डा0 मुरली धर सिंह (राघव जी)
लखनऊ/अयोध्या। केन्द्र एवं राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य है, आम जनमानस में स्वतंत्रता की गाथाओं को पहुंचाएँ तथा हर घर में तिरंगा फहराये एवं आज 11 से 17 अगस्त 2022 तक स्वतंत्रता सप्ताह मनाये।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इस निर्णय को शत प्रतिशत लोगों के घरो में जागरूकता के आधार पर सामूहिक भागीदारी से पहुंचाना है इसके लिए पूरी कार्ययोजना बनायी गयी है तथा इसको ऊपर से नीचे तक लागू किया जा रहा है।
इसके पूर्व हमारा देश *15 अगस्त 1947* को आजाद हुआ था उसका समारोह प्रत्येक वर्ष मनाया जा रहा है। सन् 1972 में इसकी 25वीं वर्षगांठ मनायी गयी थी। उस समय देश की प्रधानमंत्री मती इंदिरा गांधी जी थी। उनके नेतृत्व में पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक विजय हुई थी तथा नये देश बंग्लादेश का उदय हुआ था उस 25वें आजादी महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) में यह विजय उत्सव मुख्य थीम था।
आजादी की 50वीं वर्षगांठ देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री एच0डी0 देवगौड़ा के नेतृत्व में वर्ष 1997 में मनाया गया था, उस समय इस आजादी का मुख्य उद्देश्य ‘संघवाद एवं आर्थिक उदारीकरण‘ था और इस वर्ष आजादी की 75वी वर्षगांठ आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) के रूप में मनाया जा रहा है। इसकी घोषणा भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा वर्ष 2021 में लालकिले की प्राचीर से की गयी थी तथा इसकी संसद के दोनों सदनों में चर्चा भी हुई थी। चर्चा का मुख्य बिन्दु था भारत की शक्ति को बढ़ाते हुये विश्व पटल पर दिखाया जाय एवं किसी भी राष्ट्र का चिन्ह व ध्वज होता है वह देश का प्रतिनिधित्व करता है तथा मुख्य रूप से हमें पहचान दिलाता है। इसी कड़ी में यह निर्णय हुआ था कि भारत के साढ़े पांच लाख गांवों में तथा 625 शहरों के प्रत्येक घरो में तिरंगा फहराया जाये। उसी की कड़ी में यह अमृत महोत्सव एक वर्ष से चल रहा है तथा इसका समापन 17 अगस्त 2022 को होगा क्योंकि हम आजादी के 76वें वर्ष में 15 अगस्त को प्रवेश कर रहे है जो एक अनुभवी राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। जो आज विश्व के सभी राष्ट्र भारत की बात को सुनते है तथा जो आज कल विश्व की महाशक्तियां है (अमेरिका आदि) जो भारत को अघोषित रूप से विश्व शक्ति मान चुकी है इसका श्रेय एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता मान नरेन्द्र मोदी को जाता है।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी से यह भी मेरी मांग है कि आजादी के अमृत महोत्सव के बाद संसद (लोकसभा राज्यसभा) तथा राज्य की विधानसभाओं का अलग-अलग सत्र बुलाकर तथा वर्तमान एवं 1952 से निर्वाचित जीवित जनप्रतिनिधियों को एवं भारत रत्न तथा अन्य सिविल पुरस्कार से सम्मानित जननायको एवं सेना के मेडल प्राप्त वीर सपूतों आदि को या उनके परिवारो को सम्मानित किया जाय। साथ ही साथ स्वतंत्रता से जुड़े व्यक्तियों के परिवारों को भी सम्मानित किया जाय। इससे राष्ट्र और मजबूत होगा।
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भारतीय *सर्वोच्च न्यायालय* द्वारा वर्ष 2002 में भारतीय यूनियन बनाम नवीन जिंदल केस में निर्णय दिया गया है जो ध्वज के मान सम्मान को बढ़ाने वाला है, राष्ट्रीय ध्वज गौरव अधिनियम 1971 में तथा भारतीय झंडा संहिता 2002 में संशोधन कर इसको सभी व्यक्तियों को फहराने व प्रदर्शित करने की अनुमति दी गयी है जो एक स्वागत योग्य कदम है।
*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय संघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ( गुरू जी)* ने सन् 1972 में अपने वार्षिक कार्यक्रम/विजय दशमी के दिन कहा था कि ‘हम सभी को अपने-अपने संस्कृति के मुख्य चिन्ह एवं प्रणेता ध्वज को आत्मा से सम्मान करना चाहिए तथा हमें अपने संस्था के ध्वज के साथ साथ अपने राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान एवं आदर करना चाहिए‘। *राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ संघचालक प्रो0 राजेन्द्र सिंह जी (रज्जू भईया)* ने वर्ष 1997 के अपने वार्षिक उत्सव/विजय दशमी के अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा था कि ‘हमारा ध्वज आत्मा है एवं राष्ट्र आत्म स्वाभिमान का प्रतीक है इसे सम्मान के साथ साथ नमन भी करना चाहिए, उसी प्रकार हमें राष्ट्रीय ध्वज का भी परम आदर करना चाहिए, क्योंकि ध्वज से ही हमें किसी भी समाज में प्रतिनिधित्व का मौका मिलता है तथा ध्वज ही सम्मान दिलाता है‘।
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प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है, जो उस देश के स्वतंत्र देश होने का संकेत है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है, जो तीन रंगों-केसरिया, सफेद और हरे रंग से बना है और इसके केंद्र में नीले रंग से बना अशोक चक्र है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना पिंगली वैंकैयानंद ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्वरूप में *22 जुलाई 1947* को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था। यह *15 अगस्त 1947* को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इसे *15 अगस्त 1947* और *26 जनवरी 1950* के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ‘तिरंगे’ का अर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्वज की चैड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चैड़ाई के बराबर होता है और इसमें *24 तीलियां है।*
तिरंगे का विकास- यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों से गुजरा। हमारे राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं- प्रथम राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चैक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था। तृतीय ध्वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्वि करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए। वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। अशोक द्वारा तत्कालीन समय में पूरे अपने परिवार के साथ बौद्व धर्म स्वीकार कर लिया गया था। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंततः स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना। राष्ट्रीय ध्वज के रंग रू भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
*(अशोक चक्र)* इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज भारत के नागरिकों की आशाएं और आकांक्षाएं दर्शाता है। यह हमारे राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है। पिछले पांच दशकों से अधिक समय से सशस्त्र सेना बलों के सदस्यों सहित अनेक नागरिकों ने तिरंगे की शान को बनाए रखने के लिए निरंतर अपने जीवन न्यौछावर किए हैं।