मुंबई। अपनी जादुई आवाज से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले किशोर कुमार को वह दिन भी देखना पड़ा था जब वह आपातकाल के दौरान दूरदर्शन और रेडियो पर बैन कर दिये गये थे।
हरदिल अजीज कलाकार किशोर कुमार कई बार विवादों का शिकार हुए। वर्ष 1975 में देश में लगाये गये आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्यौता मिला। किशोर ने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गायन को प्रतिबंधित कर दिया गया। कहा जाता है कि किशोर कुमार अपने नियमों के पक्के थे, वो जो सोच लेते थे वहीं करते थे। अपने इसी उसूल के चलते उन्हें ये समय देखना पड़ा। बताया जाता है कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस चाहती कि किशोर कुमार इंदिरा गांधी के लिए गाना गाएं, लेकिन किशोर ने इसके लिए मना कर दिया। यह बात कांग्रेस को नागवार गुजरी जिसके बाद किशोर कुमार के गानों पर करीब दो वर्षो तक बैन लगा दिया गया।
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मध्यप्रदेश के खंडवा में 04 अगस्त 1929 को मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में अधिवक्ता कुंजी लाल गांगुली के घर जन्में आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रूझान बचपन से ही पिता के पेशे वकालत की तरफ न होकर संगीत की ओर था। महान अभिनेता एवं गायक के.एल.सहगल के गानों से प्रभावित किशोर कुमार उनकी ही तरह गायक बनना चाहते थे। सहगल से मिलने की चाह लिये किशोर कुमार 18 वर्ष की उम्र में मुंबई पहुंचे। लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पायी। उस समय तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना चुके थे।
किशोर कुमार को बतौर गायक सबसे पहले वर्ष 1948 में बांम्बे टाकीज की फिल्म जिद्दी में सहगल के अंदाज मे ही अभिनेता देवानंद के लिये मरने की दुआएं क्यूं मांगू गाने का मौका मिला। बाद में वह देवानंद की आवाज भी कहलाये। फिल्म जिद्दी से जुड़ा एक रोचक तथ्य है, फिल्म की शुरूआत में ही उनकी लता मंगेशकर अनजाने में अनबन हो गयी।
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लता मंगेशकर ने इस घटना का जिक्र एक बार कुछ इस प्रकार किया था। बांबे टॉकीज की फिल्म ‘जिद्दी’ के गाने की रिकॉडिंग के लिए जब वे एक लोकल ट्रेन से सफर कर रही थी तो उन्होंने पाया कि एक शख्स भी उसी ट्रेन मे सफर कर रहा है। बाद में स्टूडियो जाने के लिए जब उन्होंने तांगा लिया तो देखा कि वह शख्स भी तांगा लेकर उसी ओर आ रहा है। लता ने कहा जब वह बांबे टॉकीज पहुंची तो उन्होंने देखा कि वह शख्स भी बांबे टॉकीज पहुंचा हुआ है। वे डर गईं कि उनका कोई पीछा कर रहा है इसको लेकर दोनों की अनबन हो गई। बाद में उन्हें पता चला कि वह शख्स किशोर कुमार हैं।
फिल्म चलती का नाम गाड़ी के मशहूर गीत पांच रुपैया बारह आना की कहानी काफी दिलचस्प है। किशोर कुमार इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़े थे और उनकी आदत थी कॉलेज की कैंटीन से उधार लेकर खुद भी खाना और दोस्तों को भी खिलाना। वह ऐसा समय था जब 10-20 पैसे की उधारी भी बहुत मायने रखती थी। किशोर कुमार पर जब कैंटीन वाले के पांच रुपया बारह आना उधार हो गए और कैंटीन का मालिक जब उनको अपने पांच रुपया बारह आना चुकाने को कहता तो वे कैंटीन में बैठकर ही टेबल पर गिलास और चम्मच बजा बजाकर पांच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे और कैंटीन वाले की बात अनसुनी कर देते थे। बाद में उन्होंने अपने एक गीत में इस पांच रुपया बारह आना का बहुत ही शानदार ढंग से इस्तेमाल किया।
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किशोर कुमार को उनके गाये गीतों के लिये आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। किशोर कुमार ने अपने सम्पूर्ण फिल्मी कैरियर मे 600 से भी अधिक हिन्दी फिल्मों के लिये अपना स्वर दिया। उन्होंने बंगला, मराठी, आसामी, गुजराती, कन्नड, भोजपुरी और उड़िया फिल्मों मेंं भी अपनी दिलकश आवाज के जरिये श्रोताओं को भाव विभोर किया।
किशोर कुमार ने कई अभिनेताओ को अपनी आवाज दी लेकिन कुछ मौकों पर मोहम्मद रफी ने उनके लिये गीत गाये थे। दिलचस्प बात यह है कि मोहम्मद रफी किशोर कुमार के लिये गाये गीतों के लिये महज एक रुपये पारिश्रमिक लिया करते थे। किशोर ने चार बार शादी की थी। उनकी पहली पत्नी बंगाली गायका और अभिनेत्री रुमा थीं। इसके किशोर ने अभिनेत्री मधुबाला, योगिता बाली और लीना चन्दावरकर के साथ भी शादी की थी।
वर्ष 1987 मे किशोर कुमार ने निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जायेंगे। वह अक्सर कहा करते थें कि दूध जलेबी खायेंगे खंडवा में बस जायेंगे लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। 13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया से विदा हो गये।
किशोर के बड़े भाई अशोक कुमार का जन्मदिन 13 अक्टूबर को ही था। अपने जन्मदिन की तैयारी में लगे अशोक कुमार को अपने छोटे भाई और किशोर कुमार के निधन की ख़बर मिली। दादामुनि के लिए यह खबर किसी सदमे से कम नहीं थी। उस दिन के बाद से उन्होंने अपना जन्मदिन मनाना छोड़ दिया। वो अक्सर कहते थे कि मैं उस दिन खुश कैसे हो सकता हूं जिस दिन मेरा भाई चला गया।