीर आंखों के सामने उभर कर आती है। चिकित्सा कार्यों में सहयोग देने वाली युवतियों ने इस कार्य को इतना महान बना दिया है कि लोग इन्हें बहुत आदर और प्रेम से ‘सिस्टर’ कहकर पुकारते हैं। बिना भेदभाव के वह इस मुंह बोले रिश्ते को अपने पेशे के साथ-साथ बखूबी निभाती भी हैं। इसीलिए ये नर्स चिकित्सा में सेवा, समूचे स्वास्थ्य तंत्र और उससे जुड़ी तमाम चिकित्सीय प्रणालियों की ‘रीढ़’ मानी जाती हैं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहायक के रूप में इनके योगदान की जब बातें होती हैं तो शब्द कम पड़ जाते हैं। 12 मई को ‘अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस’ (International Nurse Day) है जो पूरी तरह से इन्हीं के कर्तव्यों को समर्पित है। नर्सों का योगदान तो हमेशा से सराहनीय रहा ही है। पर, कोरोना महामारी में इनके समक्ष जो चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हुईं, उनका भी इन्होंने डटकर मुकाबला किया। कोविड-19 से लड़ने में सिस्टर्स ने अपनी जान की बाजी भी लगा दी। कोरोना में दूसरों की सेवा करते-करते कई नर्सों की जान चली गई। तब ना सिर्फ हिंदुस्थान ने बल्कि समूची दुनिया ने इनके काम को दिल से सराहा। संसार इस कठोर सचाई से परिचित है कि नर्सों के बिना स्वास्थ्य तंत्र ना सिर्फ अधूरा है बल्कि असहाय भी और बेबस भी होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नर्सों को सम्मान देने के लिए इस बार के नर्स दिवस (International Nurse Day) की थीम भी रखी है, जो उनके साहस को समर्पित है।
नर्सिंग स्वास्थ्य की देखरेख और अस्पतालों में उनके रखरखाव से संबंधित सबसे बड़ा पेशा है। स्वास्थ्य का पूरा ढांचा उन्हीं के कंधों पर होता है। इंजेक्शन लगाने से लेकर, मरहम पट्टी आदि की जिम्मेदारी सिस्टर्स को दी जाती है। हालांकि नर्सिंग क्षेत्र में पुरुष स्टाफ भी है, पर महिलाओं से काफी कम है। इसके दो मूल कारण हैं। पहला, महिला नर्स में मरीजों को ममता की करुणा दिखती हैं। दूसरा, वह अपनी डयूटी को जिम्मेदारी से निभाती हैं। यही कारण है नर्सों को अच्छे से प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वह मरीजों को मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और चिकित्सकीय तौर पर मदद कर सकें। एक बात और, नर्सिंग क्षेत्र में आजतक कोई भ्रष्टाचार या घपला भी नहीं हुआ। जबकि कई चिकित्सकों और अस्पतालों की कारगुजारी के किस्से यदाकदा आते ही रहते हैं।
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तकरीबन सभी अस्पताल नर्सों के हवाले ही होते हैं। बड़े से बड़ा अस्पताल क्यों न हो, चाहें कोई नामीगिरामी चिकित्सक ही क्यों ना हो, बिना नर्सिंग स्टाफ के कोई भी मरीजों का इलाज अच्छे से नहीं कर सकता। कोविड काल ऐसा वक्त था, जब जानलेवा वायरस के संक्रमण से कोई भी कतराता था। ऐसे में नर्सें मरीजों की देखरेख में जुटी थीं। तब की तस्वीरें आंखों से आज भी गुजरती हैं, तो उन्हें मात्र महसूस करके भी कलेजा कांप उठता है। नर्सिंग क्षेत्र के योगदान को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र और उनके समकक्ष साझेदार स्वास्थ्य संगठन ने सभी मुल्कों से अपील की है कि वह स्वास्थ्य कर्मियों पर अधिक से अधिक निवेश करें। ये संयुक्त वकालत कई मायनों में लाभकारी भी है। क्योंकि मानव शरीर अब बीमारियों का घर बनता जा रहा है। नई-नई किस्म की बीमारी और वायरस ने नाक में दम किया हुआ है। इसलिए स्वास्थ्य तंत्र को अब दुरुस्त करना होगा।
अगर इस पेशे की मौजूदा स्थिति पर नजर डालें, तो लगता है अब हम बहुत पिछड़े हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार पूरे विश्व में 2 करोड़ 20 लाख नर्सें और 20 लाख दवाइयां हैं, जो वैश्विक स्वास्थ्य कर्मचारियों की कुल संख्या का आधा हिस्सा हैं। कुल मिलाकर पूरा का पूरा हेल्थ सिस्टम उन्हीं पर टिका है। भारत में इनकी संख्या करीब अस्सी लाख के आसपास है। इसके बावजूद नर्सों की जरूरत और भी ज्यादा महसूस होने लगी है। समय अगर ऐसा ही रहा तो निश्चित रूप से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की आवश्यकता को पूरा करने के लिए संसार को कई करोड़ अतिरिक्त स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जरूरत पड़ेगी, जिनमें तकरीबन आधी संख्या नर्सों और दवाइयों की ही होगी। पेशे के इतिहास की बात करें तो नर्सिंग की संस्थापक आज से करीब 200 वर्ष पूर्व ‘सिस्टर फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ द्वारा की गई थी, जिनकी याद में प्रत्येक 12 मई को श्रद्धांजलि स्वरूप इंटरनेशनल नर्स डे मनाते हैं।
नर्सों (Nurses) के योगदान को हम भूलकर भी कमतर नहीं आंक सकते। उनके काम की जितनी प्रशंसा और सराहना की जाए, कम है? इसलिए आज के दिन उनके साहस और निष्ठा प्रयाण कर्तव्य की जय जयकार करने का दिन है। वर्ष 2019 में यूएन में विश्व भर के नेताओं का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने आपस में मिलकर मंथन किया था, जिसमें नर्सों की ज्यादा से ज्यादा नियुक्तियां, दवाइयों और नर्सों को प्राथमिक स्वास्थ्य में प्राथमिकताएं दी जाएंगी। उनके लिए बीमा और जरूरी सुविधाएं देने पर भी विचार हुआ था। काम आगे बढ़ ही रहा था कि कोविड का दौर शुरू हो गया। हालांकि ये योजना अभी भी खटाई में पड़ी है। उम्मीद है देर-सबेर इस पर मंथन किया जाएगा।