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पैरोल पर छोड़ा जाना कैदी का अधिकार नहीं, यह एक रियायत है : गृहमंत्रालय

नयी दिल्ली। कोरोना महामारी के कारण पैरोल पर रिहा कैदियों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में किये जा रहे अपराधों को गंभीरता से लेते हुए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से कहा है कि आतंकवादी घटनाओं और घृणित अपराधों तथा हत्या के मामलों से संबंधित कैदियों को यह छूट नहीं दी जानी चाहिए।

मंत्रालय ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों तथा पुलिस महानिदेशकों और जेल महानिदेशकों को आज पत्र लिखकर कैदियों को पैरोल पर छोड़े जाने के नियमों और दिशा निर्देशों को सख्ती से लागू करने तथा पैरोल के बारे में निर्णय लेने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति की सलाह लेने को कहा है। इस समिति संबंधित विभागों के अधिकारी तथा मनोचिकित्सक और परामर्शदाता आदि शामिल होंगे।

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मंत्रालय ने कहा है कि कैदियों को पैरोल पर छोड़ा जाना किसी कैदी का अधिकार नहीं है और यह एक तरह की छूट या रियायत होती है। इसके बारे में निर्णय योग्यता तथा नियमों के आधार पर लिया जाना चाहिए।

पत्र में राज्यों से कहा गया है कि कैदियों को पैरोल पर रिहा करने या किसी कैदी को सदाचार के आधार पर सजा पूरी होने से पहले रिहा करने के मौजूदा तरीकों की जेल मैनुअल 2016 तथा मंत्रालय, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों के आधार पर समीक्षा की जानी चाहिए।

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मंत्रालय ने कहा है कि रिहायी या पैरोल का निर्णय लिये जाने से पहले सावधानी और समग्रता के साथ प्रत्येक मामले की व्यापक जांच की जानी चाहिए। पत्र में यह भी कहा गया है कि छोड़े गये कैदियों के व्यववहार की निगरानी भी की जानी चाहिए। मंत्रालय ने सभी राज्यों से इस बारे में अनुपालन रिपोर्ट देने को भी कहा है।

उल्लेखनीय है कि कोरोना के कारण जेलों से पैरोल पर छोड़े गये कैदियों द्वारा देश भर में अपराध करने की रिपोर्ट आने के बाद इस बारे में कदम उठाने पर विचार किया जा रहा था।

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