लाइफ़स्टाइल डेस्क। अधिक आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन है। किसी भी अधिक मास की एकादशी को पुरुषोत्तम एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इसे पद्मिनी और कमला एकादशी के नाम से भी जाता है। पुरुषोत्तम मास में की जाने वाली इस एकादशी के प्रभाव से व्यक्ति समस्त पापकर्मों के बोध से छूट जाता है और अपार सुख-समृद्धि तथा धन-धान्य की प्राप्ति करता है। साथ ही व्यक्ति को हर प्रकार की सिद्धि मिलती है और आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।
पद्मिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
- एकादशी तिथि प्रारम्भ: 26 सितंबर शाम 7 बजे से शुरू।
- एकादशी समाप्त: 27 सितंबर शाम 7 बजकर 47 मिनट तक।
- पारण का समय: 28 सितंबर सुबह 6 बजकर 10 मिनट से 8 बजकर 26 मिनट तक।
पद्मिनी एकादशी की पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए विधि-विधान से पूजा करें। सबसे पहले घर में या मंदिर में भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल पीकर आत्मा शुद्धि करें। फिर रक्षासूत्र बांधे। इसके बाद शुद्ध घी से दीपक जलाकर शंख और घंटी बजाकर पूजन करें। व्रत करने का संकल्प लें।
इसके बाद विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें और दिन भर उपवास करें। सारी रात जागकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। अगले दूसरे दिन यानी कि 28 सितंबर, सोमवार के दिन भगवान विष्णु का पूजन पहले की तरह करें। इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
त्रेयायुग में महिष्मती पुरी के राजा थे कृतवीर्य। जो हैहय नामक राजा के वंश थे। कृतवीर्य की एक हजार पत्नियां थीं। लेकिन उनमें से किसी से भी कोई संतान न थी। उनके बाद महिष्मती पुरी का शासन संभालने वाला कोई न था। इसको लेकर राजा परेशान थे। उन्होंने हर प्रकार के उपाय कर लिए लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। इसके बाद राजा कृतवीर्य ने तपस्या करने का निर्णय लिया।
उनके साथ उनकी एक पत्नी पद्मिनी भी वन जाने के लिए तैयार हो गईं। राजा ने अपना पदभार मंत्री को सौंप दिया और योगी का वेश धारण कर पत्नी पद्मिनी के साथ गंधमान पर्वत पर तप करने निकल पड़े। पद्मिनी और कृतवीर्य ने 10 हजार साल तक तप किया, फिर भी पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। इसी बीच अनुसूया ने पद्मिनी से मलमास के बारे में बताया। उसने कहा कि मलमास 32 माह के बाद आता है और सभी मासों में महत्वपूर्ण माना जाता है।
उसमें शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। श्रीहरि विष्णु प्रसन्न होकर तुम्हें पुत्र रत्न अवश्य देंगे। पद्मिनी ने मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधि विधान से किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। उस आशीर्वाद के कारण पद्मिनी के घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम कार्तवीर्य रखा गया।