इस साल तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष द्वादशी यानी 2 नवंबर को पड़ रहा है। द्वादशी की की शुरुआत दो नवंबर की सुबह 7 बजकर 31 मिनट से हो रही है और समापन 3 नवंबर सुबह 5 बजकर 7 मिनट पर हो रही है। द्रिक पंचांग के मुताबिक, तुलसी विवाह भगवान विष्णु या उनके अवतार भगवान कृष्ण के साथ तुलसी के पौधे अर्थात देवी तुलसी का अनुष्ठानिक विवाह है। इसमें तुलसी को देवी वृन्दा व शालग्राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है।
आमतौर पर लोगों का सवाल होता है कि तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) से पहले किस तरह की तैयारी करनी चाहिए। दरअसल, इस दौरान एक खास बात का ध्यान रखना चाहिए। मान्यता है कि अगर तुलसी के पौधे पर मंजरी निकल आई है तो उसे तुरंत निकाल देना चाहिए। कहा जाता है कि तुलसी में जितनी मंजरी कम होगी उतना ही तुलसी देवी को ज्यादा लाभ होगा। तुलसी पर मंजरी आने का मतलब होता है कि उन्हें पीड़ा होना शुरू हो गई है। जितनी ज्यादा मंजरी होगी उतनी ज्यादा उन्हें पीड़ा होगी। अगर मंजरी हटा दी गई तो पीड़ा दूर हो जाएगी।
तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) की पूजा विधि
द्रिक पंचांग में बताया गया है कि व्रती को तीन महीने पहले से ही तुलसी के पौधे का सिंचन, पूजन एवं पोषण करना चाहिए। प्रबोधिनी एकादशी, भीष्मपञ्चक अधवा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विवाह मुहूर्त के अन्तर्गत तोरण-मण्डप आदि की रचना करें। इसके बाद चार ब्राह्मणों सहित गणपति एवं मातृकाओं का पूजन करें। नान्दी श्राद्ध एवं पुण्याहवाचन करें।
मन्दिर में स्थित विग्रह के समक्ष स्वर्ण निर्मित श्रीलक्ष्मीनारायण व तीन माह पूर्व से पोषित तुलसी को और स्वर्ण व रजत निर्मित माता तुलसी को पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर विराजमान करें। भगवान श्री लक्ष्मीनारायण एवं देवी तुलसी को विराजमान करके स्वयं पत्नी सहित उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) विधि के अनुसार, गोधूलीय वेला में वर अर्थात भगवान श्रीविष्णु का पूजन करें। देवी तुलसी का कन्यादान करें। तत्पश्चात कुशकण्डी हवन एवं अग्नि परिक्रमा करें। वस्त्र-आभूषण आदि दान करें। श्रद्धा अनुसार ब्राह्मण-भोज कराएं। ब्राह्मणों को विदा कर स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। इस प्रकार व्रत-परिचय में वर्णित सरल तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) विधि संपंन्न हो जाएगी।









