कानपुर एनकाउंटर केस की जांच करने वाली स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) ने पुलिस की कार्यप्रणाली में कई खामियां निकालते हुए इन्हें दुरूस्त करने के लिए भी शासन को रिपोर्ट सौंपी है। अपनी गोपनीय रिपोर्ट में एसआईटी ने इंस्पेक्टर रैंक तक के पुलिसवालों के लिए वार्षिक फायरिंग अभ्यास अनिवार्य करने की सिफारिश की है।
आमतौर पर पुलिसकर्मी वार्षिक फायरिंग अभ्यास खानापूरी करने के लिए करते हैं। एसआईटी ने हर मंडल मुख्यालय पर फायरिंग रेंज बनाने की सलाह देते हुए कहा है कि वार्षिक प्रशिक्षण कराने के लिए आईजी या डीआईजी रेंज को जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही एसआईटी ने ये भी कहा है कि थानों के प्रबंधन और नियमित काम के लिए पुलिसकर्मियों के पास हैंडबुक होनी चाहिए और उनके पास बकायदा जॉब चार्ट होना चाहिए जिससे कि जिससे उनकी जवाबदेही तय हो सके।
अभी हाल ही में बिकरू काण्ड को लेकर एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपी थी जिसमें कानपुर एनकाउंटर केस की जांच में सामने आई खामियों के आधार पर ये सिफारिशें की हैं। डीजीपी मुख्यालय के एक अधिकारियों के मुताबिक इस केस की जांच के दौरान पुलिस के प्रशिक्षण में कई बड़ी खामियों का पता चला है। बुनियादी कर्तव्यों के बारे में पुलिसवालों की गैरजानकारी, एक्शन लेने में देरी, स्पष्टता और जवाबदेही की कमी जैसी कई कमियां पाई गईं। एसआईटी के एक सदस्य ने कहा कि पुलिस की कार्यप्रणाली की ऐसी खामियों की वजह से ही मारे गए गैंगेस्टर विकास दुबे को करीब तीन दशकों तक अपना साम्राज्य बढ़ाने का मौका मिला और अंतत: उसका हौसला इस कदर तक बढ़ा कि दो जुलाई की रात बिकरू गांव में उसके घर छापा मारने गई पुलिस टीम पर उसने और उसके गुर्गों ने हमला बोल दिया। जिसमेें सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गये।
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एसआईटी के सदस्य ने कहा कि पुलिस टीम के पास विकास दुबे के मुकाबले कहीं अधिक फायर करने की क्षमता थी लेकिन जब उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू हुई तो वे इसका जवाब नहीं दे सके। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनमें सेमी आॅटोमेटिक पिस्टल, इंसास और एके-47 जैसे हथियारों को इस्तेमाल करने के अभ्यास की कमी थी। इसी अभ्यास की कमी के चलते वह विकास दूबे और उसके साथियों के सामने मुकाबला नहीं कर पाये। उन्होंने बताया कि पहली सिफारिश इसी बात की गई है कि पुलिस सिस्टम में निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों यानी सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक के लिए हथियारों के वार्षिक प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाया जाए। एसआईटी ने हर मंडल मुख्यालय पर फायरिंग रेंज बनाने की सलाह देते हुए कहा है कि वार्षिक प्रशिक्षण कराने के लिए आईजी या डीआईजी रेंज को जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। इस वक्त उत्तर प्रदेश में कुल नौ फायरिंग रेंज हैं जिनमें से ज्यादातर पुलिस ट्रेनिंग सेंटर्स में हैं।
अधिकारी ने बताया कि बिकरू काण्ड की जांच में कानपुर एनकाउंटर में जीवित बचे ज्यादातर पुलिसकर्मियों के बयान दर्ज किये गये जिसमें उनका कहना था कि उन्होंने जब फायरिंग का जवाब देने की कोशिश की तो उनके असलहे की मैग्जीन फंस गयी और वे उसे लोड ही नहीं कर सके। अधिकारी ने ये भी बताया कि रिपोर्ट में पुलिस थानों के प्रबंधन के लिए एक हैंडबुक बनाने की सलाह दी गई है। इसमें सभी वैधानिक प्रावधानों की जानकारी, वर्क फ्लो और हर प्रकार के केस और परिस्थितियों को हैंडिल करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया का उल्लेख होगा। केस डायरी का रखरखाव और समय-समय पर जारी किए जाने वाले महत्वपूर्ण सर्कुलर भी होंगे। उन्होंने कहा कि इससे निचले स्तर के कर्मचारियों को अपनी ड्यूटी को समझने और जांच या न्यायिक प्रक्रिया के दौरान किसी केस को निर्णायक अंजाम तक पहुंचाने की क्षमता बढ़ेगी। इसके साथ ही उन्हें पता रहेगा कि कब क्या करना है।