बैसाखी (Baisakhi) का पर्व देशभर में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को सिख समुदाय के लोग नए साल के रूप में मनाते हैं। पंजाब में इस पर्व की रौनक कुछ अलग ही देखने को मिलती है। इस दिन सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए इस पर्व वाले दिन मेष संक्रांति भी मनाई जाती है। इसे खुशहाली और समृद्धि का पर्व कहा जाता है। कहते हैं बैसाखी के दिन ही सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
बैसाखी (Baisakhi) कब है?
बैसाखी (Baisakhi) का पर्व हर साल मेष संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है। इस साल यह पर्व सोमवार, 14 अप्रैल को मनाया जाएगा।
बैसाखी (Baisakhi) का सांस्कृतिक महत्व
बैसाखी का पर्व विशेष रूप से नई फसल के आगमन की खुशी में मनाया जाता है। यह पर्व उत्तराखंड, पंजाब, जम्मू, हिमाचल, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में लोग इसे बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाते हैं। वहीं भारत के कुछ कई हिस्सों में इस पर्व को नए साल यानी सौर नव वर्ष के रूप में माना जाता है।
बैसाखी (Baisakhi) का धार्मिक महत्व
सिख धर्म में बैसाखी का खास महत्व है। कहते हैं कि इस दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का प्रतीक है। कहते हैं इस दिन गुरु गोबिंद सिंह ने सभी जातियों के बीच के भेदभाव को समाप्त कर दिया था। इस अवसर पर सिख गुरुद्वारों को सजाया जाता है, विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं और नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है।