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लव कुश की नगरी पर है सभी की नजर

श्रावस्ती। हिमालय की तलहटी में स्थित और तमाम ऐतिहासिक धाराहरो को समेटे भगवान बुद्ध की तपोस्थली तथा भगवान राम के सुपुत्र लव कुश (luv Kush) की नगरी श्रावस्ती (Sravasti) विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें जमी हुई है । सियासी जंग में इस सीट पर ब्राह्णण और मुस्लिम महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं किन्तु इस बार समीकरण बदले नजर आ रहे हैं ।

सपा के लिए जहां मुस्लिम मतदाताओं के बिखराव को रोकने की चुनौती है तो वहीं पर भाजपा और बसपा के लिए अनुसूचित जाति तथा ब्राह्मण मतदाताओं के बिखराव को रोकने की चुनौती है । श्रावस्ती विधानसभा सीट इस बार के चुनाव में चौधरी तथा यादव मतदाता किसी भी दल के प्रत्याशी के जीत हार की पटकथा लिख सकते हैं। हालांकि इस सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिल रही है, किंतु चुनावी समीकरण  नदी में पानी के बहाव की तरह जैसे जैसे मतदान की तारीख करीब आता जा रहा है आए दिन इधर से उधर हिलोरे मार रहा है, ऐसे में मतदाता कभी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और संवैधानिक आजादी, तो कभी विकास , तो वह कहीं राष्ट्रवाद के झूठे झुनझुने पर भ्रमित हो रहा है ।

आजादी के बाद से आठ बार उत्तरी सीट पर लहराया भगवा

वर्तमान परिदृश्य में राजनीति की खोखली पृष्ठभूमि जिस तरह से मतदाताओं में आपसी वैमनस्य और भ्रम पैदा कर रही है उससे तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि यह राजनीतिक दलों का चुनावी महाकुंभ यज्ञ नहीं चल रहा है ,बल्कि दो विचारधाराओं का पुराणों में वर्णित देव -दानव युद्ध चल रहा है। आलम यह है की विधानसभा के चुनाव में सियासी जंग आपसी आस्था और विश्वास पर कुठाराघात कर रहे हैं। मालूम हो कि श्रावस्ती में पांचवें चरण 27 फरवरी को मतदान होना है । प्रमुख दलों के सारे प्रत्याशी एक दुसरे के समीकरण बिगाडने और बनाने में अपनी एडी चोटी का जोर लगाये मतदाता को अपने तरफ खीचने का लाली पाप दे रहे हैं । मतदाता सब जानकर भी विश्वास करने पर बिवश है कि शायद इस बार उसका और जनपद की दिशा और दशा बदल जाये पर यह तो समय के गर्त में है ।

स्थानीय सर्वे के अनुसार 290- श्रावस्ती विधानसभा सीट पर – कुल मतदाता 4,15,483 है जिसमें से पुरुष- 2,19,954, महिला- 1,95,517 और अन्य – 12 है. इसमें से पठान मुस्लिम- 85,181, पिछड़ा मुस्लिम- 42,512, ब्राह्मण-1,10,266, यादव- 32,280, कुर्मी- 32,582 क्षत्रिय- 9,580,पासी- 31,633,बाल्मीकि- 2,556 और अन्य- 68,893 मतदाता है। श्रावस्ती विधानसभा में सपा के मुहम्मद असलम राईनी के बाद कांग्रेस से मुहम्मद रमजान के मैदान में उतरने से यहां के मुस्लिम और पिछडी मतदाता पशोपेश की स्थिति में हैं। भाजपा व बसपा से ब्राह्मण उम्मीदवार के मैदान में होने से यह वोट बैंक भी बिखरता दिख रहा है।

श्रावस्ती विधानसभा ब्राह्मण मतदाताओं से बहुल मानी जाती है। दूसरे स्थान पर सबसे अधिक मतदाताओं की संख्या मुस्लिम बिरादरी की है। 2012 से 2017 तक यहां के विधायक रहे मुहम्मद रमजान की मुस्लिम मतदाताओं के साथ पिछड़ा वर्ग में अच्छी पैठ मानी जाती थी। सपा के सिबल से मुहम्मद असलम राईनी यहां साइकिल की सवारी करने उतरे तो रमजान कांग्रेस का हाथ थाम कर चुनाव मैदान में कूदे हैं। दोनों उम्मीदवार चुनाव प्रचार में पूरी ताकत लगाए हैं। ऐसी दशा में मुस्लिम मतदाता एकतरफा मतदान का निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।

भाजपा ने 2017 के विजेता रहे रामफेरन पांडेय पर एक बार फिर दांव लगाया है। बसपा ने भी यहां से ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए नीतू मिश्रा को उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा तो राजनीतिक संतुलन बिगड़ने लगा। दिल्ली में अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़े हुए आप पार्टी से रत्नेश्वर पान्डेय भी अपनी उपस्थित दर्ज करा रहे हैं । भाजपा जहाँ राष्ट्र वार को अपना हथियार बना रही है तो सपा विकास को मुद्दा बनाये हुए हैं , तो बसपा और कांग्रेस अब स्थानीय मुद्दे और प्रत्याशी के अबतक के कार्य व्यवहार और चरित्र पर समीकरण को साधने और वोट मांगने में जुट गए हैं। फिलहाल श्रावस्ती विधानसभा पर सपा और भाजपा के बीच लडाई दिखाई जा रही है हालांकि मतदाताओं की रूख अन्त समय पर चौकाने वाले परिणाम भी दे सकते हैं।

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