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कुछ पढ़के सो, कुछ लिखके सो, तू जिस जगह से जागा सबेरे, उस जगह से बढ़के सो

Writer D by Writer D
22/05/2023
in राजनीति, उत्तराखंड, राष्ट्रीय
0
Hindi

CS Upadhyay

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देहारादून। तो पिछली सात मई, 2023 को देश के नाम लिखी ‘” पाती “‘ के बाद ‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nyay) इस देशव्यापी-अभियान की यात्रा में तीन परिघटनाएं घटित हुई पहली-संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन् का मामला 16 वीं लोकसभा में संसद के पटल पर रखने वाले और गांव-गंवईयों को जीकर राजनेता बने अर्जुनराम  मेघवाल का देश का कानून-मंत्री (स्वतंत्र-प्रभार) बनना । यह ठीक ही हुआ कि 2012 तक कांग्रेसी और उसके बाद भाजपाई बने किरेन रिजिजू की जगह मातृभाषा के जानकार और अपेक्षाकृत विनम्र, मृदुभाषी मेघवाल को कानून-मंत्री बनाया गया।

दूसरी पाती जारी होने के बाद नरैण-दादू और अमित चाचू की आज की सतरंगी भाजपा के नखविहीन एवम् दंतविहीन अखिल भारतीय प्रधान जगत् प्रकाश नड्डा के अनेक सहायकों में से एक सहायक का मेरे फोन पर लगातार WATSAPP- फोन आना । स्मृतियों के कोलाज में लौटता हूँ तो दिसम्बर, 2019 स्मरण आता है, जब मेरे भाई एवम् 1975 के आपातकाल में सबसे कम आयु के बाल-सत्याग्रही रहे एडवोकेट पण्डित राजेश्वर दयाल उपाध्याय की प्रथम श्रद्धांजलि सभा में उनके प्रधान को आमंत्रित करने हेतु किये गये सात MAIL यही सृष्टि के विशिष्ट-प्रसव बिना आवाज किये गटक गये थे ,फिर प्रधान जी के कुल जमा सात सहायकों ने अपने मालिक की इतनी अलग-अलग सूचनाएं परिवार का जन-संवाद देख रहे लोगों को दी कि उनका सम्पूर्ण-वण॔न यहाँ सम्भव नहीं है फिर अन्त में सूचना आयी कि उनके प्रधान जी तो दीनदयाल उपाध्याय जी के परिवार को पहचान नहीं पा रहे हैं । भाई पण्डित राजेश्वर दयाल उपाध्याय जी ने आगरा के थाना छत्ता के सामने खड़े होकर तब सत्याग्रह किया था,जब पापा मीसा-बन्दी के रूप में जेल में बन्द थे और हमारा पूरा घर सील था ।प्रधान के इस स्मृति-लोप ने उस समय माथा पीटने के अलावा और किया भी क्या जा सकता था।

तीसरा– वर्धा से एक माता की चिठ्ठी आयी, 78 वर्षीय इस माता ने मुझे  ‘शिष्ट-विद्रोही ‘ इस प्रकार  लिखा । चार पृष्ठों की इस चिट्ठी में  कई प्रेरणादायी बातें हैं लेकिन एक वाक्य है, जो मेरे स्मृति-पटल  पर अंकित हो गया है, वह यह कि ‘राष्ट्राय- स्वाहा, राष्ट्राय इदम् न मम्’ आज देश के तमाम हिस्सों से  मोबाइल पर सूचना आ रही है कि मेघवाल को उनका संकल्प याद दिलाया जाय, यह पाती उसी निमित्त  है यदि देश के हिन्दी-भाषी नये क़ानून-मंत्री इस पाती को पढ़ रहे हों तो इसका जवाब जरूर  दें।

मैं निर्धनता या अन्य विवशता के कारण अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाया या पायी परन्तु आपके प्रयासों के कारण एल-एल.एम. कर पा रहा हूँ या पा रही हूँ तो सचमुच, मैं ऐसा अनुभव करता हूँ जैसा एक मां अपनी सन्तान के सर्वोच्च-अंक प्राप्त करने पर खुश होती है ।

कदाचित् आप भूल रहे हैं कि ‘मातृभाषा ‘, ‘ संघर्ष ‘, और ‘बलिदान ‘ मेरे ‘रक्त ‘ व ‘वंश ‘ में है,  दशकों के मेरे सतत् संघर्ष के मुकाबले अडिग रहकर सफलता प्राप्त करने के पीछे एक मजबूत रीढ़ वाला इंसान है जो अन्दर से मुझे कभी ‘थकने-हारने ‘ नहीं देता । मातृभाषा मेरे थके कदमों को गतिमान देती है । मातृभाषा के लगातार ‘अपमान ‘ और ‘उपेक्षा’ से मुझे लड़ाई की ‘नई-वजह ‘ मिल ही जाती है । ‘ मातृभाषा की राजनीति ‘ और ‘ राजनीति की मातृभाषा’ से परे, मैं मायके में आई उस बेटी की तरह मगन हूँ जो पीहर पहुँचकर ससुराल के सारे कष्टों व मान-अपमान को भूल जाती है । मेरा एकाकी जीवन मेरी विवशता नहीं बल्कि पसन्द है । मेरी चेतना में सर्दी-गर्मी, जाड़ा-पाला, ढिबरी-रोशनी, धूल-धककड़, कीचड़-पानी, आंधी-तूफान, बाढ़-महामारी सब-कुछ साथ है ।

तलब-ए-आशिक-ए-सादिक में असर होता है, जरा देर से होता है, मगर होता है….

जो धरती जिन्दगी को ‘पनाह ‘ देती हैं और जो भाषा जिन्दगी को  ‘रफ्तार ‘ देती है उसका मर्म तो वही जानेगा-समझेगा जो उसके नजदीक-निकट खड़ा होगा ।वातानुकूलित कक्षों में बैठकर गोष्ठियों, सम्मेलनों, आयोजनों, वक्तृताओं और वाणी-विलास से मातृभाषा को प्राणवायु नहीं मिलेगी,यह खेल बहुत खेला जा चुका है, इसे रोकना हर भारतवंशी का दायित्व है। ‘कविता ‘ और ‘क्रान्ति ‘ एक साथ चलाने वालों को मातृभाषा, माँ की तरह सहज-सरल, ममतामयी-समतामयी व स्वाभाविक कैसे लग सकती है? उनकी चिंताएं मुखर कैसे हो सकती है? मुझे अपने उन सभी साथियों से भी कोई शिकायत नहीं है ,जिन्होंने मेरे साथ अखबारों में काम किया, उस समय के संवाददाता- मित्र आज देश के बड़े अखबारों के सम्पादक है लेकिन वे सभी सरकारी-विज्ञप्तियां छापने में अस्त-व्यस्त-मस्त और फिर पस्त हैं, मातृभाषा की प्रतिष्ठा के देशव्यापी-अभियान को छापने-दिखाने-सुनाने के लिए न उनके पास न कागज हैं और न समय। मुझे उन भारतवंशियों से भी कोई शिकायत नहीं है जो दिन-रात मोबाइल की स्क्रीन पर आंखें गढ़ाये रहते हैं अपने सारे जरूरी काम स्थगित करते रहते हैं  लेकिन मातृभाषा की पुनर्स्थापना के देशव्यापी-अभियान ‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nyay) की टीमों द्वारा प्रेषित सूचनाओं की सराहना करने, उस पर अपने सुझाव प्रेषित करने, यहाँ तक कि मात्र प्रेषित करने तक का समय उन विशिष्ट-प्रसवों के पास नहीं है, वे दिन-रात अतिवादी एवम् असत्य खबरों को आगे बढ़ाने में, उनकी सराहना करने में अपना जीवन खपा रहे हैं लेकिन वे नहीं जानते हैं कि एक हिन्दी-साधक को लगातार पराजित करने की कुंठित-मानसिकता व पूर्वाग्रह के बावजूद मातृभाषा ही तो उसे ‘माँ ‘ की तरह सामने खड़े होकर हंसाती है, हौंसला बढ़ाती है और उसमें अपराजेय रहने का भाव जाग्रत करती है।

वीतराग मुखर्जी, मेरे वप्पा दादाजी ( देश के पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ) और मेरे दाऊदादाजी (पण्डित अटल बिहारी वाजपेयी ) का संतति-दल  और आज की ‘ईस्टमैनकलर’ ( बहुरंगी) भाजपा ने लगता है कि केवल राजा और राजा ही बने रहने की विक्षिप्त-  मानसिकता से अभिशप्त व श्रापित होकर अपने समूचे राजनीतिक-मैदान में ‘आप्रवासी ‘ एवम् ‘सर्वदलीय’ परिक्रमा-रथी काउण्टर खोल दिया है। 2012 में कांग्रेस से आये किरन रिजिजू और उत्तर-प्रदेश में कार्यरत सभी राजनीतिक-दलों में परिक्रमा कर सुख-साधन बटोरने वाले सत्य प्रकाश सिंह बघेल अब आपकी न्याय-नाव के खेवनहार हैं ।

यह देश मानता है कि मातृभाषा का एक व्यक्तिनिरपेक्ष एवम् परिस्थिति-निरपेक्ष साधक उच्च-न्यायालय या किसी उच्च-सोपान पर पहुँचकर भी सुख-साधन नहीं बटोरता बल्कि वहाँ भी मातृभाषा की प्रतिष्ठा ही करता, एक समर्पित ‘अदीब’ को उसके कृतज्ञ-राष्ट्र की तरफ से  मिला यह पुरस्कार दुनिया में मिलने किसी भी सबसे बड़े पुरस्कार के मुकाबिल सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता रहेगा । आप्रवासियों एवम् सर्वदलीय-परिक्रमा-रथियों का असली ‘ब्लू-प्रिन्ट् ‘ जब नजर आयेगा जब अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, भगवा से ‘ सतरंगी-इन्द्र धनुष हुई भाजपा का तिलिसम खत्म होगा,तब भी क्या ये नवोदित व नौसिखिए राष्ट्रवादी तथा भगवाधारी दल के साथ रहेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा!! अभी तो भारत-विजय अभियान चालू-आहे, फिलहाल हम उस नजारे का इंतजार ही करें।

मातृभाषा के अडिग-अपराजेय साधक पर हुए लगातार प्रहारों के बावजूद ‘हिन्दी से न्याय’ यह देशव्यापी अभियान  बहुत तेज-गति से दौड़ रहा है, जगह-जगह ‘हिन्दी से न्याय’ अभियान के साथी इसे गति दे रहे  हैं। कुछ सच्चाईयां हैं जो देश के खबरिया-चैनल्स,पोर्टल, प्रिन्ट्-मीडिया और सभी संवाद-माध्यमों से गायब हैं। देश को यह सब इस प्रत्याशा के साथ प्रेषित है कि इन वीडियोज को पूरा सुनें और देखें तथा अपने अधिकतम् परिजनों, मित्रों, सहयोगियों एवम् परिचितों को प्रेषित करें । यह ‘भारत’ का ‘भारत’ के लिए अभियान है । इसमें भारत का तेज है, भारत का  त्याग है, भारत का तप है, भारत का तत्व है, भारत का तर्क है, भारत का तारूणय है, भारत का तीर है, भारतभारत की तलवार है, भारत की  तिलमिलाहट है, भारत की तितीक्षा है, भारत का तीखापन है,भारत की सच्चाई है, भारत की अच्छाई है— ‘झूठ, फरेब, वाणी-विलास और छद्म-छलियापन नहीं हैं ।

Tags: CS Upadhyayhindi se nyayUttarakhand News
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