नई दिल्ली। देशभर में पिछले एक साल के दौरान बैंको की तरफ से रुपे डेबिट कार्ड जारी किए जाने की संख्या में बड़ी कमी देखी गई है। आईआईटी बाम्बे की रिपोर्ट के मुताबिक, मास्टरकार्ड और वीजा डेबिट कार्डों से मर्चेंट डिस्काउंट रेट यानी एमडीआर चार्ज के जरिए बैंकों की हजारों करोड़ रुपये की कमाई होती है, जिसके चलते भारत के रुपे डेबिट कार्ड बैंकों ने जारी करने कम कर दिए हैं।
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सितंबर 2018 से अगस्त 2019 के दौरान देश में 4.28 करोड़ नए प्रधानमंत्री जन धन खाते खोले गए और इस दौरान देश में करीब 4.65 करोड़ रूप डेबिट कार्ड जारी किए गए हैं। वहीं, अगर इसके अगले साल की बात की जाए तो तस्वीर बिल्कुल उलट जाती है। 2019 के सितंबर से लेकर अगस्त 2020 के दौरान 3.63 करोड़ नए प्रधानमंत्री जनधन खाते खोले गए, लेकिन जारी किए गए रुपे डेबिट कार्ड की संख्या सिर्फ 65 लाख ही रही है।
साल 2018-19 के लिए सरकार की तरफ से 2000 रुपए तक के लेन देने पर एमडीआर शून्य कर दिया गया था। बाद में 1 जनवरी 2020 से इस व्यवस्था को बदलते हुए एमडीआर से राहत सिर्फ रुपे डेबिट कार्ड तक ही सीमित रखी गई। जबकि वीजा और मास्टरकार्ड से लेन देन के लिए जीरो एमडीआर चार्ज जैसे कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए।
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आईआईटी बाम्बे के प्रोफेसर आशीष दास के मुताबिक, एमडीआर के जरिए बैंकों की हर साल हजारों कमाई रुपये की कमाई होती है। ऐसे में अगर सरकार रुपे डेबिट कार्ड और मास्टरकार्ड, वीजा के बीच एमडीआर का फर्क बरकरार रखेगी तो बैंकों के लिए रुपे डेबिट कार्ड जारी करना घाटे का सौदा होगा। ऐसे में उससे नुकसान रूपे डेबिट का ही होगा।