वाशिंगटन। अमेरिका में 2021 जनवरी में नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने दोपनीयता की शपथ लेंगे। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के नए राष्ट्रपति और उनके मंत्रिमंडल पर पूरे विश्व की नजर है। बाइडन की इस सरकार में कई चेहरे ऐसे हैं जो भारतीय मूल के हैं। भारत के लिए ये इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें भारतीयों को अहम जिम्मेदारी मिल रही है। पहली बार कोई भारतीय मूल की महिला दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति की उपराष्ट्रपति बनने वाली है। बाइडन के मंत्रिमंडल में भारतीय मूल की केवल वही नहीं है बल्कि नीरा टंडन भी इसका एक अहम हिस्सा बनने वाली हैं। आपको बता दें कि नीरा को वर्ष 2012 में नेशनल जर्नल ने वाशिंगटन की 25 सबसे ताकतवर महिलाओं में शामिल किया था। इसके अलावा वर्ष 2014 में द वर्किंग वूमेन मैग्जीन ने विश्व की 50 सबसे ताकतवर मां के तौर पर शामिल किया था। इसी साल वो Elle मैग्जीन द्वारा वाशिंगटन की दस सबसे ताकतवर महिलाओं में भी चुनी गई थीं।
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ओबामा प्रशासन में एक सलाहकार की भूमिका
नीरा ओबामा प्रशासन में एक सलाहकार की भूमिका निभा चुकी हैं। माना जा रहा है कि बाइडन उन्हें नई जिम्मेदारी के तौर पर डायरेक्टर ऑफ द व्हाइट हाउस बजट ऑफिस की भूमिका देने वाले हैं। वहीं सेसिला राउज का नाम काउंसिल ऑफ इकनॉमिक एडवाइजर के प्रमुख के तौर पर सामने आ रहा है। हालांकि इनके नामों पर सीनेट की मुहर लगनी जरूरी होगी। नीरा फिलहाल सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस की प्रमुख हैं। ये एक लिबरल थिंक टैंक है। इस पद पर वो वर्ष 2011 से काबिज हैं। वैसे इस संस्था से वो 2003 से जुड़ी हुई हैं। इससे पहले वे ओबामा प्रशासन में स्वास्थ्य सलाहकार भी रह चुकी है। उन्होंने 2016 के अमेरिकी चुनाव में डेमोक्रेट पार्टी की उम्मीद्वार हिलेरी क्लिंटन के सलाहकार की अहम भूमिका निभाई थी। हिलेरी की प्रचार टीम के ट्रांजिशन प्रोजेक्ट की सह प्रमुख के तौर पर उनका काम जीत की सूरत में सत्ता के ट्रांसफर से जुड़ा था।
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डॉक्ट्रेट की उपाधि
10 सितंबर 1970 को अमेरिका के मैसेचुसेट्स राज्य के बेडफॉर्ड में जन्मीं नीरा के माता पिता के बीच उस वक्त तलाक हो गया था जब वो केवल पांच वर्ष की थीं। उनकी मां को उनके पालन पोषण के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। केलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने 1996 में येल यूनिवर्सिटी से 1996 में डॉक्ट्रेट की उपाधि हासिल की। इसके बाद वो येल लॉ एंड पॉलिसी रिव्यू की एडिटर भी रहीं। केलिफॉर्निया में पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात बेंजामिन एडवार्ड से हुई। इन दोनों ने मिलकर 1988 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी बने मिशेल डुकिस का समर्थन किया और प्रचार अभियान में भी हिस्सा लिया। हालांकि इसमें उनकी हार हुई थी। येल से पढ़ाई पूरी करने के बाद नीरा ने वाशिंगटन का रुख किया। यहां पर उन्होंने आंतरिक नीतियों के एक थिंक टैंक के साथ काम शुरू किया। उन्होंने भारतीय-अमेरिकी मूल के लोगों के मामलों को भी नई आवाज दी। इस बारे में उन्होंने काफी कुछ लिखा भी।