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अटल जी ने लखनऊ को बनाया भाजपा का अभेद्य दुर्ग

Atal Bihari Vajpayee

Atal Bihari Vajpayee

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी का पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की कर्मभूमि कहा जाता है। लखनऊ ने उन्हें तमाम खट्टे-मीठे अनुभव कराए तो सांसद चुन प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाकर गौरव भी दिलाया। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जो लखनऊ अटल जी के दूसरे घर जैसा रहा, उसी ने उन्हें ठुकराने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन जब एक बार लखनऊ ने अटल जी को स्वीकार किया तो उन्हें भरपूर समर्थन और स्नेह दिया। वे यहां से पांच बार सांसद रहे।

पहला चुनाव 1955 में लड़ा

अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) का लखनऊ से सासंद बनने का सपना शुरुआती दिनों में पूरा नहीं हो पाया। 1955 में पहली बार अटल जी लखनऊ सीट पर हुए उपचुनाव में जनसंघ उम्मीदवार के तौर पर उतरे। इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार स्वराजवती नेहरू की जीत हुई। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी त्रिलोकी सिंह दूसरे और जनंसघ प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी तीसरे स्थान पर रहे।

इसके बाद 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में एक बार फिर जनसंघ ने अटल बिहारी वाजपेयी को मैदान में उतारा। इस बार कांग्रेस प्रत्याशी पुलिन बिहारी बनर्जी के माथे जीत का सेहरा बंधा। 1962 के आम चुनाव में लखनऊ से कांग्रेस के प्रत्याशी वीके धवन को विजय मिली। इस चुनाव में भी अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के प्रत्याशी थे, पर उन्हें सफलता नहीं मिली। नतीजतन उन्होंने लखनऊ से चुनाव न लड़ने में ही भलाई समझी। पर, लखनऊ आना-जाना बना रहा।

1991 में फिर से लखनऊ से चुनाव लड़ने का निर्णय किया

1991 के लोकसभा चुनाव में फिर यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस चुनाव में वे कहते भी थे, ‘लखनऊ वालों ने अगर सोच लिया था कि मुझसे पीछा छूट जाएगा तो यह नहीं होने वाला। इतनी आसानी से लखनऊ के लोग मुझसे रिश्ता नहीं तोड़ सकते। मेरा नाम भी अटल है। देखता हूं कब तक मुझे यहां के लोग सांसद नहीं बनाएंगे।’ आखिरकार वे चुनाव जीते और लखनऊ से सांसद बनने का उनका सपना पूरा हुआ। इस चुनाव में अटल जी को 194,886 (50.90 फीसदी) वोट मिले। दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी रणजीत सिंह। उन्हें 77,583 (20.26 फीसदी) वोट प्राप्त हुए।

1991 के बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा

1991 के आम चुनाव में लखनऊ से जीत के बाद अटल जी (Atal Bihari Vajpayee)  दोबारा कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2004 में अपने अंतिम संसदीय चुनाव तक वो लगातार लखनऊ के सांसद रहे। 1996 में अटल जी को 394,865 (52.25 फीसदी) वोट मिले। उन्होंने समाजवादी पार्टी प्रत्याशी सिने अभिनेता राज बब्बर को हराया। राज बब्बर को 2,76,194 (36.55 फीसदी) वोट हासिल हुए। इस चुनाव में लखनऊ से 58 प्रत्याशी मैदान में थे। इस चुनाव के बाद पहली बार अटल बिहारी 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने।

1998 के आम चुनाव में अटल जी (Atal Bihari Vajpayee)  431,738 (57.82 फीसदी) वोट पाकर विजयी हुए। उन्होंने सपा प्रत्याशी मुजफ्फर अली का हराया। 1998 के चुनाव के बाद बीजेपी ने शिवसेना, अकाली दल, समता पार्टी, अद्रमुक और बीजू जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई और अटल बिहार वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। यह सरकार 13 महीने चली और अद्रमुक के समर्थन वापस लेने के बाद गिर गई।

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1999 में अटल जी ने कांग्रेस प्रत्याशी कश्मीर राजघराने के वारिस डॉ. कर्ण सिंह को हराया। इस चुनाव में अटल जी को 362,709 (48.11 फीसदी) वोट मिले। तो वहीं डॉ. कर्ण सिंह के खाते में 2,39,085 (31.71 फीसदी) वोट आए। इस चुनाव में जीत हासिल करके अटल बिहारी फिर संसद में पहुंचे और सरकार बनाई।

2004 में अंतिम चुनाव लखनऊ से लड़ा

2004 के आम चुनाव में लखनऊवासियों ने फिर से अटल जी को अपना सांसद चुना। इस चुनाव में अटल जी को 324,714 (56.12 फीसदी) वोट मिले। उन्होंने सपा प्रत्याशी डॉ. मधु गुप्ता को हराया। मधु गुप्ता को 1,06,339 (18.38 फीसदी) वोट मिले। इस चुनाव के बाद खराब स्वास्थ्य के कारण वे सक्रिय राजनीति से दूर होते चले गए।

भाजपा का अभेद्य दुर्ग है लखनऊ सीट

अटल जी ने लखनऊवासियों से ऐसा अटूट रिशता बनाया कि लखनऊ संसदीय सीट उत्तर प्रदेश में भाजपा का अभेद्य दुर्ग बन गई है। इस दुर्ग को विपक्ष पिछले तीन दशकों में जीत नहीं पाया है। आज अटल जी हमारे बीच नहीं है, लेकिन लखनऊवासी उन्हीं के नाम से भाजपा प्रत्याशियों का खुले दिल से समर्थन करते हैं।

लखनऊ में भाजपा का मतलब सिर्फ अटल जी (Atal Bihari Vajpayee) 

राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्वयंसेवक चन्द्र प्रकाश अग्निहोत्री ने बताया कि अटल जी के सक्रिय राजनीति से दूरी बनाने के बाद 2009 में उनके उत्तराधिकारी के रूप में लालजी टंडन लड़े हों या 2014 और 2019 के चुनाव में राजनाथ सिंह। सभी अटल के नाम पर ही लड़े और जीते। अटल जी आज हमारे बीच इस दुनिया में नहीं हैं। पर लखनऊ और अटल को कोई कभी अलग नहीं कर पाएगा। इस शहर के लिए आज भी वे अजेय ही हैं।

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