नई दिल्ली। भारत में चीन के कन्फ्यूशियस केन्द्र को लेकर विवाद के बीच सरकार ने आज साफ किया कि यह कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है, बल्कि वर्ष 2009 के दिशा-निर्देशों के तहत ऐसे किसी भी केन्द्र को सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने यहां नियमित ब्रीफिंग में कन्फ्यूशियस केन्द्र के विवाद के बारे में पूछे जाने पर कहा कि विदेश मंत्रालय ने वर्ष 2009 में विदेशी सांस्कृतिक केन्द्रों की स्थापना एवं कामकाज को लेकर विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये थे।
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ये दिशा-निर्देश ऐसे किसी भी सांस्कृतिक केन्द्र पर लागू होते हैं जो कन्फ्यूशियस केन्द्र सहित किसी विदेशी संगठन द्वारा समर्थित या प्रायोजित हों। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार यदि कोई ऐसा केन्द्र के किसी भारतीय संगठन के साथ समझौता करना चाहता है तो उसे विदेश मंत्रालय की मंजूरी लेना आवश्यक है।
प्रवक्ता ने कहा कि स्वाभाविक रूप से यदि कोई भारतीय संस्थान समझौता कर चुका है तो वह भी इन दिशा-निर्देशों के दायरे में आएगा और उसे सरकार की मंजूरी लेनी होगी। यदि ऐसे केन्द्रों की स्थापना के लिए मंजूरी नहीं ली गयी है तो उसे दिशानिर्देशों का उल्लंघन माना जाएगा।
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पेंगांग झील क्षेत्र एवं अन्य स्थानों पर चीनी सेना के पीछे नहीं हटने के बारे में पूछे जाने पर श्री श्रीवास्तव ने कहा कि भारत एवं चीन के विशेष प्रतिनिधियों के बीच पांच जुलाई को टेलीफोन पर बातचीत हुई थी जिसमें उन्होंने भारत चीन सीमा क्षेत्र में स्थिति के बारे में चर्चा की थी।
दोनों विशेष प्रतिनिधियों ने सहमति व्यक्त की थी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिकों को द्विपक्षीय समझौतों एवं प्रोटोकॉल के अनुसार पूरी तरह से एक दूसरे के सामने से हटाना होगा तथा सीमा क्षेत्र में पूर्ण रूप से शांति एवं स्थिरता की बहाली दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की सुचारु प्रगति के लिए आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि भारत इस उद्देश्य के प्रति पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है। हम अपेक्षा करते हैं कि चीनी पक्ष हमारे साथ पूरी गंभीरता से पूर्ण रूप से सेनाएं हटाने के लिए मिल कर काम करेगा।