मेरठ। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करके सुरक्षित मातृत्व (Safe Motherhood) को सफल बनाने के लिए कई स्तरों पर कार्य हो रहा है। इसमें केंद्र और उप्र सरकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस 11 अप्रैल के माध्यम से गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की उचित देखभाल और प्रसव संबंधी जागरूकता फैलाने का कार्य किया जा रहा है।
सुरक्षित मातृत्व के लिए व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (डब्ल्यूआरएआई) की पहल को भारत सरकार ने स्वीकार किया। 2003 में भारत सरकार ने कस्तूरबा गांधी की जयंती 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाने की घोषणा की। गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए कई जनकल्याणकारी और लाभकारी योजनाएं चलाई जा रही है। इसमें प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना वरदान साबित हो रही है। इस योजना के जरिए गर्भवती महिलाओं को आर्थिक मदद और बेहतर इलाज की सुविधा दी जा रही है। इससे जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रह सकते हैं।
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना में दिहाड़ी मजदूरी करने वाली महिलाओं को कवर करने पर जोर दिया जा रहा है। गर्भवती होने पर उनका काम छूट जाता है। ऐसे में इलाज के लिए उन्हें पैसे की कमी हो जाती है। इस योजना के लिए अस्पताल में जाकर पंजीकरण करवाना होता है। प्रत्येक महीने की नौ तारीख को गर्भवती महिला अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर निःशुल्क जांच और उपचार करवा सकती है। इस योजना के अंतर्गत गर्भवती महिलाएं ब्लड प्रेशर, ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, हीमोग्लोबिन जांच और अल्ट्रासाउंड आदि की जांच निशुल्क करवा सकती है।
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस का इतिहास
भारत सामाजिक रूप से 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस घोषित करने वाला दुनिया का पहला देश है। डब्ल्यूआरएआई के सदस्यों द्वारा सुरक्षित मातृत्व दिवस के लिए एक राष्ट्रव्यापी विषय का चयन किया जाता हैं। इसके अनुरूप पूरे देश में बड़े पैमाने पर गतिविधियां और अभियान चलाया जाता है। गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव बाद महिलाओं को अधिकतम स्वास्थ्य सेवाएं देकर जागरूक किया जाता है, जिससे प्रसव के दौरान या बच्चे को जन्म देने के कारण किसी भी महिला की मौत न हो। बच्चे के जन्म के कारण महिलाओं की मौत के मामले में भारत में हालात खराब है, लेकिन सरकार के प्रयासों से मातृ मृत्यु दर कमी आ रही है।
सामाजिक संस्था संकल्प की अध्यक्ष अतुल शर्मा का कहना है कि महिलाएं किसी भी समाज की मजबूत स्तंभ हैं। जब हम महिलाओं और बच्चों की समग्र देखभाल करेंगे, तभी देश का विकास संभव है। एक गर्भवती महिला के निधन से न केवल बच्चों से माँ का आंचल छिन जाता है, बल्कि पूरा परिवार बिखर जाता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की उचित देखभाल और प्रसव संबंधी जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है।
सामाजिक संस्था भारत उदय एजुकेशन सोसाइटी के निदेशक संजीव कुमार बताते हैं कि महिलाओं में अशिक्षा, जानकारी का अभाव, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, कुपोषण, कम उम्र में विवाह, बिना तैयारी के गर्भधारण आदि कारण गर्भवती महिलाओं के लिए जानलेवा और जोखिम भरा साबित होते हैं। कई मामलों में माँ और नवजात शिशु दोनों की मौत हो जाती है। अधिकतर मामलों में अधिक रक्त स्राव के कारण महिलाओं की मौत हो जाती है। इसके अलावा इंफेक्शन, असुरक्षित गर्भपात या ब्लड प्रेशर मौत के कारण बनते हैं। प्रसव के दौरान लगभग 30 प्रतिशत महिलाओं को आपात सहायता की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था से जुड़ी दिक्कतों के बारे में सही जानकारी न होने तथा समय पर मेडिकल सुविधाओं के न मिलने या फिर बिना डॉक्टर की मदद के प्रसव कराने के कारण भी मौतें हो जाती है।
मोदी सरकार में सुरक्षित मातृत्व पर दिया जा रहा जोर
देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए गंभीरता से कार्य हो रहा है। इस दौरान कई योजनाओं पर काम हो रहा है। इन योजनाओं ने न केवल समाज में जागरुकता फैला कर महिलाओं का सशक्तिकरण किया गया है, बल्कि उनकी जरुरतों को लेकर भी समाज और देश को संवेदनशील बनाया गया है। प्रधानमंत्री ने सुरक्षित मातृत्व के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र के स्त्री रोग विशेषज्ञों तथा चिकित्सकों से स्वैच्छिक सेवाएं देने की अपील की है। सरकारी अस्पतालों की हालात में सुधार किया गया है।
मेरठ के अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. विश्वास चौधरी ने बताया कि सुरक्षित मातृत्व के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार कार्य कर रहा है। केंद्र और उप्र सरकार की योजनाओं को समग्रता से लागू किया जा रहा है। इन योजनाओं के जरिए प्रसूति मृत्यु दर में कमी लाने का प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया। लाखों महिलाओं को इस योजना का फायदा मिल रहा है। इसके अलावा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्दि योजना, दीनदयाल अंत्योदय योजना, स्वच्छ भारत योजना के जरिए महिलाओं के विकास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। बाल विवाह के खिलाफ मुहिम और महिला जनन स्वास्थ्य व गर्भाधान को लेकर भी जागरुकता पैदा की जा रही है। हाल के वर्षों में देश ने अनेक सूचकांकों के बारे में महत्वपूर्ण प्रगति की है और देश में नवजात शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), मातृ मृत्यु दर (एमएमआर), कुल प्रजनन दर (टीएफआर) जैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकेतकों में पर्याप्त प्रगति की है और देश में पांच मृत्यु दरों के अधीन विश्व की तुलना में तेजी से गिरावट आई है।
महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. सुप्रभा देव का कहना है कि महिलाओं को प्रसव के दौरान आने वाली दिक्कतों से बचाने की चुनौती है। इसके लिए किशोरियों को यौन शिक्षा और स्वच्छता के बारे में बताया जाना चाहिए। शारीरिक विकास के लिए सही पोषण दिया जाना चाहिए। गर्भनिरोधक उपायों की आसानी से उपलब्धता और समुचित जानकारी दी जानी चाहिए।