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शुक्र प्रदोष पर बरसेगी भोलेनाथ की कृपा, इस शुभ मुहूर्त में पूजा

Shukra Pradosh

Shukra Pradosh

शुक्र प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) एक विशेष हिंदू व्रत होता है जो शुक्रवार को प्रदोष काल में किया जाता है। यह व्रत भगवान शिव की आराधना के लिए रखा जाता है। “प्रदोष” का अर्थ होता है “संध्या का समय”, यानी सूर्यास्त से लगभग 1।5 घंटे पहले और बाद का समय।इस व्रत को करने से जीवन में सुख, सौंदर्य, धन और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत शुक्र ग्रह से जुड़ा है, जो जीवन में प्रेम, समृद्धि, सौंदर्य और भौतिक सुखों का प्रतिनिधित्व करता है। जिनकी कुंडली में शुक्र ग्रह अशुभ हो, वे यह व्रत उन्हें जरूर रखना चाहिए। वहीं वैवाहिक जीवन में सुख और शांति लाने के लिए पुरुषों और स्त्रियों के लिए यह व्रत विशेष फलदायक माना गया है,

शुक्र प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) कब है?

पंचांग के अनुसार, वैशाख माह का कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 25 अप्रैल को सुबह 11 बजकर 44 मिनट पर होगी। वहीं तिथि का समापन 26 अप्रैल को सुबह 8 बजकर 27 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, वैशाख माह का पहला प्रदोष व्रत 25 अप्रैल को रखा जाएगा। वहीं त्रयोदशी तिथि शुक्रवार के दिन होने की वजह से यह शुक्र प्रदोष व्रत कहलाएगा।

शुक्र प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) पूजा का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त के बाद का समय होता है। इसलिए 25 अप्रैल को प्रदोष काल में पूजा करने का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 53 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 3 मिनट तक रहेगा।

शुक्र प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) की पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान शिव का ध्यान करते हुए हाथ में जल, अक्षत (चावल) और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें। मन में अपनी मनोकामना कहें। घर के मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। शिवलिंग का गंगाजल या शुद्ध जल से अभिषेक करें। यदि शिवलिंग घर पर नहीं है, तो भगवान शिव की प्रतिमा का अभिषेक करें।

भगवान शिव और माता पार्वती को चंदन, रोली, मौली, अक्षत, पुष्प, बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि अर्पित करें। माता पार्वती को श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करना भी शुभ माना जाता है। घी का दीपक जलाएं। भगवान शिव को सफेद मिठाई या फल का भोग लगाएं। “ॐ नमः शिवाय” या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। आप शिव चालीसा और गौरी चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं। शुक्र प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। आखिर में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। पूजा में हुई किसी भी भूल-चूक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का महत्व

यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। शुक्र प्रदोष व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि, धन-वैभव और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत दांपत्य जीवन में मधुरता लाता है और पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ाता है। इसे करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। यह आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है और ग्रहों के बुरे प्रभावों को कम करता है। संतान की कामना करने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है और धन-संपदा में वृद्धि होती है।

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