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कृषि कानूनों के विरोध में एनडीए के एक और दल ने दिया झटका

कृषि कानूनों के विरोध में against agricultural laws

कृषि कानूनों के विरोध में

जयपुर। कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल के बाद अब एक और पार्टी ने शनिवार को एनडीए से नाता तोडने का ऐलान किया़ है। राजस्थान की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग हो गई है। पार्टी के संयोजक और राजस्थान के नागौर से सांसद हनुमान बेनिवाल ने इससे पहले किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए तीन संसदीय समितियों से इस्तीफा दे दिया था।

अलवर जिले के शाहजहांपुर में किसान रैली को संबोधित करते हुए बेनीवाल ने कहा कि मैं राजग के साथ फेविकोल से नहीं चिपका हुआ हूं। आज, मैं खुद को राजग से अलग करता हूं। बेनीवाल ने विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में शुक्रवार को किसानों के समर्थन में दिल्ली कूच का ऐलान किया था। आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल ने एनडीए से अलग होने के बाद कहा है कि वह कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने जा रहा हैं। बेनीवाल ने कहा कि मैंने कृषि कानूनों के विरोध में एनडीए छोड़ा है। ये कानून किसान विरोधी हैं। मैंने एनडीए छोड़ दिया है, लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगे।

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कृषि क्षेत्र में व्यापक बदलाव के लिए केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कानूनों के खिलाफ दिल्ली में किसानों का आंदोलन 31 दिनों से चल रहा है। इससे पहले एनडीए के सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल ने भी कृषि आंदोलन के समर्थन में ही एनडीए से नाता तोड़ लिया था। इसके अलावा कई और छोटे दल भी बीजेपी पर दबाव बढ़ाने में जुटे हुए हैं। आरएलपी के जाने से भले ही केंद्र सरकार की सेहत पर कोई असर ना पड़े, लेकिन आरएलपी का राजस्थान में कुछ इलाकों में अच्छा प्रभाव है। इसके अलावा कुछ अन्य दल भी खुद को किसानों के समर्थन में दिखाते हुए बीजेपी पर दबाव बना सकते हैं।

सांसद हनुमान बेनीवाल ने पिछले महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को किसान आंदोलन के मुद्दे पर चिट्ठी भी लिखी थी और कहा था कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए। उन्होंने लिखा था, भीषण सर्दी और कोरोना काल में देश का अन्नदाता आंदोलन कर रहा है, जोकि शासन के लिए शोभनीय नहीं है।

बेनीवाल ने ट्वीट किया था, अमित शाह जी, देश मे चल रहे किसान आंदोलन की भावना को देखते हुए हाल ही में कृषि से सम्बंधित ला, गए 3 बिलों को तत्काल वापस लिया जाए। स्वामीनाथन आयोग की सम्पूर्ण सिफारिशों को लागू करें व किसानों को दिल्ली में त्वरित वार्ता के लिए उनकी मंशा के अनुरूप उचित स्थान दिया जाए। चूंकि, आरएलपी एनडीए का घटक दल है लेकिन, आरएलपी की ताकत किसान व जवान हैं, इसलिए अगर इस मामले में त्वरित कार्रवाई नहीं की गई तो मुझे किसान हित मे एनडीए का सहयोगी दल बने रहने के विषय पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।

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