लखनऊ। उत्तर प्रदेश में वोटों की गिनती के बाद रुझानों से यह तय है कि बीजेपी इतिहास रचने जा रही है और बड़ी बहुमत से दोबारा सत्ता पर फिर से काबिज होने वाली है। यूपी में भाजपा की इस सफलता का सेहरा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) को जाता है, जिन्हें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ‘उपयोगी’ (UPYOGI) बता चुके हैं।
हालांकि, बीजेपी यह चुनाव मोदी-योगी के डबल इंजन वाले नारे की बदलौत जीतती नजर आ रही है, लेकिन अंतिम परिणाम के साथ ही यह तय होने जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी को इतनी बड़ी जीत तो दिलाई ही है, उन्होंने प्रदेश की सत्ता से जुड़े कई सारे मिथक भी तोड़ दिए हैं।
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37 साल बाद सत्ता में दोबारा वापसी
1985 के बाद उत्तर प्रदेश में कोई भी मुख्यमंत्री दोबारा पार्टी को विधानसभा चुनाव जीत दिलाकर दोबारा सरकार नहीं बना पाया था। लेकिन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह मिथक तोड़ने जा रहे हैं। इससे पहले यूपी और उत्तराखंड दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्गज कांग्रेसी नारायण दत्त तिवारी को ही यह मौका मिला था। लेकिन, योगी आदित्यनाथ सही मायने में बीजेपी के लिए ‘
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सीएम योगी ने नोएडा जाने वाला मिथक तोड़ा
यूपी में मुख्यमंत्रियों के लिए नोएडा एक ‘अशुभ’ का संकेत बन गया था। ऐसा मन में बिठा लिया गया था कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा जाएगा, उसकी कुर्सी चली जाएगी। अखिलेश यादव पांच साल सीएम रहे, लेकिन नोएडा आने की हिम्मत नहीं जुटाई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी सीएम बनने का मौका मिला था, लेकिन वह भी नोएडा से डरे-डरे रहकर ही सीएम पद से चले गए। लेकिन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कभी भी इन कही-सुनी कहानियों पर गौर नहीं किया और जब भी जरूरत पड़ी उन्होंने ताल ठोककर नोएडा का दौरा किया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए गोरखपुर मठ के महंत मुख्यमंत्री योगी की जमकर तारीफ की थी।
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पहले नोएडा आने वाले मुख्यमंत्रियों के साथ क्या हुआ ?
1988 में वीर बहादुर सिंह नोएडा आए और उनकी कुर्सी चली गई। फिर 1989 में नारायण दत्त तिवारी भी नोएडा के सेक्टर 12 में नेहरू पार्क का उद्घाटन करने पहुंचे थे और उनकी अगुवाई में कांग्रेस ऐसी हारी की आजतक हारती ही जा रही है। बीजेपी के दिवंगत नेता कल्याण सिंह और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी यह दर्द झेल चुके हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने 2007 से 2012 के अपने पांच साल के कार्यकाल में दो-दो बार इस मिथक को तोड़ने का प्रयास जरूर किया था, लेकिन जब 2012 में उनकी कुर्सी चली गई तो यह अंधविश्वास एक तरह से पक्का हो गया था। लेकन, योगी आदित्यनाथ ने यह साबित कर दिया है कि उन लोगों के साथ महज ऐसा संयोग की वजह से हुआ था, नोएडा किसी भी दृष्टि से मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए ‘अशुभ’ नहीं है।
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2007 के बाद कोई विधायक बनेगा सीएम
मुख्यमंत्री योगी आदिनाथ 15 साल बाद ऐसे मुख्यमंत्री होंगे, जिन्होंने सीएम रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ा है। जबकि, इसके बाद ऐसा ट्रेंड बन गया था कि मुख्यमंत्री विधान परिषद के जरिए विधानमंडल का सदस्य बनते आए थे। खुद सीएम योगी भी अपने मौजूदा कार्यकाल में विधान परिषद के ही सदस्य रहे हैं। उनसे पहले अखिलेश यादव और मायावती ने भी विधानसभा की जगह विधान परिषद की सदस्यता चुनी थी।