रहमान को फिल्म रंगीला के लिये आशा की आवाज की जरूरत थी। आशा ने वर्ष 1995 में प्रदर्शित फिल्म रंगीला के लिये तन्हा तन्हा गीत गाया। आशा के सिने कैरियर में यह एक बार फिर महत्वपूर्ण मोड़ आया और उसके बाद उन्होंने आजकल के धूम धड़ाके से भरे संगीत की दुनिया में कदम रख दिया। आशा भोंसले को बतौर गायिका आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिल चुके है ।आशा भोंसले को वर्ष 2001 में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।इससे पूर्व उन्हें उमराव जान और इजाजत में उनके गाये गीतों के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया।
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आज रिमिक्स गीतों के दौर मे बनाये गये गानो पर यदि एक नजर डालें तो पायेगे कि उनमे से अधिकांश नगमें आशा भोंसले ने ही गाये थे। इन रिमिक्स गानो मे पान खाये सइयां हमार, पर्दे मे रहने दो,जब चली ठंडी हवा, शहरी बाबू दिल लहरी बाबू,झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में, काली घटा छाये मोरा जिया घबराये, लोगो न मारो इसे, कह दूं तुम्हें या चुप रहूं और मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो जैसे सुपरहिट गीत शामिल है। आशा भोंसले सात दशक के अपने सिने करियर में 12 हजार से अधिक दिलकश और मदहोश करने वाले गीत दे चुकी हैं। हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी ,बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयालम और अंग्रेजी भाषाओं में भी गीत गाये हैं।
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आशा भोंसले ने हिन्दी फिल्मी गीतों के अलावा गैर फिल्मी गाने गजल, भजन और कव्वालियो को भी बखूबी गाया है। जहां एक ओर संगीतकार जयदेव के संगीत निर्देशन में जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा की कविताओ को आशा ने अपने स्वर से सजाया है वही फिराक गोरखपुरी और जिगर मुरादाबादी के रचित कुछ शेर भी गाये हैं। जीवन की सच्चाइयों को बयान करती जिगर मुरादाबादी की गजल मैं चमन में जहां भी रहूं मेरा हक है फसले बहार पर उनके जीवन को भी काफी हद तक बयां करती है।