कुआलालंपुर। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग मंच (एपेक) के नेताओं ने मुक्त, खुले और गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार और निवेश की दिशा में काम करने का संकल्प लिया। इसका मकसद कोरोना वायरस के चलते मुश्किलों का सामना कर रही अर्थव्यवस्थाओं को फिर से पटरी पर लाने की पूरी कोशिश करना है। एपेक नेताओं ने वर्ष 2017 के बाद पहला संयुक्त बयान जारी करते हुए मतभेद भुलाने और 21 एपेक अर्थव्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर मुक्त व्यापार समझौते और क्षेत्रीय एकीकरण को मजबूत बनाने पर सहमति जताई।
इस वर्ष की बैठक के मेजबान देश मलेशिया के प्रधानमंत्री मुहिद्दीन यासीन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अमेरिका और चीन के व्यापार युद्ध के चलते पिछले वर्षो के दौरान यह वार्ता बाधित हुई थी। लेकिन कोविड-19 संकट ने उस व्यापार युद्ध की स्थिति को फिलहाल नेपथ्य में छोड़ दिया है। दिसंबर में खत्म होने वाले चालू कैलेंडर वर्ष के दौरान एशिया-प्रशांत क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि दर में 2.7 प्रतिशत गिरावट का अनुमान है, जो पिछले वर्ष में 3.6 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी।
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यासीन का कहना था कि एपेक का जोर आíथक सुधार में तेजी लाने और एक कोरोना का किफायती टीका विकसित करने पर है। गौरतलब है कि वैश्विक जीडीपी में एपेक देशों की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यासीन ने यह भी उम्मीद जताई कि एपेक देश व्यापार के मामले में एक-दूसरे के प्रति बाधाएं खड़ी नहीं करेंगे और संरक्षणवाद को पीछे छोड़ते हुए आर्थिक प्रगति में योगदान देंगे।
भारत ने चीन के प्रभुत्व वाले आरसीइपी यानी रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले ने सबकों चौंका दिया, लेकिन सरकार का कहना है कि देश हित के चलते भारत ने आरसीइपी में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है। भारत सरकार का साफ कहना है कि आरसीइपी के कुछ पहलुओं को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी।