Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

इजरायल और फिलिस्तीन में स्थायी समाधान जरूरी

Israel and Palestine

Israel and Palestine

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष विराम तो हो गया है लेकिन यह कितने दिनों के लिए यह कह पाना बेहद मुश्किल है। संघर्ष किसी समस्या का निदान नहीं है लेकिन जिस येश्रुशलम को लेकर विवाद है,  वह यहूदी, ईसाई और इस्लाम जैसे तीन धर्मों के मानने वालों के लिए धार्मिक महत्व रखता है। इसलिए तीनों उस पर अपने-अपने तरीके से दावे करते हैं। श्रद्धा का केंद्र होने के बावजूद पिछले सौ वर्षों से भी अधिक समय से रुक-रुक कर यहां खूनी संघर्ष होते रहे हैं। इतिहास पर गौर करें तो इजराइल-फिलिस्तीन विवाद ईसा मसीह के जन्म से भी पुराना है।

बाद में ब्रिटिश साम्राज्य के शुरुआती दौर में दुनिया के अनेकों कोनों से पलायन कर फिलिस्तीन को अपना ठिकाना बनाने वाले यहूदी कहते हैं कि बाइबल में यीशु ने इजराइल के क्षेत्र का चुनाव यहूदियों के लिए किया था। इससे इतर, यहीं पर स्थापित ‘अल अक्सा’ मस्जिद, मक्का मदीना के बाद मुस्लिमों की धार्मिक श्रद्धा का दूसरा बड़ा स्थान है। मुस्लिम धर्मगुरु मानते हैं कि पैगम्बर मुहम्मद ने यहीं से जन्नत की यात्रा शुरू की थी। फिलिस्तीनी यह तर्क भी देते आए हैं कि वह अपने ही देश में शरणार्थियों की भांति रहने को मजबूर हैं, जबकि वहां के मूल निवासी होने के नाते उक्त भूमि पर सर्वप्रथम अधिकार उन्ही का है। 1948 में इजराइल के गठन के साथ शुरू हुआ तनाव पहले से ही समय-समय पर उभार लेता रहा है। 1956 में स्वेज नहर पर नियंत्रण को लेकर मिस्र और इसराइल का आमने-सामने आना हो या 1967 में हुए छह दिन के युद्ध के दौरान यहूदियों और अरब देशों के बीच का संघर्ष, 1973 का योम किप्पूर युद्ध हो या 2008 व उसके बाद कई चरणों में हुए गाजा युद्ध, खूनी झड़पों ने आज तक पीछा नहीं छोड़ा है।

हाल ही में 11 दिनों तक चले   संघर्ष  में  लगभग 250 लोगों को मौत  हुई है।  इजराइल और हमास के बीच चले इस भीषण संग्राम के दौरान समूचा विश्व दो खेमों में बंटता नजर आया। जहां अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने इजराइल के आत्मरक्षा के अधिकार की बात करते हुए उसका खुला समर्थन किया, वहीं इस्लामिक देशों के सबसे बड़े संगठन ओआईसी (आर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक को-आॅपरेशन ) की आपात बैठक में 50 से अधिक देशों ने इजरायल के हमले की कड़ी निंदा के साथ ही इसके भयानक नतीजे भुगतने की चेतावनी तक दे डाली। भारत की बात करें तो संघर्ष की चपेट में आई भारतीय मूल की महिला ‘सौम्या संतोष‘ की मृत्यु के बावजूद संतुलित रुख अपनाते हुए हिंसा रोकने पर बल दिया। पिछले कुछ वर्षों से जहां इजरायल भारत का मित्र देश बनकर उभरा है, वहीं पहले से ही फिलिस्तीन से भी भारत के रिश्ते नरम रहे हैं। भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील के साथ सुरक्षा परिषद के संकल्प 2334 के प्रस्ताव का पालन करने का भी सुझाव दिया, साथ ही शांति बहाली के लिए बातचीत को फिर से शुरू करने पर बल दिया। गौरतलब है कि इस द्विपक्षीय युद्ध के थमने से फौरी तौर पर तो राहत की सांस ली जा सकती है, परंतु भविष्य में वैश्विक स्तर पर मंडराने वाले खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

ध्यान देना होगा कि इजराइल के न्यायालय द्वारा यरूशेलम के शेख जर्राह में फिलिस्तीनी नागरिकों के कुछ आवासों को खाली कराने का आदेश और अल-अक्सा मस्जिद में पुलिस द्वारा किया गया बल प्रयोग यदि इजरायल और हमास के बीच युद्ध की शक्ल ले सकता है, तो आगे चलकर इजराइल और फिलिस्तीन के बीच ना थमने वाला ये तनाव कितने ही देशों को युद्ध की आग में झोंकने की स्थिति उत्पन्न कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। सितंबर 2020 में अमेरिका की मदद से इजरायल और अरब देशों के बीच हुए अब्राहम समझौते ने हालातों को और भी जटिल बनाने का काम किया। ईरान और तुर्की के विरोध के बावजूद संपन्न हुई इस संधि से जहां इजरायल की राजनीतिक ताकत में वृद्धि हुई, वहीं अरब और इस्लामिक देशों में आपसी अविश्वास का माहौल बना।

इस समझौते से नुकसान तो फिलिस्तीन का हुआ परंतु इजराइल को भी यह समझना होगा कि अमेरिकी हस्तक्षेप से विकसित ये समझौता भविष्य में उसे रंगभेद का शिकार तो बनाएगा ही, साथ ही विरोध में खड़ी अंतर्राष्ट्रीय लॉबी को भी अपना विस्तार करने में सहायता प्रदान करेगा। आज सर्वाधिक आवश्यकता इस बात की है कि विश्व की बड़ी शक्तियां जिम्मेदारी के साथ हर संभव उपाय तलाश कर ऐसी शर्ते लागू करें जिन्हें दरकिनार करना मुश्किल हो।  इस सब के बीच यदि कोई सबसे महत्वपूर्ण और मार्मिक पक्ष है, तो वो है मानवता, जो हर लड़ाई में तार-तार होती है। ऐसे में ‘रिचर्ड एडमंडसन‘ द्वारा लिखा गया वो ब्लॉग याद आता है, जिसके अनुसार सीरिया में बम हमले में घायल हुए एक बच्चे ने अपनी मृत्यु से पहले असहनीय दर्द के दौरान डॉक्टरों से कहा था कि ‘मैं भगवान से तुम सबकी शिकायत करूंगा, मैं उसे सब बतायूंगा।’

आंखों को गीला कर देने वाले इन शब्दों के बाद तो यही कहना होगा कि धर्म, अधिकार और ताकत की लड़ाई में मानवता हमेशा ही कुचली गई है।  धरती के जिस टुकड़े लिए कत्लोगारद हो रहे हैं, वहां तीनों धर्मों के लोगों को सोचना होगा कि उनके पैगंबरों ने तो शांति की बात की थी और वे क्या कर रहे हैं। लड़ना उनके पैगंबर का मार्ग तो नहीं है।

Exit mobile version