सियाराम पांडे ‘शांत’
बजट किसी भी सरकार की सोच का आईना होता है। उससे सरकार की विकास संकल्पना और कार्ययोजना का परिचय मिलता है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने लगातार अपने बजट में विस्तार किया है। इस साल भी उसने यूपी के राजनीतिक इतिहास का सबसे बड़ा बजट पेश किया है। 5 लाख 50 हजार 270 करोड़ के इस बजट के जरिये योगी सरकार ने प्रदेश के सर्वांगीण विकास को जहां हरी झंडी दिखा दी है वहीं इस बजट में उसने किसानों, नौजवानों, मजदूरों, कारीगारों और बुद्धिजीवियों के हितों का बखूबी ध्यान रखा है। अल्पसंख्यकों के कल्याण की कामना की है और उस निमित्त एक ठोस राशि का प्रावधान किया है, वहीं महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा और सम्मान को देखते हुए बड़े और कड़े बंदोबस्त किए हैं।
लंबित नहर परियोजनाओं के लिए भारी भरकम बजट का प्रावधान कर सरकार ने हर खेत को पानी पहुंचाने का दावा तो किया ही है। सरकार की कोशिश लंबित नहर परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूर्ण करने की है। अगर वह अपने इस मकसद में सफल हो जाती है तो किसानों का इससे अच्छा सम्मान दूसरा कुछ भी नहीं हो सकता। जल जीवन मिशन के लिए 15 हजार करोड़ , स्वास्थ्य आरोग्य केंद्रों के लिए 485 करोड़ , मिड डे मील के लिए 3406 करोड़ का बजट प्रावधान योगी सरकार की सरोकारी प्रतिबद्धता का परिचायक है। अयोध्या, चित्रकूट, मथुरा जैसे तीर्थों के समग्र विकास का सरकार का संकल्प इस बजट में प्रमुखता से मुखरित हुआ है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता को लेकर भी सरकार गंभीर नजर आई है। हुनर हाट के आयोजनों के जरिए वह कलाकारों को सम्मान भी देना चाहती है।
चौरी चैरा महोत्सव के लिए 15 करोड़ का बजटीय प्रस्ताव तो कमोवेश इसी ओर इशारा करता है। 175 करोड़ की लागत से मेडिकल काॅलेजों के निर्माण, कोरोना महामारी से निपटने के लिए 50 करोड़ का प्रावधान योगी सरकार की जनहितकारी सोच का ही इंगित है। संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में मधुमेह नियंत्रण केंद्र की स्थापना का मामला हो या फिर लखनऊ में फोरेंसिक लैब की स्थापना, सरकार अग्रणी भूमिका निभाती नजर आ रही है। बजट में भी उसकी झलक देखने को मिलती है। ग्रामीण विकास सचिवालय के निर्माण के लिए 100 करोड़, पंचायत भव के निर्माण के लिए 20 करोड़, खाद्य, औषधि प्रयोगशाला के लिए 50 करोड़, एक जिला, एक उत्पाद योजना के लिए 250 करोड़ का प्राधान जन प्रतिबद्धता का ही इजहार करता है। देश की ऋषि और कृषि परंपरा को एक साथ बढ़ाने का दावा कर सरकार ने अपनी वैचारिक संकल्पबद्धता भी प्रमाणित की है।
निषादों की राजनीति में जुटे दलों को पीएम मत्स्य योजना के तहत 243 करोड़ का बजट देकर योगी सरकार ने जोर का झटका दिया है। कानपुर मेट्रो, आगरा मेटो, गोरखपुर और वाराणसी मेटो के लिए भारी-भरकम ध्नराशि देकर सरकार ने पूरब और पश्चिम को जोड़ने की कोशिश की है। रोटी, कपड़ा और मकान की सामान्य जरूरतों को यह बजट पूरा करता नजर आ रहा है। सरकार का फोकस अगर सड़कों के विकास पर है तो किसानों , नौजवानों और मजदूरों की बेहतरी का भी बजट में पूरा ध्यान रखा गया है। जमीन से आसमान तक उड़ान भरने की सरकार की योजना इस बजट में साफ नजर आती है।
कुल मिलाकर यह बजट सबके विकास का है। इसमें किसी के भी साथ किसी भी तरह के भेदभाव की पे्रतछाया नजर नहीं आती। इससे सरकार की नेकनीयती का पता चलता है। अगला साल चुनाव का है। इस लिहाज से भी जैसी कि अपेक्षा थी, यह बजट उसी के अनुरूप आया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अगर क्रियान्वयन भी बजट के अनुरूप हुआ तो उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश में तब्दील होते देर नहीं लगेगी। बड़े बजट लाने की श्रृंखला यूं तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शुरू की थी लेकिन योगी सरकार में साल दर-साल इसमें जिस तरह इजाफा हो रहा है, वह इस प्रदेश के बड़े आकार और बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप ही है। विचारणीय तो यह है कि विकास योजनाएं हर हाल में समय पर पूरी हों और उनकी गुणवत्ता से कोई समझौता न किया जाए।