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हमेशा सफलता पाने के लिए अपने गुरु को जरूर भेंट करें ये चीजें

आश्विन कृष्ण त्रयोदशी

आश्विन कृष्ण त्रयोदशी

लाइफ़स्टाइल डेस्क। श्रावण कृष्ण पंचमी, भाद्रपद कृष्ण षष्ठी, आश्विन कृष्ण त्रयोदशी और कार्तिक शुक्ल नवमी दीक्षा लेने या दीक्षा देने के लिये सबसे श्रेष्ठ है। रविवार को भाद्रपद कृष्ण षष्ठी  है। दीक्षा लेने या देने के लिये ये दिन बड़ा ही श्रेष्ठ है। प्राचीन काल में बच्चों को  दीक्षा  के लिये गुरु के पास भेज दिया जाता था।

शाम 7 बजकर 6 मिनट तक रेवती नक्षत्र रहेगा। रेवती  शुभ नक्षत्र  है। ये नक्षत्र 32 तारों का एक समूह है, जिसका अर्थ है – धनवान या धनी।  इस नक्षत्र के जातक तेजस्वी, सुंदर, चतुर और विद्वान होते हैं। इस नक्षत्र के दौरान विद्या का आरंभ, सम्मान प्राप्ति, गृह प्रवेश, विवाह आदि कार्य संपन्न किये जा सकते हैं।.

वैदिक ज्योतिष के अनुसार पानी में तैरती हुई मछली को रेवती नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह माना जाता है, जबकि इसकी राशि मीन है। बता दूं कि इस नक्षत्र के स्वामी बुध हैं। बुध बुद्धि और वाणी से भी संबंध रखते हैं।  रेवती नक्षत्र का संबंध महुआवृक्ष  से है। अत: जिन लोगों का जन्म रेवती नक्षत्र में हुआ हो, उन लोगों को आज के दिन महुआ के पेड़ को नमस्कार करना चाहिए। इसके साथ ही शाम 7 बजकर 6 मिनट से सोमवार पूरा दिन पार कर रात 10 बजकर 6 मिनट तक रवि योग रहेगा । इस योग के दौरान कोई काम करने से वह अवश्य ही पूरा होता है।

जानिए क्या है दीक्षा का अर्थ

यहां ‘दी’ का अर्थ है- देना और ‘क्षा’ का अर्थ है- क्षय या दमन, यानी बुराईयों का, निगेटिविटी का क्षय करके ज्ञान का भंडार भरना ही दीक्षा है।कई लोग शिक्षा और दीक्षा को एक ही मान लेते हैं, लेकिन शिक्षा , दीक्षा दो अलग-अलग चीज़ें हैं। आज शिक्षा तो हर कोई ले लेता है, लेकिन दीक्षा लेना सब  के बस में नहीं है। दीक्षा देने के लिये जितना समय, संयम और ज्ञान एक गुरु के पास होता है, उतना ही समय, संयम और ज्ञान को समझने की शक्ति दीक्षा लेने वाले में होनी चाहिए ,  सिर्फ किताबों को पढ़कर कोई ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है। गहराई से  ज्ञान को समझने , आत्मबोध करने के लिये किसी श्रेष्ठ गुरु के सानिध्य की ही आवश्यकता पड़ती है। दीक्षा मनुष्य के आध्यात्मिक कोएशेन्ट को बढ़ाती है और आज के दौर में आई.क्यू के साथ-साथ आध्यात्मिक कोएशेन्ट भी जरूरी है। जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद के पास भौतिक शिक्षा का भण्डार तो था, परन्तु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद ही उनके जीवन में एक नयी दिशा का प्रादुर्भाव हुआ। अतः दीक्षा के लिये एक गुरु की आवश्यकता होती है।

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट ।

अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ।।

जब एक शिष्य गुरु के पास दीक्षा लेने जाता है, तो वह कच्चे घड़े की तरह होता है। गुरु उसे एक कुम्हार की भांति हाथ का सहारा देकर और बाहर से चोट मार मार कर, उसे गढ़-गढ़ कर, उसकी सारी बुराईयों को, उसकी सारी अशुद्धियों को बाहर निकालते हैं और एक सुंदर और मजबूत घड़े रूपी शिष्य का निर्माण करते हैं, जो समाज की हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होता है।

जितना महत्व गुरु दीक्षा का है, उतना ही गुरु दक्षिणा का भी है। गुरु से दीक्षा लेने के बाद उन्हें दक्षिणा जरूर दी जानी चाहिए। दक्षिणा न देने पर ली गई दीक्षा अधूरी रह जाती है और ज्ञान की पूर्ण प्राप्ति नहीं हो पाती। यह एक तरह से शिष्य की आखिरी परीक्षा होती है। इससे शिष्य किसी को कुछ देने का भाव सीखता है, तभी वह आगे चलकर समाज को एक बेहतर दिशा देने में भी कामयाब होता है।  एकलव्य  ने  दक्षिणा में गुरु द्रोण को अपना अंगूठा काटकर दिया था।  आपको एकलव्य की तरह गुरु दक्षिणा नहीं  देनी है,  लेकिन दीक्षा के बाद  दक्षिणा में गुरु को कुछ न कुछ जरूर देना चाहिए।  आज के दिन दीक्षा लेने के बाद  गुरु को क्या भेंट देनी चाहिए। जानिए आचार्य इंदु प्रकाश से।

अपने गुरु को भेंट करें ये चीजें

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