Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के खिलाफ केंद्र सरकार, SC में कहा- भारतीय परंपरा के मुताबिक नहीं

Same-Sex Relationships

Same-Sex Relationships

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों (Same-Sex Marriages) को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है। न्यूज एजेंसी के मुताबिक रविवार को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने इसको लेकर हलफनामा दायर किया। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सेम सेक्स मैरिज (Same-Sex Marriages)को मान्यता देने के लिए दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई होनी है। इससे पहले केंद्र सरकार का हलफनामा बताता है कि सरकार इसके पक्ष में नहीं है।

न्यूज एजेंसी ने जानकारी दी है कि केंद्र ने रविवार को कोर्ट में 56 पेज का हलफनामा दाखिल किया। इसमें कहा गया कि सेम सेक्स मैरिज भारतीय परंपरा के मुताबिक नहीं है। यह पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों के कॉन्सेप्ट से मेल नहीं खाती। हलफनामे में समाज की वर्तमान स्थिति का भी जिक्र है। केंद्र ने कहा- अभी के समय में समाज में कई तरह की शादियों या संबंधों को अपनाया जा रहा है। हमें इस पर आपत्ति नहीं है।

समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriages) में विवाद की स्थिति में क्या करेंगे?’

अपने 56 पेज के हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है। इन फैसलों की रोशनी में भी इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है। मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है। कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती। क्योंकि उसमे पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग- अलग माना जा सकेगा?।

केंद्र ने समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriages) से जुड़ी 15 याचिकाओं का किया विरोध

केंद्र ने सभी समलैंगिक विवाह से जुड़ी 15 याचिकाओं का विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट मामले में अगली सुनवाई सोमवार को करेगा। सरकार ने यहां कोर्ट में कहा – संहिताबद्ध और असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के डिक्रिमिनलाइजेशन के बावजूद हर धर्म की सभी शाखाओं पर ध्यान दिया जाता है। याचिकाकर्ता समान-लिंग विवाह के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं। किसी भी समाज में देश के कानून, पार्टियों का आचरण और उनके पारस्परिक संबंध हमेशा व्यक्तिगत कानूनों, संहिताबद्ध कानूनों या कुछ मामलों में प्रथागत कानूनों/धार्मिक कानूनों द्वारा शासित और परिचालित होते हैं।

पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर डंपर में घुसी तेज रफ्तार कार, पांच लोगों की मौके पर मौत

सरकार ने आगे कहा कि किसी भी देश का न्यायशास्त्र, चाहे वह संहिताबद्ध कानून के माध्यम से हो या सामाजिक मूल्यों, विश्वासों और सांस्कृतिक इतिहास पर हो, एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह को न मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकृत है।

केंद्र ने कहा  विवाह किसी व्यक्ति की निजता के क्षेत्र में केवल एक कॉन्सेप्ट के रूप में नहीं छोड़ा जा सकता है वो भी तब जब इसमें रिश्ते को औपचारिक बनाने और उससे उत्पन्न होने वाले कानूनी परिणामों जैसी चीज इसमें शामिल हो। विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में, इसके कई वैधानिक और अन्य परिणाम हैं। इसलिए, इस तरह के मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच सिर्फ एक निजता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है।

Exit mobile version