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निरहुआ की इन गलतियों से भाजपा के हाथ से फिसला आजमगढ़

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आजमगढ़। लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल के वाराणसी और गोरखपुर के बाद सर्वाधिक चर्चा का केन्द्र आजमगढ़ सीट थी। उपचुनाव में मिली हार का बदला लेते हुए सपा ने अपने इस पुराने किले को दोबारा फतह कर लिया। भाजपा के निरहुआ (Nirahua) की मुलायम सिंह यादव के कुनबे से धर्मेंद्र यादव के हाथों हुई हार के पीछे के कारणों पर चर्चा छिड़ी है।

आजमगढ़ से सांसद अखिलेश यादव के विधायक बनने के बाद सीट खाली करने के कारण 2022 में हुए उपचुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपना गढ़ बचाने को परिवार के सदस्य धर्मेंद्र यादव को उतारा था। यादव और मुस्लिम बहुल सीट आजमगढ़ पर कब्जा करने को भाजपा ने यादव बिरादरी से ही दिनेश लाल यादव निरहुआ (Nirahua) को मैदान में उतारकर उपचुनाव में जीत हासिल कर ली थी। उप चुनाव जीतने के बाद ही माना जा रहा था कि दिनेश लाल यादव निरहुआ ही आजमगढ़ से 2024 में के आम चुनाव में भी सपाई कुनबे को ललकारेंगे। हुआ भी वही। निरहुआ ही भाजपा प्रत्याशी बनाए गए। निरहुआ की जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा में पूरा दमखम लगाया। शीर्ष नेताओं की रैलियां कराई गईं। मोदी से लेकर योगी तक ने निरहुआ के लिए वोटों की घेराबंदी की, लेकिन निरहुआ इस बार करिश्मा नहीं कर सके। धर्मेंद्र यादव ने बड़े अंतर से सीट अपने कुनबे में वापस ले ली। धर्मेन्द्र यादव ने 161035 मतों से यह सीट हथिया ली। धर्मेंद्र को 508239 वोट और निरहुआ को 347204 वोट मिले। बसपा के मसूद शबीह अंसारी को 179839 मत प्राप्त हुए।

आंकड़ों के अनुसार उपचुनाव में जिन विधानसभा क्षेत्रों सगड़ी, मेंहनगर और आजमगढ़ सदर में करीब सोलह हजार मतों की बढ़त लेकर समाजवादी किला ध्वस्त किया था, उनमें भी इस बार निरहुआ (Nirahua)  पिछड़ गए। मुबारकपुर और गोपालपुर में तो धर्मेंद्र यादव ने इस बार तगड़ी लीड ली है।

आजमगढ़ से निरहुआ (Nirahua) की हार के पीछे कई वजहें सामने आ रही हैं। आजमगढ़ के लोगों की मानें तो संगीत महाविद्यालय, आजमगढ़ एयरपोर्ट से शुरू हुईं उड़ानें और सुहेलदेव विश्वविद्यालय जैसे विकास के गिनाने लायक कई काम थे,लेकिन निरहुआ अखिलेश यादव और उनके कुनबे पर तीखे हमले करते थे। अखिलेश यादव पर सीधा हमला आजमगढ़ के यादव मतदाताओं को चुभता था। जिसका बदला वोटों के जरिए लिया।

निरहुआ (Nirahua)  की लोगों से संवाद में कमी भी हार की एक बड़ी वजह मानी जा रही है। अधिकांश लोगों का कहना है कि निरहुआ कुछ खास किस्म के लोगों से घिरे रहते थे। जिस कारण आम लोगों और भाजपा के साधारण कार्यकर्ता उन तक आसानी से पहुंच नहीं पाते थे। इससे भी धीरे-धीरे नाराजगी बढ़ती गई। आजमगढ़ में केन्द्र और प्रदेश सरकार के प्रयासों से बड़े शहरों के लिए चौड़ी और अच्छी सड़कें तो बनी हैं,मगर गांवों को जोड़ने वाली सड़कों का खस्ताहाल था। जिस पर निरहुआ ने अपने दो साल के कार्यकाल में अपेक्षित ध्यान नहीं दिया।

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आजमगढ़ के राजनीतिक पंडितों के अनुसार निरहुआ (Nirahua) के प्रति भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं था। जिसे नेतृत्व भांप नहीं सका। उनका मानना है कि इस बार बाहरी निरहुआ के स्थान पर किसी स्थानीय को लड़ना बेहतर साबित हो सकता था। वहीं, बसपा से गुड्डू जमाली जैसे कद्दावर मुस्लिम नेता का प्रत्याशी का न होना भी भाजपा के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुआ। बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी पूरे चुनाव के दरम्यान सुस्त कैम्पेनिंग करता रहा। इसके अलावा दिनेश लाल यादव निरहुआ का स्थानीय संगठन से तालमेल भी ठीक नहीं थी। मानो उनकी किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो, प्रचार अभियान में बाहरी लोगों का दखल अधिक था। वे फिल्म यूनिट की तरह फील्ड सजा रहे थे। जिन्हें स्थानीय राजनीतिक आवश्यकताओं की समझ नहीं थी। माना जा रहा है कि इन्हीं वजहों से भाजपा के हाथ आजमगढ़ निकल गया।

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