सोलह श्राद्ध का शुक्रवार को आठवां दिन था। श्राद्ध के साथ पाठ का आयोजन भी किया जा रहा है। 14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) का दिन बहुत खास रहेगा। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि यह पितृ पक्ष का आखिरी दिन होता है। इस दिन पितरों के लिए विशेष अनुष्ठान होंगे, जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध उनकी तिथि पर नही कर पाए या उनकी तिथि ज्ञात नहीं है तो वो लोग सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर उनका श्राद्ध कर सकते हैं।
सर्वपितृ अमावस (Sarva Pitru Amavasya) पर तर्पण के शुभ मुहूर्त
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) तिथि 13 अक्टूबर की रात 09 बजकर 50 मिनट पर प्रारम्भ होगी और 14 अक्टूबर की रात 11 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार सर्व पितृ अमावस्या 14 अक्टूबर को मनाई जाएगी। सर्वपितृ अमावस्या के दिन तर्पण के 3 शुभ मुहूर्त हैं। कुतुप मूहूर्त – सुबह 11:44 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक रौहिण मूहूर्त – दोपहर 12:30 बजे से 01:16 बजे तक अपराह्न काल – दोपहर 01:16 बजे से 03:35 बजे तक सर्वपितृ अमावस्या पर होता है।
इन लोगों का श्राद्ध- सर्व पितृ अमावस्या तिथि पर परिवार के उन मृतक सदस्यों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि और चतुर्दशी तिथि को हुई हो, अमावस्या तिथि (Sarva Pitru Amavasya) पर किया गया श्राद्ध परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करता है इसलिए इस दिन सभी पूर्वजों के निमित्त भी श्राद्ध करना चाहिए। साथ ही जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी अमावस्या तिथि पर किया जाता है।
इसलिए अमावस्या श्राद्ध को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) कहा जाता है। इसके अलावा परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु हुई हो, उनके निमित्त भी सर्व पितृ अमावस्या के दिन अनुष्ठान कर सकते हैं।
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) पर बन रहे दुर्लभ संयोग
इस साल 14 अक्टूबर को पितृ पक्ष मोक्ष अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) को मोक्षदायिनी अमावस्या भी कहते हैं। इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर बहुत ही शुभ संयोग बन रहा है। इस बार अमावस्या के दिन शनिवार होने के चलते इसे शनिचरी अमावस्या भी कहा जाएगा। इस दिन साल का अंतिम सूर्य ग्रहण भी लगने जा रहा है। इस दिन शुभ इंद्र योग भी बन रहा है। सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) अश्विन माह में पड़ने से इसका महत्व और बढ़ गया है। इन शुभ संयोगों में पितरों का तर्पण कर उन्हें प्रसन्न और तृप्त किया जा सकता है।