नई दिल्ली| कोरोना महामारी के कारण वित्तीय संकट में आए कर्जदारों को लोन पुनर्गठन (रिस्ट्रक्चरिंग) कराने में शर्तों और शुल्क की दोहरी मार पड़ रही है। बैंक लोन पुनर्गठन करने के लिए 1000 से 10 हजार रुपये तक प्रोसेसिंग शुल्क वसूल रहे हैं। साथ ही ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी कर रहे हैं। वहीं, कई बैंकों ने लोन पुनर्गठन के शर्तों को काफी पेचीदा बना दिया है जिनको पूरा करना कर्जदारों के लिए मुश्किल हो रहा है।
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इस संकट के समय मे ग्राहकों से लोन पुनर्गठन पर शुल्क और अधिक ब्याज वसूलने पर बैंक के अधिकारियों का कहना है कि इस पूरे प्रोसेस में एक लागत आ रही है। बैंक इसकी भरपाई अपनी जेब से नहीं कर सकता है। इसके लिए वह यह बढ़ा शुल्क ग्राहकों से ले रहे हैं। बैंकों का कहना है कि वह लोन पुनर्गठन से पहले ग्राहक पर कोरोना के करण पड़े वित्तीय प्रभाव, क्रेडिट स्कोर, भविष्य में आय के साधान जैसे प्रमुख चीजों पर गौर कर रहा है।
इसके बाद ही वह लोन पुनर्गठन करेगा। सेंट्रल बैंक की वेबसाइट के अनुसार, वह अपने ग्राहकों से लोन पुनर्गठन के लिए एक हजार से 10 हजार रुपये चार्ज करेगा। निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक एचडीएफसी ने भी कहा कि वह भी लोन पुनर्गठन कराने वाले ग्राहकों से शुल्क वसूलेगा।
बैंकिंग विशेषज्ञों का कहना है कि लोन पुणर्गठन कराने के लिए बैंकों ने सैलरी स्लिप, इनकम का डिक्लेरेशन, नौकरी जाने के मामले में डिस्चार्ज लेटर, अकाउंट का स्टेटमेंट आदि समेत कई दस्तावेज मांगे हैं। हर नौकरीपेशा या छोटे बिजनेसमैन के लिए इसको पूरा करना काफी मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति में वह चाहकर भी अपना लोन को पुनर्गठन नहीं करा पाएंगा।
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लोन मोरेटोरियम सुविधा 31 अगस्त खत्म होने के बाद आरबीआई के नए दिशानिर्देशों के अनुसार बैंक खुद नियम और शर्तें बनाकर कर्जदारों को लोन पुनर्गठन के लिए पेशकश कर रहे हैं। हर बैंक अपने अनुसार नियम बना रहे हैं। इससे कर्जदारों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, आरबीआई के गाइड होने के कारण छह महीने के लोन मोरेटोरियम में इस तरह की कोई समस्या आम लोगों को नहीं उठानी पड़ी थी।