एकादशी (Ekadashi) का व्रत सभी व्रतों में सबसे प्राचीन माना गया है। पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था कि “एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है।” ऐसा कहा जाता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक जाते हैं। इस बार विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) का व्रत 27 फरवरी 2022 दिन रविवार को रखा जाएगा। इस व्रत के कुछ खास नियम हैं, जो एकादशी तिथि से एक दिन पहले शुरू हो जाते हैं।
आइए जानते हैं इन नियमों के बारे में…
विजया एकादशी व्रत एवं पूजा विधि
1- एकादशी से एक दिन पूर्व एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान्य रखें।
2- सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी का कलश उस पर स्थापित करें।
3- एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
4- पंचपल्लव कलश में रखकर भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें।
5- धूप, दीप, चंदन, फल, फूल व तुलसी आदि से श्री हरि की पूजा करें।
6- उपवास के साथ-साथ भगवन कथा का पाठ व श्रवण करें।
7- रात्रि में श्री हरि के नाम का ही भजन कीर्तन करते हुए जगराता करें।
8- द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन आदि करवाएं व कलश को दान कर दें।
9- तत्पश्चात व्रत का पारण करें।
विजया एकादशी मुहूर्त
विजया एकादशी का व्रत 27 फरवरी को रखा जाएगा। पारणा मुहूर्त 27 फरवरी को सुबह 06 बजकर 47 मिनट से 09 बजकर 06 मिनट तक किया जा सकेगा। व्रत पारण के लिए जातक को 2 घंटे 18 मिनट का समय मिलेगा।
विजया एकादशी पर किन बातों का ध्यान रखें?
अगर उपवास रखें तो बहुत उत्तम होगा, नहीं तो एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करें। एकादशी के दिन चावल और भारी खाद्य का सेवन न करें। रात्रि के समय पूजा उपासना का विशेष महत्व होता है। क्रोध न करें, कम बोलें और आचरण पर नियंत्रण रखें।
विजया एकादशी व्रत कथा
कथा के अनुसार त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे, तब राम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की परन्तु समुद्र देव ने भगवान राम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया, तब भगवान राम ने वकदालभ्य मुनि की आज्ञा के अनुसार विजय एकादशी का व्रत विधि पूर्वक किया जिसके प्रभाव से समुद्र ने मार्ग प्रदान किया। इसके साथ ही विजया एकादशी का व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में सहायक सिद्ध हुआ और तभी से इस तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है।