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‘बाबू मोशाय, जिंदगी और मौत ऊपरवाले के हाथ है’,फिल्म ‘आनंद’ के पूरे हुए 50 साल

Movie Anand

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सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है. साथ ही फिल्म के जरिए लोगों को संदेश देने के नायाब तरीकों में से एक माना जाता है. कई हिदायतकार ऐसे हुए हैं जो सामाजिक और संदेशात्मक फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं तथा इस कला में महारत हासिल किए हुए हैं. इन्हीं में एक हैं ऋषिकेश मुखर्जी जो न सिर्फ व्यंग्यात्मक और चुटेले लहजे से संदेश देते हैं बल्कि भरपूर मनोरंजन भी कराते हैं. ऋषिकेश दा की एक कालजयी फिल्म ‘आनंद’ को रिलीज हुए आज 50 बरस पूरे हो गए हैं.

फिल्म ‘आनंद’ भारतीय सिनेमा को उन बेहद चंद फिल्मों में शुमार किया जाता है जिसके गानों के ऑडियो कैसेट के साथ-साथ डॉयलाग के कैसेट भी खूब बिके. एक से बढ़कर एक डॉयलाग को सुनने के लिए 90 के दशक में लोग ऑडियो कैसेट खरीदा करते थे. यह फिल्म 1971 में 12 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. उस दौर में यह फिल्म सुपरहिट रही थी और करीब 2 करोड़ रुपये का बिजनेस किया था. जो अपने आप में किसी फिल्म की रिकॉर्डतोड़ कामयाबी थी.

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फिल्म आनंद को राजेश खन्ना के उम्दा अभिनय के लिए भी जाना जाता है. कई अन्य महान फिल्मों की तरह इस फिल्म के लीड रोड के लिए राजेश खन्ना पहली पसंद नहीं थे. कहा जाता है कि ऋषिकेश मुखर्जी पहले इस फिल्म की लीड एक्टर के लिए किशोर कुमार को लेना चाहते थे, लेकिन किशोर कुमार के गेटकीपर की गलती की वजह से वो इतने आहत हुए कि उन्होंने अपना फैसला बदल दिया.

फिर लीड रोल के लिए महमूद से संपर्क किया गया लेकिन यहां भी बात नहीं बनी. ऋृषिकेश दा ने राज कपूर और शशि कपूर को भी फिल्म के लिए ऑफर किया लेकिन दोनों अपनी-अपनी वजह से फिल्म में काम नहीं कर सके. इसके बाद राजेश खन्ना को लीड रोल के लिए चुना गया, जिन्होंने अपने शानदार अभिनय से फिल्म और किरदार को अमर कर दिया.

फिल्म के लीड एक्टर राजेश खन्ना यानी आनंद सहगल फिल्म में अपने प्रिय दोस्त डॉक्टर भास्कर बनर्जी (अमिताभ बच्चन) को बाबू मोशाय कहकर संबोधित किया करते थे. कहा जाता है कि यह शब्द राजकपूर ने दिया था. राजकपूर ऋषिकेश दा को बाबू मोशाय कहकर संबोधित किया करते थे. ऋषिकेश दा ने राजकपूर को लेकर उस समय फिल्म आनंद लिखी थी, जब वे गंभीर रूप से बीमार पड़े थे और उनके बचने की उम्मीद कम थी. खैर, राजेश खन्ना के हिस्से में यह फिल्म आई और उस किरदार को इस संवाद के साथ अमर कर दिया, ‘आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं.’

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बात अब फिल्म आनंद की करते हैं, फिल्म अपनी भावपूर्ण कहानी और राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के बेमिसाल अभिनय के अलावा अपने बेहतरीन डायलॉग के लिए भी जानी जाती है. राजेश खन्ना जहां आनंद के किरदार में थे तो अमिताभ बच्चन डॉक्टर भास्कर बनर्जी की भूमिका में थे. आनंद डॉक्टर भास्कर बनर्जी को बाबू मोशाय कहा करते थे.

फिल्म में राजेश खन्ना ने एक खुशमिजाज कैंसर मरीज का रोल निभाया था तो इस मरीज के दोस्त और डॉक्टर भास्कर के रोल में थे अमिताभ बच्चन.

फिल्म को उम्दा अभिनय के अलावा अगर सबसे ज्यादा याद किया जाता है तो इसके दमदार संवाद को. मुगले-आजम और शोले की तरह इस फिल्म के संवाद आजतक लोगों की जुबान पर हैं और सही मायनों में आनंद फिल्म के संवाद जिंदगी के फलसफे को ही बताते हैं.

फिल्म के संवाद गीतकार गुलजार ने लिखे थे और उनके कई संवाद आज भी लोगों की आंखों में आंसू ला देते हैं. फिल्म के लिए गुलजार ने दो गीत ‘मैंने तेरे लिए’ और ‘ना जिया लागे ना’ लिखे.

अब एक नजर डालते हैं फिल्म के कालजयी कई संवादों पर.

‘बाबू मोशाय, जिंदगी और मौत ऊपरवाले के हाथ है, जहांपनाह उससे न तो आप बदल सकते हैं न मैं, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिनकी डोर ऊपरवाले की अंगुलियों में बंधी हैं, कब, कौन, कैसे उठेगा यह कोई नहीं बता सकता है.’

‘बाबू मोशाय जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं.’

‘मौत तो एक पल है…’

‘यह भी तो नहीं कह सकता कि मेरी उम्र तुझे लग जाए !’

‘आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं’

‘जब तक जिंदा हूं तब तक मरा नहीं, जब मर गया साला मैं ही नहीं.’

‘आज तक तुम बोलते आए और मैं सुनता आया, आज मैं बोलूंगा और तुम सुनोगे.’

रिलीज के दिन अमिताभ को किसी ने नहीं पहचाना

फिल्म के रिलीज होने से पहले डॉक्टर भास्कर बनर्जी यानी अमिताभ बच्चन आम लोगों में ज्यादा नहीं पहचाने जाते थे. उस समय के एक वाकये का जिक्र करते हुए एक प्रशंसक ने 2 साल पहले ट्वीट करते हुए कहा था कि 1971 में जिस दिन यह फिल्म रिलीज हुई उस दिन सुबह अमिताभ ने पेट्रोल पंप पर गाड़ी में तेल भरवाया था और फिर शाम को जब वह पेट्रोल पंप पर कार में तेल भरवाने आए तो हर किसी ने उन्हें आसानी से पहचान लिया.

इस वाकये को खुद अमिताभ ने भी स्वीकार किया. खुद ट्वीट के जरिए उन्होंने बताया कि यह सही बात है. एसवी रोड पर लारला पर पेट्रोल पंप पर ऐसा हुआ था.

राजेश खन्ना की फिल्म ‘आनंद’ बेहद सफल रही. साल 1969 से लेकर 1971 के बीच उन्होंने लगातार 17 हिट फिल्में देने का रिकॉर्ड बनाया था. फिल्म को 1971 के बेस्ट फीचर फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया. जबकि 1972 में इस फिल्म ने बेस्ट फिल्म, बेस्ट एक्टर, बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर और बेस्ट डायलॉग समेत 6 वर्ग में फिल्मफेयर अवॉर्ड अपने नाम किया था.

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