रोटी—कपड़ा और मकान व्यक्ति की मूल जरूरत होती है। जब व्यक्ति को ये तीनों चीजें उपलब्ध हो जाती है तब वह नैतिक उत्थान और समाज कल्याण की दिशा में आगे बढ़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बेहतर समझते हैं। उन्हें पता है कि भूखे पेट जिस तरह भजन संभव नहीं है, उसी तरह खुले आसमान के नीचे रहकर व्यक्ति न तो अपने उत्थान के बारे में सोच सकता है और न ही राष्ट्रीय विकास की कल्पना कर सकता है।
इस देश में रोटी—कपड़ा और मकान के नारे तो खूब लगे लेकिन उनकी प्रतिपूर्ति की दिशा में पूरे मनोयोग से काम नहीं किया गया अन्यथा देश में आज सभी के सिर पर अपनी छत होती। इंडिया मोर्टगेज गारंटी कॉरपोरेशन के सर्वेक्षण पर अगर यकीन करें तो आज की तिथि में सिर्फ 32 प्रतिशत भारतीयों के पास ही अपना घर है। इन 32 प्रतिशत में भी कुछ ऐसे हैं जिनके पास कई—कई घर हैं। कई शहरों में घर है जबकि देश के 68 प्रतिशत लोगों के पास अपना घर नहीं है। यह तो वही बात हुई कि कहीं दो—दो घड़ा, कहीं पत्थर पड़ा। इन 68 प्रतिशत लोगों में आधे अगर किराए के मकान में रहते हैं तो बाकी झुग्गी—झोपड़ियों और फुटपाथ पर अपनी रातें बिताने को मजबूर हैं। प्रधानमंत्री देश का मुखिया होता है और मुखिया के बारे में कहा गया है कि ‘ मुखिया मुख सो चाहिए खान—पान—व्यवहार।’ यह सुखद संदेश है कि नरेंद्र मोदी मुखिया होने के अपने दायित्व को समझते भी है और अपने दायित्वों के निर्वहन को लेकर सचेत भी रहते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कुछ भी करते हैं, वह नया भी होता है और अलहदा भी होता है। नए साल में देश के छह राज्यों को आवासीय तोहफा देकर उन्होंने चौंका दिया है। ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज इंडिया के तहत उन्होंने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश समेत छह राज्यों के छह शहरों लखनऊ, इंदौर, चेन्नई, रांची, अगरतला और राजकोट में लाइट हाउस प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी। इस परियोजना के तहत हजार-हजार से अधिक नए मकानों का निर्माण होना है। प्रधानमंत्री ने इन परियोजनाओं को प्रकाश स्तंभ की तरह बताया है। घर बनाने से जुड़े लोगों को नई तकनीक से जुड़ी स्किल अपग्रेड करने के लिए सर्टिफिकेट कोर्स भी शुरू करने की बात उन्होंने कही है। रेरा कानून की जहां उन्होंने सराहना की है, वहीं आवास योजना को केंद्रीय सरकार की प्राथमिकता बनाने और श्रमिकों को उद्योगों और दूसरे निवेशकों के साथ मिलकर सरकार द्वारा उचित किराए वाले घरों का निर्माण करने पर भी बल दिया है। उन्होंने यह भी कहा है कि श्रमिक जहां कहीं भी काम करते हैं, उसी क्षेत्र में उनका मकान होना चाहिए। इससे श्रमिकों और बेघरों के प्रति सरकार की संवेदनशीलता का पता चलता है।
सबका सबसे बड़ा सपना होता है, शहर में हो घर अपना : पीएम मोदी
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि पहले सरकार घर निर्माण की बारीकियों और गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देती थी लेकिन अब वैसा नहीं है। सरकार का फोकस अब देश को बेहतर टेक्नोलॉजी और घर उपलब्ध कराने पर है। घर स्टार्टअप की तरह चुस्त और दुरुस्त होने चाहिए। छहों शहरों में अलग—अलग तकनीक से घर बनाए जाने का दावा प्रधानमंत्री ने किया है। इंदौर में जहां प्री-फेब्रिकेटेड स्ट्रक्चर का इस्तेमाल कर घर बनाए जाएंगे वहीं गुजरात में फ्रांस की टेक्नोलॉजी से बने घर आपदाओं को झेलने में सक्षम होंगे। अगरतला में न्यूजीलैंड की स्टील फ्रेम टेक्नोलॉजी, लखनऊ में कनाडा की टेक्नोलॉजी का प्रयोग होगा। इन मकानों की खासियत यह होगी कि इसमें इसमें प्लास्टर का इस्तेमाल नहीं होगा। इसमें नॉर्वे की कंपनी भी सहयोग करेगी।
प्रधानमंत्री ने अभियंताओं,शोधकर्ताओं और विश्वविद्यालयों से भी आग्रह किया है कि वे भवन निर्माण की इस नवीनतम तकनीक को न केवल सीखें बल्कि तदनुरूप भवन निर्माण में देश का सहयोग भी करें। यह पहला मौका है जब किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह की अपील की है। उन्होंने कहा है कि
घर की चाबी से सम्मान भरे जीवन का द्वार भी खुलता है। मकान पर मालिकाना हक मिलता है तो बचत का द्वार खुलता है। साथ ही उन्होंने इस बात का भी दावा किया है कि लंबित आवासीय परियोजनाओं के लिए 25 हजार करोड़ का फंड बनाया गया है। मोदी ने आशा इंडिया अवॉर्ड्स भी दिए। इसमें यूपी को पहला और मध्यप्रदेश को दूसरा स्थान मिला। इसके अलावा वे शहरी आवास योजना के तहत किए गए कामों के लिए वार्षिक पुरस्कारों की भी घोषणा की। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने इनोवेशन कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक नए सर्टिफिकेट कोर्स का भी शुभारंभ किया है।
मई 2017 में मोदी सरकार ने दावा किया था कि वह एक ऐसे कानून पर विचार कर रही है जिसके तहत शहरों में आने वाले प्रवासी लोगों को सरकारी संस्थाओं से मकान किराए पर लेने की सुविधा होगी। भविष्य में उनके पास इस किराए के मकान को ही आसान किस्तों में पूरी कीमत चुकाकर खरीदने का भी विकल्प होगा। मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन पॉवर्टी एविएशन के मुताबिक, इस स्कीम का नाम ‘रेंट टु ओन’ रखा जाना था, जिसे केंद्र सरकार की नेशनल अर्बन रेंटल हाउसिंग पॉलिसी के तहत लांच किया जाएगा। यह योजना कितनी अमल में आई और इससे कितने लोगों को लाभ हुआ, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इससे बेघरों को घर देने की केंद्र सरकार की सोच का पता तो चलता ही है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक किसी को भी बेघर न रहने देने की घोषणा कर रखी है और इस दिशा में वह आगे बढ़ भी रही है लेकिन मकानों के निर्माण की गति इतनी मंथर है कि निर्धारित समय पर सभी बेघरों को घर दे पाना मुमकिन नहीं लगता। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस नई योजना और तकनीक के चलते देश में बड़े पैमाने पर भवनों के निर्माण का सिलसिला तेज हो जाएगा और प्रधानमंत्री के सबको भवन उपलब्ध कराने का सपना अवश्य पूरा हो जाएगा।
एक बात और कि विकास प्राधिकरणों और आवास विकास परिषदों द्वारा यह शर्त तो रखी जाती है कि जिनके पास आवास हैं, वे योजना का लाभ नहीं प्राप्त कर सकते लेकिन शहरी क्षेत्रों में ऐसे ढेर सारे लोग मिल जाएंगे जिन्होंने इन्हीं संस्थाओं से कई—कई प्लॉट और मकान हासिल किए हैं जबकि जरूरतमंदों को इन सरकारी संस्थाओं की आवासीय योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता।
वजह क्या है, इसे जानने—समझने की सरकार में बैठे लोगों ने देश की आजादी से आज तक कभी जरूरत नहीं समझी। आवासीय संस्थाओं में जब तक निगरानी तंत्र मजबूत नहीं होता तब तक तो नहीं लगता कि जरूरतमंदों की अपनी छत का सपना कभी पूरा भी हो पाएगा। प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम पर जरूरतमंदों से पैसे ऐंठने वाली गिरोह की सक्रियता के किस्से में अखबारों की सुर्खियां बनते रहेंगे। इसलिए भी जरूरी है कि व्यवस्था के कुएं में घुली भांग का शुद्धिकरण किया जाए और यह सब सरकार और उसमें बैठे जिम्मेदार लोग ही कर सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह योजना देश के लिए प्रकाश स्तंभ की भूमिका निभा पाने में सफल होगी।