• About us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions
  • Contact
24 Ghante Latest Hindi News
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म
No Result
View All Result

आंदोलन और उपवास

Writer D by Writer D
14/12/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, नई दिल्ली, राजनीति, राष्ट्रीय, विचार
0
Farmer protest

Farmer protest

14
SHARES
176
VIEWS
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

किसान अब उपवास कर रहे हैं। उनका साथ कुछ राजनीतिक दल भी दे रहे हैं लेकिन कोई यह नहीं सोच रहा कि आंदोलन से  देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई तो किसानों की मांगें और देश की जरूरतें कैसे पूरी होंगी। आंदोलन लोकतंत्र की जान होते हैं लेकिन इन आंदोलनों के अगर थोड़े लाभ हैं तो बहुतेरे नुकसान भी हैं।

आंदोलन कर्ता को भले ही कुछ लाभ हो जाए लेकिन इससे आम जन को परेशानी भी होती है। आंदोलन अंतिम विकल्प होते हैं । जब कोई चारा न बचे तो आंदोलन किया जाता है लेकिन अपने देश में आंदोलन रोजमर्रा का विषय बन गया है। अब तो शौकिया आंदोलन  होने लगे हैं। आंदोलन अब मनमर्जी का विषय हो गया है। जिसका जब मन आता है, वह आंदोलन आरंभ कर देता है। इन आंदोलनों से देश और प्रांत को कितना नुकसान होता है, यह सोचना भी मुनासिब नहीं समझा जाता। पहले विरोध सकारात्मक हुआ करते थे। उससे सोच—समझा और एक खास संदेश की अभिव्यक्ति हुआ करती थी लेकिन अब वह बात नहीं रही।

अब विरोध केवल विरोध के लिए होते हैं। हमारा जिससे मतभेद होता है, उसके अच्छे काम भी हमें पसंद नहीं आते और जिसे हम चाहते हैं, उसके बुरे काम भी हमें नजर नहीं आते। यह दृष्टिकोण का फर्क है।

ममता सरकार ने कोलकाता-दिल्ली के बीच सीधी दैनिक उड़ान को दी मंजूरी

वैसे देश में एक भी कानून ऐसा नहीं जो पूरी तरह बेमतलब हो और एक भी व्यक्ति या वस्तु ऐसी नहीं जो सर्वथा निष्प्रयोज्य हो। किसी कानून, व्यक्ति या वस्तु को समग्रता में नकारना उचित नहीं है। इसके लिए हमें गुरु द्रोणाचार्य से कहे गए युधिष्ठिर के उस अभिकथन पर गौर करना होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला,जिसमें कोई अच्छाई न हो। आचार्य सुश्रुत ने अपने गुरु से कहा था कि उन्हें एक भी पेड़—पौधा ऐसा नहीं मिला जिसका कोई न कोई औषधीय महत्व न हो। किसानों की केंद्र सरकार के तीनों कानूनों की वापसी की मांग को भी इसी स्वरूप में देखा जा सकता है। किसान चक्का जाम कर रहे हैं। रेल रोक रहे हैं। इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा, इस पर विचार तक नहीं किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बराबर कह रहे हैं कि कृषि सुधार प्रयासों से ही किसानों की दशा—दिशा बदलेगी लेकिन किसानों को यह बात समझ में ही नहीं आ रही है। एक पखवारे से अधिक हो गए, किसान आंदोलन के चलते देश की अर्थव्यवस्था बाधित हो रही है। कोरोना और लॉकडाउन से भारतीय उद्योग—धंधे पहले ही बुरी तरह प्रभावित थे। किसी तरह अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटना शुरू हुई थी लेकिन किसानों के आंदोलनों ने अर्थव्यस्था की टूटी कमर पर नए सिरे से डंडा मारना आरंभ कर दिया है। हाइवे जाम करने से लोगों को कितनी दिक्कतें होंगी? कितना कारोबारी नुकसान होगा, इस दिशा में किसान नेता सोचना भी नहीं चाहते। आंदोलन वैसे भी  सुखद नहीं होते। आंदोलन से सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है लेकिन वह दबाव इस देश की जनता पर भी ही पड़ रहा है, यह समझने की जरूरत है। देश की अर्थव्यवस्था ही चौपट हो गई तो किसानों की मांगें कैसे पूरी होंगी?

उधार के पैसों के बदले पत्नी को मांगा तो दोस्त ने किया ये काम…..

तीन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर किसान आंदोलित हैं। विरोध-प्रदर्शन के लिए वे नित नवोन्मेष कर रहे हैं। नए-नए तरीके अख्तियार कर रहे हैं। कहीं वे सिर मुड़ा रहे हैं तो कहीं पोस्टर लगा रहे हैं। टोल प्लाजा फ्री करा रहे हैं।  सड़क और रेल मार्ग को जाम करने की रणनीति बना रहे हैं। भूख हड़ताल की धमकी दे रहे हैं तो और भी जो कुछ तौर-तरीके सरकार को घेरने के हो सकते हैं, वे सब अपना रहे हैं। किसानों ने वायदा किया था कि वे अपने आंदोलन में राजनीति का प्रवेश नहीं होने देंगे लेकिन जिस तरह राजनीतिक दलों ने किसानों के आंदोलन में लाभ के अवसर तलाशे, उससे इस आंदोलन का कमजोर होना लगभग तय माना जारहा है।

किसी भी आंदोलन में बातचीत की गुंजाइश हमेशा रहती है लेकिन किसान नेताओं ने जिस तरह भारत बंद के आयोजन की गलती की, यह जानते हुए भी कि अगले ही दिन सरकार के साथ उनकी बैठक होनी है। सरकार ने तो पहले ही दिन से वार्ता की संभावनाएं बनाए रखी हैं लेकिन  जब  अगर कोई मुंह बंद कर ले और ‘हां व ना’  की पट्टिका दिखाने लगे तो वार्ता किसी परिणाम तक पहुंचे भी तो किस तरह? जिस आंदोलन की रहनुमाई के लिए मेधा पाटेकर आएं और उन तक पहुंचने के लिए धरने पर बैठ जाएं। वाम दल, कांग्रेस, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, द्रमुक आदि दल रहनुमाई को आतुर हों, उस आंदोलन के राजनीतिक स्वरूप धारण करने से भला कौन अस्वीकार कर सकता है।

तुर्की में आज भी लोकप्रिय हैं शोमैन राजकपूर, देखें, ‘आवारा हूं’ गाने पर शादी का डांस

इस आंदोलन से जुड़ा जो पोस्टर चिपकाया गया है उसमें शाहीन बाग के आंदोलनकारियों की भी फोटो है। यही नहीं, शाहीन बाग के आरोपियों को बरी किए जाने की मांग की जा रही है, अगर इस पर कोई मंत्री सवाल उठाता है तो किसान संगठन उस पर किसानों को बदनाम करने का आरोप कैसे लगा सकते हैं? ऐसे में अगर सरकार चौपाल लगाकर अपना पक्ष रखना चाहती है तो उस पर तंज कसा जाना कहां तक उचित है? वह सात सौ चौपाल लगाए या 7 हजार, यह मायने नहीं रखता। मायने यह रखता है कि किसानों के कंधे पर बंदूक रख्कर चला रहे राजनीतिक दलों और स्वयंसेवी संगठनों को वह बेनकाब कर रही है। यही लोकधर्म का तकाजा  भी है।

केंद्र सरकार ने सही मायने में किसानों के हित की मांग सोची है। उसने किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य पाने का अवसर दिया है। उसके लिए उसने अन्य प्रदेशों की मार्केट खोली है। यह काम तो आजादी के बाद ही किया जाना चाहिए था लेकिन जिन लोगों ने लंबे समय तक किसानों को आत्मनिर्भरता से दूर रखा, वे अचानक ही उनके हिमायती बन बैठे हैं? जिनके मंत्रियों ने संसद में इसी तरह के कानून की मुखालफत की थी, अगर उनके नेता उसी मामले में किसानों को गुमराह करें तो इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति भला और क्या हो सकती है? किसान नेता सरकार पर दबाव भी बनाए रखना चाहते हैं और उससे वार्ता भी चाहते हैं लेकिन अपने पूर्वाग्रह का खूंटा उखड़ने नहीं होने देना चाहते। सरकार उनसे पूछ रही है कि वे कानून की कमियां बताएं, सरकार उसमें संशोधन करेगी और किसान नेता कह रहे हैं कि सरकार पहले कानून हटाए तो फिर वे बात करेंगे। कानून ही वापस हो गए तो वार्ता किस बात की? एक ओर तो वे सरकार को न झुकने देने की बात करते हैं, दूसरे पिछले एक पखवारे से वे दिल्ली ही नहीं, पूरे देश के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। उन्हें अपने हितों की तो चिंता है लेकिन देश पर महंगाई और बेरोजगारी की जो मार पड़ रही है, उस बावत तो वे सोचते भी नहीं। यह प्रवृत्ति बहुत मुफीद नहीं है।

1 जनवरी से बदल जाएंगे चेक से भुगतान करने के नियम

अच्छा होता कि किसान सरकार पर हठधर्मिता का आरोप लगाने की बजाय अपनी हठधर्मिता छोड़ते। उन लघु एवं मध्यम किसानों के बारे में सोचते जो बेचते कम और खरीदते ज्यादा हैं, एमएसपी की सुनिश्चितता उनके हितों पर कितनी भारी पड़ेगी, जरा इस पर भी तो विचार कर लेते। एक कहावत है कि बड़े होने के अहंकार में फूला व्यक्ति दिल से नहीं, दिमाग से काम करता है। यह देश दिल से सोचता है। इसलिए अब भी समय है जब किसानों को आत्ममंथन करना और देश को रोज किसान आंदोलन के चलते हो रहे अरबों के नुकसान से बचाना चाहिए। किसानों ने करनाल के बस्तारा और पियोंट टोल प्लाजा पर भी यात्रियों से शुल्क की वसूली नहीं करने दी। बस्तारा टोल प्लाजा एनएच-44 पर है, जबकि पियोंट टोल प्लाजा करनाल-जींद राजमार्ग पर है। हिसार-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग नौ पर मय्यर टोल प्लाजा, राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर बडो पट्टी टोल प्लाजा, हिसार-राजगढ़ रोड पर चौधरीवास टोल और हिसार-सिरसा रोड पर स्थित टोल प्लाजा  पर भी उनका रवैया कुछ ऐसा ही रहा।

प्रदर्शनकारी जींद-नरवाना राजमार्ग पर एक टोल प्लाजा, चरखी दादरी रोड पर टोल प्लाजा पर भी जमा हुए। पंजाब में एक अक्टूबर से किसान विभिन्न टोल प्लाजा पर धरने पर बैठे हैं और यहां भी यात्रियों से शुल्क नहीं वसूला जा रहा। पंजाब में राष्ट्रीय राजमार्गों पर कुल 25 टोल प्लाजा हैं और यहां किसानों के प्रदर्शन के चलते यात्रियों से शुल्क की वसूली नहीं होने के कारण भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को रोज तीन करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है। देश को आर्थिक चपत लगाकर अपने लिए सुख की कामना करना कितना वाजिब है ? हमें सोचना होगा कि देश के हित में ही हर आम और खास का हित सुरक्षित है। देश नहीं तो कुछ भी नहीं।

Tags: aligarh newsbhartiya kisan unionfarmer protestfarmer protest updatesKisan andolankisan andolan updateslatest UP newsNational newstoll free andolanup news
Previous Post

ममता सरकार ने कोलकाता-दिल्ली के बीच सीधी दैनिक उड़ान को दी मंजूरी

Next Post

किसान भाइयों की बात सुनने के हमेशा इच्छुक हैं : राजनाथ

Writer D

Writer D

Related Posts

Curtains
Main Slider

पर्दो से घर को मिलेगा आकर्षक लुक, यहां से लें आइडिया

20/09/2025
Pumpkin
फैशन/शैली

अब ट्राई करें कद्दू की ये 5 टेस्टी रेसिपी, न पसंद करने वाले भी खाते ही रह जाएंगे

20/09/2025
Cream
Main Slider

इन टिप्स से दूध में जमेगी मोटी मलाई, नहीं पड़ेगी मार्केट से घी खरीदने की जरूरत

20/09/2025
CM Vishnudev Sai
Main Slider

सीएम साय खारुन मईया समरसता भव्य महाआरती में हुए शामिल

19/09/2025
CM Yogi reviews preparations for UPITS
Main Slider

प्रदेश की समृद्ध परंपरा, हुनर और उत्पादों को वैश्विक मंच प्रदान करेगा यूपीआईटीएस 2025: सीएम योगी

19/09/2025
Next Post
rajnath singh

किसान भाइयों की बात सुनने के हमेशा इच्छुक हैं : राजनाथ

यह भी पढ़ें

Champions League semi-finals

चैम्पियंस लीग में 74 साल बाद बार्सिलोना की शर्मनाक हार

15/08/2020
rajnath

कश्मीर से आतंकवाद का जल्द हो जाएगा खात्मा : राजनाथ

30/08/2021
Dinesh Khatik

सीएम योगी से मिले दिनेश खटीक, बाहर निकल कर कही ये बड़ी बात

21/07/2022
Facebook Twitter Youtube

© 2022 24घंटेऑनलाइन

  • होम
  • राष्ट्रीय
    • उत्तराखंड
    • उत्तर प्रदेश
    • छत्तीसगढ़
    • हरियाणा
    • राजस्थान
  • राजनीति
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म

© 2022 24घंटेऑनलाइन

Go to mobile version