बांदा। घरों की बालकनी और छत पर चहचहाने वाली गौरैया (Sparrow) नामक चिड़िया की प्रजाति धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। हालांकि अभी तक यह गणना नहीं हो पाई है कि इनकी संख्या कितनी घटी है, लेकिन इनका कम संख्या में नजर आना ही, इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यदि इनका संरक्षण न किया गया तो आने वाले समय यह पक्षी किस्से और कहानियों तक ही सीमित हो जायेगा।
इसी खतरे को भांपते हुए बांदा के समाजसेवी और पक्षी बचाओ अभियान के संयोजक शोभाराम कश्यप अपने हाथों से बनाए गए घोंसले जगह-जगह टांग कर चिड़ियों के प्रजनन की राह आसान बना रहे हैं। जिससे अब हर साल 1000 गौरैया के बच्चे जन्म ले रहे हैं।
गौरैया (Sparrow) की घटती आबादी निश्चित रूप से चिंता की बात है, क्योंकि यह पर्यावरण को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाती है। दरअसल बदले परिवेश में घरों की जगह गगनचुंबी इमारतों ने ले ली है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया के रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। इधर, मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगें उनकी जान लेने के लिए आमादा हैं। ये तंरगें गौरैया (Sparrow) की दिशा खोजने वाली प्रणाली एवं उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। ज्यादा तापमान भी गौरैया के लिए जानलेवा होता है। इन कारणों से गौरैया खाना और घोंसले की तलाश में शहरों से पलायन कर रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी इन्हें चौन नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि गांव-देहात तेजी से शहर में तब्दील हो रहे हैं।
वहीं बांदा में गौरैया (Sparrow) के संरक्षण के लिये विशेष अभियान चलाया जा रहा है। विश्व गौरैया दिवस (Sparrow Diwas) के एक दिन पहले मंगलवार को पक्षी बचाओ अभियान में जुटे समाजसेवी शोभाराम कश्यप ने नगर पालिका परिषद बांदा के सभासद घनश्याम राजपूत के आवास 7108 वां घोसला बांधकर अभियान को आगे बढ़ाया।
2010 में शुरू किए गए इस अभियान के अंतर्गत अब तक साढे पांच सौ घोसला शहर के विभिन्न स्थानों फॉरेस्ट विभाग की नर्सरी, रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज, महिला महाविद्यालय समेत तमाम जगह वहां के पेड़ों पर इन घोसलों को बंधवा चुके हैं। साथ ही इन घोसलों में गौरैया के लिये दाना व पानी का प्रबंध कर गौरैया को बचाने का संकल्प दिलाया। वह बताते हैं कि उनके बांधे गए घोसलों में हर साल गौरैया के दो दो बच्चे जन्म लेते हैं। इस तरह हर साल करीब एक हजार बच्चे जन्म ले रहे हैं। हमारा 16 हजार घोसला बांधने का लक्ष्य है।
बांदा में पक्षी बचाओ अभियान में बीते कई वर्षों से जुटे समाजसेवी शोभाराम कश्यप गौरैया के संरक्षण के लिये अपने ही खर्च पर फलों के लिये इस्तेमाल होने वाले लकड़ी के खोखे से घोंसले तैयार करते आ रहे हैं। वे अपने घर पर ही खाली समय में फलों के बॉक्स आरी से काटकर इन्हें एक विशेष संरचना देते हुए कील जड़कर तैयार करते हैं। गौरैया पक्षी को लुभाने के लिये उनके इस विशेष घर (घोंसले) के लिये उन्होंने हरे रंग का चुनाव किया है। वे अपने कुछ चुनिंदा साथियों के साथ पूरे साल इस अभियान में डटे नजर आते हैं।