नयी दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने जंग में जीती हर बाज़ी को मेज़ पर गंवाया है और उसके नेता राहुल गांधी को मोदी सरकार पर आरोप लगाने से पहले अपनी बुद्धि, तर्क, तथ्य और अपनी विरासत को अच्छी तरह से समझना चाहिए।
भाजपा के प्रवक्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि श्री गांधी ने भारत की विदेश नीति, रक्षा नीति और प्रधानमंत्री के बारे में जो कुछ कहा है, उसमें कुछ भी नया नहीं है। उन्हाेंने अपनी चिरपरिचित शैली में आधारहीन, तथ्यहीन, तर्कहीन आक्षेप लगाने और उसे सामरिक परिप्रेक्ष्य देने का विफल प्रयास किया है।
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डॉ. त्रिवेदी ने कहा कि वह ‘डिजायन’ यानी साजिश की बात करते हैं जबकि चीन की यह ‘डिज़ायन’ छह दशक में भी उनके परिवार की तीन पीढ़ियां नहीं समझ पायीं। दिसंबर 1957 में चीनी अखबार में अक्साई चिन को लेकर दावा पेश किया था और उसके बाद विदेश सचिव ने प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को तीन फरवरी 1958 को एक पत्र लिखा था जिस पर पं नेहरू ने चीन से अनौपचारिक बातचीत करने को कहा। मार्च 1959 में हम परम पावन दलाईलामा को शरण देते हैं और 1960 में देश में चाऊ ऐन लाई का भव्य स्वागत किया जाता है। वर्ष 1960 में भारतीय नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट चीन के पक्ष में अस्वीकार कर देता है।
उन्होंने कहा कि सब कुछ चीन की उसी एक डिज़ायन से चल रहा है जिसे देश के सर्वाधिक पढ़े लिखे दोनों प्रधानमंत्री पं. नेहरू और डॉ. मनमोहन सिंह दोनों ही नहीं पहचान पाये। तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने संसद में स्वीकार किया था कि सीमा पर आधारभूत ढांचे में चीन भारत से बहुत आगे है और हमारे इलाके में ढांचागत विकास नहीं करना हमारी नीति है। उन्होंने कहा कि यह समस्या भारत सरकार और उसकी विदेश नीति की समस्या से अधिक एक परिवार की निजी दुर्भाग्यशाली परंपरा रही है।
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डॉ. त्रिवेदी ने श्री गांधी से सवाल किये कि विगत कुछ वर्षों में भारत परमाणु नियंत्रण की पांच में से चार इकाइयों का सदस्य बन चुका है। मिसाइल टैक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में भारत सदस्य बन चुका है जबकि चीन को उसमें प्रवेश नहीं मिला है। इसी प्रकार मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया गया। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर पूरी दुनिया में किसी वैश्विक निकाय में एक लाइन भी नहीं कही गयी। शंघाई सहयोग संगठन में आतंकवाद के विषय को सम्मिलित किया गया। फिर भी कांग्रेस के नेता को विदेश नीति विफल लगती है।
उन्होंने कहा कि 2004 में भारत का चीन के व्यापार घाटा एक अरब डॉलर से कुछ अधिक था जो 2014 तक 36.1 अरब डाॅलर सालाना हो गया। यदि इस व्यापार घाटे का 10 साल का आकलन किया जाये तो यह 175 अरब डॉलर से अधिक होता है जो चीन के रक्षा बजट का तीन गुने से अधिक है। इस प्रकार से स्पष्ट है कि कौन चीन को मदद दे रहा था। उन्होंने श्री गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि चीन के साथ जब भी तनाव हो तो उन्हें ब्रीफिंग चीन से लेनी है। गत 17 जून को चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में जो कुछ लिखा गया, श्री गांधी के बयान में उसकी प्रतिध्वनि क्यों सुनाई देती है।
डॉ. त्रिवेदी ने कहा कि जिनकी विदेश नीति से आधा पंजाब गया, आधा जम्मू कश्मीर गया, आधा बंगाल गया, चीन के हाथों कैलास मानसरोवर गया, ऐसे लोग मैदान जीतने के बाद मेज पर बाज़ी हारते रहे। आखिर क्यों पाकिस्तान एवं चीन के मीडिया में श्री गांधी की ही सुर्खियां बनतीं हैं। उन्होंने कहा कि संघर्ष के समय विपक्ष का व्यवहार कैसा होना चाहिए, इसे अतीत से सीखना चाहिए। 1962 की लड़ाई में भारतीय जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका की पं नेहरू ने भी खुल कर तारीफ की थी।
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि श्री गांधी अनर्गल प्रलाप के आदी हो गये हैं। उनको बुद्धि, तर्क, तथ्य और अपनी विरासत समझनी चाहिए और सकारात्मक एवं रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए।