आगरा। ताजनगरी में गुरुवार को बकरीद (Bakrid ) का पर्व मनाया गया। इस मौके पर मुस्लिम समाज के लोगों ने एक से बढ़कर एक कीमती बकरों की कुर्बानी दी। लेकिन, मोहब्बत की निशानी वाली इस नगरी में पर्व मनाने के अंदाज को लेकर एक परिवार काफी चर्चा में है। दरअसल, यह परिवार खुद तो कभी किसी जानवर की हत्या करता नहीं है, साथ ही अन्य लोगों को भी कुर्बानी के नाम पर बेजुबानों की हत्या न करने के लिए प्रेरित करता है। इस परिवार ने बकरे के चित्र वाला केक काटकर बकरीद पर्व मनाता आ रहा है। इस बार भी इसी तरह केक काटकर पर्व मनाया।
हम बात कर रहे हैं शाहगंज क्षेत्र के आजमपारा, शेरवानी मार्ग, तिरंगा मंजिल निवासी नवाबगुल चमन शेरवानी के परिवार की। यह परिवार पिछले छह वर्षों से बकरीद (Bakrid ) पर बकरे के चित्र वाला केक काटकर इसे ही कुर्बानी मान लेता है। पूरा परिवार इस तरह पर्व मनाने से काफी प्रसन्न भी रहता है। चमन शेरवानी पहली बार राष्ट्रीयगीत वंदे मातरम तथा तिरंगा प्रेम के चलते सुर्खियों में आए थे।
चमन शेरवानी वंचित समाज इंसाफ पार्टी वीआईपी से फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र से पूर्व सांसद प्रत्याशी भी रह चुके हैं। चमन शेरवानी की तिरंगा फैमिली का मानना है कि ईश्वर ने खाने के लिए तमाम नियामत पैदा की है। फिर अपने भोजन के लिए किसी जीव की हत्या करना मुनासिब नहीं है। बहुत ही कम लोग शर्यती तौर पर तरीके से कुर्बानी करते हैं। बाकी लोग पर्व के नाम पर अपनी दौलत की नुमाइश करते हुए गरीब लोगों की गरीबी का मजाक बनाते हैं।
उनका मानना है कि शर्यती तौर पर उस जानवर की कुर्बानी करनी चाहिए, जिससे हमें लगाव हो। हमने उसे बचपन से अपने परिवार के सदस्य की तरह पाला हो। यदि हम ऐसा करें तो हमारी इच्छा ही नहीं हो सकती कि उस जानवर का मीट खा सकें। लोग एक दिन पहले दौलत के बल पर जानवर लेकर आते हैं। अगले दिन उसे अल्लाह के नाम पर इब्राहिम साहब की याद बताकर हत्या कर देते हैं। यह कुर्बानी नहीं बल्कि जीव हत्या है।
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चमन शेरवानी का कहना है कि सदियों पूर्व हजरत इब्राहिम साहब ने अल्लाह की राह में अपने तमाम पसंदीदा जानवरों को कुर्बान करने के बाद अपने बेटे को जुबा करना चाहा। लेकिन, अल्लाह सिर्फ कुर्बानी करने वाले की नियत देखता है। अल्लाह ने उनके बेटे की जगह एक जानवर भेड़ पैदा कर दी। तब से ही जानवरों की कुर्बानी का सिलसिला चला आ रहा है। जब इंसान की जगह जानवर आ सकता है तो जानवर की जगह जानवर के फोटो वाला केक काटकर परंपरा क्यों नहीं अदा की जा सकती।
कहा कि आज दौलतमंद लोग कुर्बानी के नाम पर जीव हत्या करते हैं। गरीबों का हक मारते हैं। कुर्बानी करने वाले को सबसे पहले अपने मां-बाप, भाई-बहन और पड़ोसियों का हक अदा करना चाहिए। उसके बाद कुर्बानी जायज है। जबकि ऐसे लोग भी कुर्बानी कर रहे हैं, जो केवल ईद और बकरा ईद और कभी-कभी जुम्मे को नमाज अदा करते हैं। उसके बाद मस्जिद की तरफ मुड़कर भी नहीं देखते हैं।
उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो आदमी को नमाजी होना चाहिए। ईमानदार होना चाहिए। अपने भाई-बहन, मां-बाप का फर्ज अदा करना चाहिए। खैरात और जकात करने के बाद कुर्बानी जायज है। जबकि, लोग अपनी खैरात और फितरा सदका तक नहीं निकालते। मेरा मानना है कि यदि देशभर के मुसलमान ईमानदारी के साथ जकात निकाल दें तो देश में 80 फीसदी भुखमरी खत्म हो जाएगी। चमन शेरवानी की इस पहल पर शहर से लेकर गांव तक के लोगों ने सराहना की है।