पिछले एक साल से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर जमें किसानों का धरना आज समाप्त हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 दिसंबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में किसानों की मांग को स्वीकार करते हुए कहा था कि सरकार तीन कृषि कानूनों को वापस लेगी।
शीतकालीन सत्र शुरू होते ही सरकार वादे के मुताबिक संसद में बिल लेकर आई और कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा संसद में की। इस बिल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी मिलते ही लगभग साल भर तक राजनीतिक हंगामे की वजह बने कृषि कानून इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए।
दिल्ली बॉर्डर से किसानों की रवानगी शुरू हो गई है। आज सुबह 8.30 बजे किसान नेता राकेश टिकैत ने किसानों के जत्थे को बिजनौर के लिए रवाना किया। गाजीपुर बॉर्डर पर किसान पिछले एक साथ से कृषि कानूनों की वापसी समेत अन्य मांगों को लेकर एक साल से डटे हुए थे।
आंदोलन समाप्त नहीं किया है बल्कि स्थगित
कृषि कानून की वापसी के बाद भी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत कई मांगों को लेकर धरने पर जमे रहे थे। लेकिन अब सरकार ने एक चिट्ठी भेजकर उनकी सभी मांगों को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है। संयुक्त किसान मोर्चा, भारतीय किसान यूनियन समेत कई किसान संगठन अपनी मांगों को लेकर साल भर सरकार से वार्ता करते रहे।
संयुक्त किसान मोर्चा की माने तो उन्होंने आंदोलन समाप्त नहीं किया है, बल्कि स्थगित किया है। अगर सरकार अपने वायदे से पीछे हटती है कि तो किसान फिर से दिल्ली में अपनी धमक दिखा सकते हैं।
आंदोलन की सार्थक समाप्ति के बाद किसानों का जोश हाई है, क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान हकों की लड़ाई जारी रखने का तेवर दिखाकर धरने को समाप्त किया है।
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केंद्र सरकार ने पत्र भेजकर किसानों को भरोसा दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सरकार ने जिस कमेटी को बनाने का ऐलान किया है, उसमें केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के अलावा संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य खासतौर पर शामिल होंगे।
1 साल के धरने के दौरान यूपी, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश में दर्ज मुकदमों और केंद्र की एजेंसियों द्वारा दर्ज केस वापस लिया जाएगा।
हरियाणा और यूपी सरकार ने मुआवजे पर सैद्धांतिक सहमति दी है और पंजाब सरकार ने इसका ऐलान किया है।
पराली जलाने पर बनने वाले कानून में किसानों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज नहीं करने के प्रावधान होंगे।